कला

ध्रुपद और अफ्रीकन जैम्बे पर अनुराधा ने रचा इतिहास

भोपाल | संवाददाता: कथक नृत्य की दुनिया में शुक्रवार को जो कुछ घटा, वह अब नृत्य इतिहास के अमर हो गया. अंतर्राष्ट्रीय कथक नृत्यांगना वी अनुराधा सिंह शुक्रवार को समन्वय भवन में एक-एक मुद्रा और भाव भंगिमाओं के साथ इतिहास रच रही थीं. यह इतिहास ध्रुपद और अफ्रीकन जेम्बे के साथ शास्त्रीय कथक नृत्य का था. आम तौर पर कथक लय और घुंघरु पर करने का चलन है लेकिन पहली बार 12वीं सदी के अफ्रीकन वाद्य यंत्र जैम्बे और ध्रुपद के साथ अनुराधा के कथक के साक्षी सैकड़ों लोग बने.

अनुराधा सिंह ने पहले भी ऐसी कई प्रस्तुतियां दी हैं, जो बेमिसाल रही हैं, जिन्होंने रिकार्ड बनाया है. लेकिन रायगढ़ घराने की अनुराधा सिंह ने जैम्बे पर जो प्रस्तुति दी, उसे बरसों याद किया जायेगा.

मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग और आईपीएएफ के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित इस नृत्य के आयोजन की केंद्र में थीं भोपाल की वी अनुराधा सिंह. ध्रुपद पर कथक में अनुराधा ने जब शिव के तांडव और रौद्र रुप को पांच मात्रा सूल फाकता ताल में पेश किया तो उनकी छवि देखते ही बनती थी. पांच मात्रा के ध्रुपद के आलाप से आरंभ यह संरचना राग तोड़ी पर आधारित थी.

जैम्बे पर जुगलबंदी की शुरुआत तीन प्रकार की लयों मतिदुत बेदम रैला से हुई, जो अब तक किसी मंच पर कभी नहीं हुआ. जैम्बे पर आधारित कथक के विभिन्न हस्तकों व चक्करों की लयकारियों में गूंथी हुई वाद्ययंत्रों पर केंद्रित इस रचना में अनुराधा सिंह ने जिस तरह से सांस थाम कर किया, उसे दर्शक भी दम साधे हुये देखते रहे और फिर करतल तालियों ने अनुराधा की हौसला आफजाई की.

राग मल्हार पर आधारित बंदिश- उमड़-घुमड़ घिर आये बदरा की प्रस्तुति ने तो जैसे भोपाल का मौसम ही बदल दिया. राग खमाज में कोयलिया कूक सुनाये में कथक के 21 चक्कर, 36 चक्कर और 51 चक्कर का उपयोग किया गया था. इस बंदिश का समापन 36 चक्करों से संपन्न हुआ.

अनुराधा सिंह के साथ जैम्बे पर भोपाल के उस्ताद सलीम अल्लावाले थे, जबकि वायलिन की कमान मनोज बमूले और सिंथसाइजर की की बोर्ड को शाहिद ने संभाला. सारंगी पर जाकिर हुसैन ने समा बांधा, वहीं स्वर भरने का काम पूर्वी सुहास ने किया.

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