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अडानी के 1000 करोड़ के घोटाले में भी बागड़िया

रायपुर | संवाददाता: रोटोमैक के साथ कथित हवाला में शामिल होने के आरोप में प्रवर्तन निदेशालय के निशाने पर आये रायपुर के बागड़िया ब्रदर्स के तार देश की बहुचर्चित कंपनी अडानी के उस कथित घोटाले से जुड़े रहे हैं, जिनको लेकर आरोप हैं कि इसमें हजार करोड़ रुपये का गोलमाल हुआ था. यह आरोप प्रधानमंत्री के अधीन काम करने वाले डायरेक्ट्रेट आफ रिवेन्यू इंटेलिजेंस ने ही लगाया था. इस बारे में देश के जाने-माने पत्रकार प्रांजय गुहा ठाकुरता ने दि इकॉनामिक एंड पोलिटिकल वीकली में सनसनीखेज और तथ्यपरक रिपोर्ट छापी थी. इस रिपोर्ट को लेकर जब अडानी ने पत्रिका को नोटिस जारी की तो ट्रस्ट के दबाव में प्रांजय गुहा ठाकुरता ने पत्रिका से इस्तीफा दे दिया.

अडानी और बागड़िया ब्रदर्स समेत कमाम कंपनियों के गोलमाल को लेकर लिखे गये दो रिपोर्ट ‘द वायर’ ने भी छापा. इसके बाद अडानी ने मानहानि का मुकदमा दायर किया था. लेकिन देश के जानेमाने उद्योगपति गौतम अडानी इकोनामिक एंड पोलिटिकल वीकली और द वायर के खिलाफ दायर मानहानि का मुकदमा हार गए.

प्रांजय गुहा ठाकुरता, तीन और पत्रकारों समेत न्यूज़ पोर्टल द वायर के खिलाफ दायर मानहानि के मुकदमे को खारिज करते हुये कोर्ट ने बचाव पक्ष को 3500 शब्दों के लेख से केवल एक वाक्य और एक क्रिया विशेषण को हटाने के लिए कहा. पिछले साल 16 नवंबर के अपने एक आदेश में कच्छ स्थित भुज के जज जैमिनकुमार आर पंडित ने प्रकाशकों और लेखकों के खिलाफ दायर मानहानि की अपील को खारिज कर दिया. हालांकि जज ने “ हाईकोर्ट को गुमराह किया गया था और सेज से डीटीए तक की बिजली के कस्टम ड्यूटी को गलत तरीके से दर्ज किया गया था जिससे वो पैमाने पर खरा नहीं उतरेगा क्योंकि उससे दोहरे कर का रास्ता खुल जाएगा.” के वाक्य को लेख से हटाने के लिए कहा था. इसके अलावा जज ने उसी पैराग्राफ से क्रिया विशेषण के तौर पर इस्तेमाल शब्द “आश्चर्यजनक” शब्द को भी हटाने का निर्देश दिया था.

इस रिपोर्ट में बताया गया था कि अडानी और बागड़िया ब्रदर्स समेत कंपनियों ने किस तरह कथित तौर पर हज़ार करोड़ का गोलमाल किया है. भारत सरकार के डायरेक्ट्रेट आफ रिवेन्यू इंटेलिजेंस का इस सनसनीखेज मामले में आरोप है कि अदानी समूह ने दुनिया भर में फैली कंपनियों का समूह बना कर विभिन्न निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं का दुरुपयोग किया. अडानी के साथ मिल कर जिन पांच कंपनियों ने कथित तौर पर इस घोटाले को अंजाम दिया, उनमें बागड़िया ब्रदर्स भी शामिल थी.

डायरेक्ट्रेट आफ रिवेन्यू इंटेलिजेंस के दस्तावेज़ बताते हैं कि ये शेल कंपनियां जो कि संबंधित कार्पोरेट इकाइयों में उच्च गति की ‘सर्कुलर ट्रेडिंग’ में शामिल थीं, को ‘मनी लॉंड्रिंग’ के लिये भी इस्तेमाल किया जाता था. इन सभी कॉर्पोरेट संस्थाओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड द्वारा नियंत्रित किया गया था, जिसे 2007 से पहले अडानी एक्सपोर्ट्स लिमिटेड के नाम से जाना जाता था. डायरेक्ट्रेट आफ रिवेन्यू इंटेलिजेंस ने आरोप लगाया कि अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड ने हीरे की कटाई व पॉलिस और सोने के गहनों को लेकर भ्रामक जानकारी दी.

जांच एजेंसी ने दावा किया है कि अदानी के साथ शामिल इन कंपनियों और उनके सहयोगियों ने ‘सर्कुलर ट्रेडिंग’ में “कृत्रिम रूप से” निर्यात बढ़ाया और धोखाधड़ी करते हुये वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के विदेश व्यापार महानिदेशालय द्वारा शुरू की गई विभिन्न निर्यात प्रोत्साहन योजनाओं से “खूब लाभ” प्राप्त किया. हालांकि अडानी के प्रवक्ता का दावा है कि ये आरोप सही नहीं हैं. इन कंपनियों ने आपस में ही डायमंड, जड़ाऊ स्वर्णाभूषणों आदि की खरीद-फरोख्त की और एक तरह से फर्ज़ी आयात-निर्यात दिखाकर बड़े पैमाने पर सरकार को चूना लगाया. अंतरराष्ट्रीय व्यापार की भाषा में इसे ‘सर्कुलर ट्रेडिंग’ कहा जाता है.

असल में 2003-2004 में उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय ने निर्यात बढ़ाने के उद्देश्य से कुछ प्रोत्साहन- योजनाएं शुरू की. विदेश व्यापार के महानिदेशक द्वारा घोषित इन योजनाओं में ड्यूटी फ्री क्रेडिट एंटाइटलमेंट (डीएफसीई) और टारगेट प्लस स्कीम (टीपीएस) प्रमुख थीं. इन योजनाओं के लिए केवल स्टेटस होल्डर कंपनियों को पात्र माना गया. वाणिज्य मंत्रालय द्वारा तय मानकों के अनुसार स्टेटस होल्डर वे कंपनियां हैं, जिनका सालाना निर्यात कारोबार पच्चीस करोड़ से अधिक हो.

साथ ही यह शर्त भी रखी गई कि इन कंपनियों के निर्यात में 2002-2003 के मुकाबले 2003-2004 में कम से कम पच्चीस प्रतिशत की क्रमोत्तर बढ़ोतरी हो. इन कंपनियों को डीएफसीई योजना में उनके बढ़े हुए निर्यात के 10 प्रतिशत के बराबर तथा टीपीएस योजना में 5 से 15 प्रतिशत तक वित्तीय लाभ देने का प्रावधान था. जाहिर हैं कि दोनों योजनाएं काफी आकर्षक थीं.

डायरेक्ट्रेट आफ रिवेन्यू इंटेलिजेंस के दस्तावेज़ों के अनुसार अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड और उसकी सहयोगी कंपनियां पहले खाद्यान्न से लेकर कपड़े तक का निर्यात करती थी. 2002-03 में अदानी ग्रुप का सिर्फ 377 करोड़ रुपये के निर्यात का छोटा सा कारोबार था. डायरेक्ट्रेट आफ रिवेन्यू इंटेलिजेंस ने दावा किया है कि इस स्किम के लागू होने के बाद अडानी ने पहले हिंदुजा एक्सपोर्ट्स, आदित्य कोर्पेक्स, मिडेक्स ओवरसीज, जयंत एग्रो और रायपुर की बगड़िया ब्रदर्स के साथ मिलकर एक गठजोड़ बनाया. बाद में इसमें देश विदेश की चालीस से अधिक दूसरी कंपनियों को शामिल कर लिया. इनमें से अधिकांश कंपनियां हांगकांग, दुबई, शारजाह और सिंगापुर की बताई जाती हैं.

आरोप है कि अडानी, हिंदुजा एक्सपोर्ट्स, आदित्य कोर्पेक्स, मिडेक्स ओवरसीज, जयंत एग्रो और रायपुर की बगड़िया ब्रदर्स ने आयातित किए गए माल के बिलों को काफी बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया. हीरों को बिना तराशे उनकी क्वालिटी में फर्ज़ी बढ़ोतरी दर्ज़ की. एक ही माल को बार-बार आपस में खरीदा बेचा और अपना टर्न ओवर बढ़ाया. दुबई से सोने की छड़ें आयात कीं, उन्हें मोटे जड़ाऊ गहनों में बदलकर वापस भेजा और बाद में इन गहनों को गलाकर फिर छड़ों के रूप में भारत आयात कर लिया. कंपनियों ने अनगढ़ कच्चे हीरों का भारी निर्यात दिखाया, जबकि भारत परम्परागत रूप से कच्चे हीरों का निर्यातक देश नहीं है.

इस पूरे कामकाज से कंपनियों को क्या लाभ हुआ, इसे महज इस आंकड़े से समझा जा सकता है कि 2002-03 में महज़ 377 करोड़ का निर्यात कारोबार करने वाली इस कंपनी का निर्यात अगले साल यानि 2003-04 में 11 गुना बढ़कर 4657 करोड़ और 2004-05 में बढ़ कर 10,808 करोड़ तक पहुंच गया. विदेश व्यापार निदेशालय को जैसे ही लगा कि सरकारी सहायता की बड़े पैमाने पर लूट शुरू हो गई है, उसने दोनों प्रोत्साहन योजनाओं पर रोक लगा दी. निदेशालय के इस फैसले के खिलाफ कुछ कंपनियों ने सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई, लेकिन कोर्ट ने उनकी अपील खारिज़ कर दी.

डायरेक्ट्रेट आफ रिवेन्यू इंटेलिजेंस ने अनुमान जताया कि इस बीच अडानी और बागड़िया समेत दूसरी कंपनियों ने ग्रुप कस्टम ड्यूटी और प्रोत्साहन राशि को मिलाकर सरकार को लगभग एक हज़ार करोड़ का चूना लगाया.

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