प्रसंगवश

जोगी की उपेक्षा क्यों ?

कनक तिवारी
छत्तीसगढ़ राज्य बनने पर अजीत जोगी को कांग्रेस उच्च कमान ने विधायक नहीं होने पर भी मुख्यमंत्री मनोनीत किया. अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और वरिष्ठ नेता विद्याचरण शुक्ल तथा समर्थकों के विरोध को नेतृत्व ने दरकिनार कर दिया. शुक्ल के फॉर्महाउस पर दिग्विजय सिंह के साथ चर्चित धक्कामुक्की भी हुई. जोगी ने तेज़तर्रार शैली के चलते राज्यतंत्र को मुट्ठी में कर लिया. पूर्व आई.ए.एस. अधिकारी की उनकी प्रशासनिक समझ से नौकरशाही को भी तालमेल बिठाना कठिन नहीं हुआ.

तीन वर्षों के अंशकाल के मुख्यमंत्री की अगुवाई में कांग्रेस अगला चुनाव पांच वर्षों के लिए जीतने गई. लेकिन वैसा नहीं हुआ. जोगी प्रशासन की प्रजातांत्रिकता में अधिनायकवादी अनुगूंजें अफवाहों के स्तर पर सुनी जाने लगीं. बाज़ार सबसे बड़ा अफवाह-केन्द्र होता है. छोटे और मझोले व्यापारियों के जरिए शहरों से गांव तक मजबूत निन्दा-अभियान चलाया गया कि जोगी दुबारा मुख्यमंत्री बने तो नागरिक अधिकार खतरे में पड़ जाएंगे. 2003 के चुनावों के बाद डॉ. रमनसिंह के नेतृत्व में भाजपा तीसरे पांचसालाना शासन में है. वोट प्रतिशत में कुछ घटबढ़ होती रहती है.

कांग्रेस का भविष्य अब भी अनिश्चित है. अजीत जोगी पर विरोधियों से ज़्यादा कांग्रेसियों ने ही आरोप लगाए और हमले किए. मुख्यमंत्री जोगी ने बारह विपक्षी विधायकों को तोड़कर कांग्रेस सरकार को आरामदायक बहुमत सुनिश्चित किया था. उनके जनसंपर्क की असली कूटनीति हिन्दी के बदले छत्तीसगढ़ी में संवाद करने की रही. मतदाताओं के बीच संदेश जाता था कि शहरी बाबू के बदले ग्रामीण संस्कृति का मुख्यमंत्री मिला है. दिक्कत यह हुई कि जोगी के इर्दगिर्द राजनीतिक मुखौटों के नौकरशाहों ने वैचारिक प्रदूषण फैलाना शुरू किया.

उनकी सलाह पर मुख्यमंत्री को जातीय आधार पर राजनीति करना सुहाता रहा. बसपा के कांशीराम और मायावती की तरह उनमें उच्च वर्ण के खिलाफ स्वाभाविक परहेज़ प्रचारित हुआ. उनकी वैचारिक समकक्षता तथा लोकप्रियता अविभाजित बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव में ढूंढ़ी जाने लगी. प्रदेश में दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों को लेकर हुकूमत करने के जतन किए जाने लगे. आंकड़ों की अंकगणित के अनुसार इन वर्गों को मिलाकर प्रदेश की तीन चैथाई से ज़्यादा आबादी है. ऐसे में इन वर्गों के सरगनाओं को बहुत से मलाईदार पद नहीं मिलने से असंतोष फैलने लगा.

परस्पर प्रतिद्वन्द्वी और हमउम्र जोगी और दिग्विजय सिंह के राजनीतिक गुरु अर्जुन सिंह ने अकिंचन वर्गों की राजनीति का उभार पैदा कर छत्तीसगढ़ के चिरपरिचित अपने विरोधियों शुक्ल बंधुओं को ठिकाने लगाने के लगातार प्रयास किए. झुमुकलाल भेड़िया, टुमनलाल, बिसाहूदास महंत, बैजनाथ चंद्राकर, वासुदेव चंद्राकर, चंदूलाल चंद्राकर, गंगा पोटई, बोधराम कंवर, मानकूराम सोंढ़ी, जीवनलाल साव, अजीत जोगी, कमला सिंह जैसे बीसियों नेताओं का उभार अर्जुन सिंह ने किया. उन्होंने सामंतवादी परिवारों सरगुजा, खैरागढ़, सरईपाली, बसना वगैरह पर भी डोरे डाले.

अजीत जोगी को इस राजनीति का कलेक्टर के रूप में भी फायदा मिला. कोडार प्रकरण में नाम उछलने पर उन्होंने इस्तीफा देकर चैके छक्के की बंदिश वाली राजनीतिक इनिंग्स शुरू की. लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा में आमद के लिए पार्टी ने बार बार उनकी टिकट सुनिश्चित की.

कांग्रेस महात्मा गांधी, मोरारजी देसाई, इन्दिरा गांधी जैसे कई नेता बहुमत की राय के खिलाफ अपनी बात मनवाने के सिद्धहस्त रहे हैं. जोगी की प्रकृति भी ऐसी ही हैै. पार्टी उच्च कमान के नेता मनमोहन सिंह प्रभारी या प्रतिनिधि हरिप्रसाद वगैरह यदि मैदानी राजनीति का आकलन करने के बाद अनुकूल नहीं रहे तो अजीत जोगी ने उनका विरोध और अपमान करने में कंजूसी नहीं बरती.

जोगी पर आरोप है कि विरोधियों को चुनाव में गतिरोध पैदा कर जीतने नहीं देते. कई कांग्रेसी चर्चित चेहरे विधानसभा में जाने की संभावना के बावजूद हारते रहे. इसके बरक्स जोगी ने अपने मरवाही क्षेत्र को इतना सुदृढ़ बना लिया है कि उनके बिना पत्ता नहीं हिलता. मरवाही उनके प्रतिद्वन्द्वी पोर्ते बंधुओं का इलाका रहा है.

दोनों भाइयों के निधन के बाद डॉ. भंवरसिंह पोर्ते की पत्नी को मयारू भौजी कहते जोगी ने राजनीति से बाहर जाने की हरी झंडी दिखा दी. जोगी लंबे अर्से से कई आदिवासी नेताओं के आरोप को लेकर जनचर्चा, मीडिया और न्यायालयों में उलझ रहे हैं कि वे आदिवासी हैं अथवा नहीं.

राकांपा के रामस्वरूप जग्गी की हत्या को लेकर उनके पुत्र अमित और कई सहयोगियों पर मुकदमे भी चले. वे पूरी तौर पर खत्म नहीं हुए हैं. जाति विवाद को लेकर जोगी को न्यायालयीन प्रक्रिया से अंतिम रूप से मुक्ति नहीं मिली है. कई निर्णयों और प्रशासनिक मिजाज के कारण उनकी जनछवि पर विपरीत असर भी पड़ता रहा है.

2003 के चुनाव में कांग्रेस के अल्पमत में आने के बाद अपनी सरकार बनाने के लिए जोगी पर भाजपा के आदिवासी नेताओं को खरीदने के आरोप भी लगाए गए. उच्छृंखल तत्व उनके सामने बाअदब पेश आते हैं. अमेरिकी प्रेसिडेंट जॉर्ज बुश ने कहा था कि प्रत्येक राष्ट्र अमेरिका का दोस्त है. जो राष्ट्र दोस्त नहीं है, वह दुश्मन है. जोगी जॉर्ज बुश के छत्तीसगढ़ी संस्करण हैं. उन पर आरोप चस्पा होता रहता है कि वे अपने पुत्र तथा उसकी सेना को मर्यादा में नहीं रखते. इससे उनकी टी.आर.पी. गिर जाती है.

राजनीति काजल की कोठरी होती है. यदि वह चंदनवन है तो भी प्रत्येक पेड़ पर जहरीले सांप ठंडक के लिए लिपटे होते हैं. नेता जितना प्रखर होगा, आरोप उतने ही मुखर होंगे. इन सब विविधताओं, विपरीतताओं और विसंगतियों के बावजूद जोगी का सदाबहार संघर्षशील चरित्र सबको भौंचक करता है.

उनकी शारीरिक व्याधि त्रासद है. वैसी स्थिति में कोई दूसरा बिस्तर से हिलडुल भी नहीं सकता. यह जोगी का दमखम है कि वे आधी उम्र के नवयुवकों से कहीं ज़्यादा सक्रिय हैं. उनका राजनीतिक मस्तिष्क किसी कांग्रेसी नेता के मुकाबले भविष्यमूलक योजनाओं का उत्पादन केन्द्र है. उनका किताबी अध्ययन, लेखन, संभाषण और बहसमुबाहिसा अन्य नेताओं से ईष्र्या मांगता है. जोगी को कांग्रेस के उच्च कमान, पार्टी के संविधान तथा कार्यशैली की सुनिश्चित जानकारी होती है. वे असहमत होने पर उस सीमा तक जाकर विरोध दर्ज़ करते हैं जहां से अनुशासनहीनता का दायरा एक हाथ दूर होकर उनका कुछ बिगाड़ नहीं पाता. अलबत्ता उन्हें एक बार पार्टी की सदस्यता से गंभीर आरोपों के कारण निलंबित भी किया गया था, लेकिन सदस्यता की बहाली हुई. उनके परिवार को बार बार जनप्रतिनिधित्व के लिए नामांकित भी किया गया.

‘एकला चलो‘ का नारा अजीत जोगी की तासीर में है. उन्होंने विपुल लेखन किया है. लंबी लंबी पदयात्राएं की हैं. युवकों को विशेष रूप से आकर्षित किया है. आरोपांे, विरोधाभासों, पूर्वग्रहों, असफलताओं और उपलब्धियों के बावजूद अजीत जोगी का जीवन अन्य कांग्रेसी नेताओं के मुकाबले बहुरंगी और बहुधर्मी है. धर्म, संस्कृति, कला, साहित्य, राजनीति, अर्थशास्त्र, प्रौद्योगिकी, समाज विज्ञान, लोकप्रशासन और फिल्मों तक पर उनसे गंभीर चर्चा की जा सकती है. जोगी किसी विषय पर सुविचारित निबंध लिख सकते हैं औैर तात्कालिक भाषण भी दे सकते हैं.

अंगरेज़ी की कहावत के अनुसार गोल छेद में चैकोर सिर का खीला नहीं गाड़ा जा सकता. राजनीतिक पार्टियों का हाथी की चाल से चलता विकासतंत्र अश्वगति से सोचते जोगी को ढीलाढाला नज़र आता है. पुत्र के राजनीति में महत्वपूर्ण हो जाने से कांग्रेस उच्च कमान की अपनी अपनी पीढ़ियों को संबोधित करने के अवसर पिता पुत्र को मिल गए हैं. यह संयोग छत्तीसगढ़ के अन्य किसी कांग्रेसी को नहीं मिला. प्रतिभा के साथ विवादग्रस्तता, चाटुकारिता, दमित महत्वाकांक्षाएं, असफलताएं और पराजयबोध से नकार की मनोवैज्ञानिक स्थितियां अजीत जोगी के अस्तित्व के लाक्षणिक अवयव हैं.

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