Social Media

किसान के हाथ

बाबा मायाराम | फेसबुक : जाड़े के दिनों में गेहूं में पानी बराना कठिन है. किसानों के हाथ में भट्ट (सख्त गांठें) होती हैं.

इन दिनों अपने गेहूं के प्यासे खेतों को पानी पिला रहे हैं. अब थोड़ी सुविधा हो गई है, पाइप से पानी की. एक बार पाइप फिट करता दिया पानी छोड़ दिया. और जब पानी से धरती तर हो गई तो दूसरी जगह पानी फेर दिया.

लेकिन जब हरित क्रांति व आधुनिक खेती नई- नई आई थी. और कुएं मोटर पम्प भी नए नए खुद थे. तब पानी के लिए बरहे (कच्ची नालियां ) बनाई जाती थी.

तब किसानों को बरहों की सतत् निगरानी करनी पड़ती थी. बिजली गांव में समय समय पर आती है. रात में पानी बराना (खेत सींचना) कठिन था.

वे ओली खोंसकर, फावड़ा हाथ में लेकर उबाहने पांव (बिना जूता-चप्पल के) बारहे की निगरानी करते थे. यानी खेत से लेकर कुएं तब जाते थे, घुप्प अंधेरे में. अगर कहीं से पानी रिस रहा है तो उसे बांधना पड़ता था.

इतने जाड़े में जब घर से निकलने में ही बहुत ठंड लगती है. हवा चलती है, उसमें पानी में पांव भिगोकर काम करना बहुत कठिन होता है. हिम्मत का होता है.

जब थोड़ी काम से फुरसत मिलती है, आसपास के घास-फूस व सूखी लकड़ियां बीनकर आग तापते हैं.

इस तरह रात में खेतों को पानी पिलाना होता है. अंधेरे में दिखता भी नहीं है. जबकि खेतों में सांप-बिच्छू भी बहुतायत में होते हैं.

किसान का काम देखो तो बीज बोना, उनमें खाद-पानी डालना, निंदाई-गुड़ाई करना और कीटनाशक डालना. पकने पर उसे काटना, बांधना, फेरना (डंठलों से दाने निकालना और ढोना और फिर उसे सुरक्षित रखना.

हल जोतते, खेतों में आते-जाते, बैठकर बतियाते, घास छीलते और पूले बांधना, मीड़ना, फटकना, कूटना-पीसना आदि कई काम हैं. किसानों के हाथ में काम करते करते भट्ट (गांठें) सी पड़ जाती हैं, जो मेहनत से ही पड़ती हैं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!