Columnist

गलती किसकी?

निकहत प्रवीन
नए साल के अवसर पर बैंगलोर में होने वाली रेप की घटना ने एक बार फिर देश के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. निश्चित रुप से ये सवाल स्वाभाविक हैं क्योंकि इस बार घटना एक ऐसे शहर में हुई हैं जों महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित माना जाता है. कारणवश चर्चा शुरु हो गई है कि आखिर ऐसी घटनाओं का दोषी किसे माना जाए?

इस बारे में प्रत्येक महिला एवं पुरुष की अपनी-अपनी राय, अपना नजरिया है. इस संबध में बिहार के हाजीपुर की घरेलू महिला संजीदा अपने विचार प्रकट हुए कहती हैं, “देश के विकास के साथ रेप की घटना में भी तेजी से विकास हो रहा है लेकिन इसमें बहुत बड़ा रोल हमारी फिल्मों का भी हैं. आजकल अधिकतर फिल्मों में हीरो-हीरोइन के बीच फिल्माए जाने वाले कई बेहुदे सीन और उनके द्वारा पहने जाने वाले कपड़े हमारे बच्चों के मस्तिष्क पर नाकारात्मक प्रभाव डालतें हैं. लेकिन बच्चें रील लाईफ को रीयल लाइफ समझकर अपनी जिंदगी में वो सब करना सही समझतें हैं जो उन्हे पर्दे पर दिखाई देता है. ऐसे माहौल में दंगल जैसी फिल्में हमारे लिए एक मिसाल हैं जिसमें दूर दूर तक कोई अश्लीलता नही फिर भी फिल्म रोज एक नया रिकार्ड बना रही है”.

स्वतंत्र पत्रकार सबा कहती हैं, “महिलाओं पर आजकल घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी है. ऐसे में घर पर छुप कर तो बैठ नही सकते. हां, लेकिन इस बात से सतर्क जरुर रहना चाहिए कि कहीं ऑफिस, स्कूल, या कॉलेज में कोई ऐसा व्यक्ति तो नही जो हमपर नजर रख रहा है या परेशान कर रहा है. अगर ऐसा है तो उसे छुपाने के बजाय उसका विरोध करें. अक्सर हमारी चुप्पी ही हम पर भारी पड़ती है”.

दैनिक जागरण दुमका के रिपोर्टर राजीव के अनुसार “अगर आप अपनी संस्कृति के दायरे में जीना चाहते हैं तो उसके दायरे और मापदंड तय हैं लेकिन आप जब दायरे से बाहर आना चाहते हैं तो उसके साथ कई बदलाव उस माहौल के मुताबिक तय होते हैं जिसे चाहे अनचाहे अपनाने की बाध्यता तय हो जाती है. खुलापन और बिंदास होना गलत नही है पर इसके नाम पर अश्लीलता और दिखावा बदल रहे लाइफ स्टाइल की बानगी है”.

पटना के प्राईवेट कंपनी मे जॉब करने वाले मासुम करीमी ने बताया ” मेरी बेटी दो महिने की है. बेटी का बाप बनकर बहुत खुश हूँ लेकिन इसकी सुरक्षा को लेकर हर समय चिंता में रहता हूँ. मेरे ख्याल से अगर लड़कियों को शुरु से ही उनकी सुरक्षा के लिए प्रशिक्षण दिलाया जाए तो जरुरत पड़ने पर वो न सिर्फ अपनी बल्कि दूसरों की भी मदद कर सकती हैं. और समाज में छुपे भेड़ियों को मुंह तोड़ जवाब मिलने लगेगा”.

गुजरात के कच्छ से मेडिकल की छात्रा काजल कुमारी अपने अनुभव को साझा करते हुए कहती हैं, “मैं शुरु से जींस-टॉप जैसे कपड़े पहनना पसंद करती हूँ लेकिन दिल्ली के निर्भया केस के बाद इतनी डर गई कि अब सलवार कमीज में ही कॉलेज जाती हूँ. बाकि के ड्रेस घर पर किसी पार्टी में पहनती हूँ. लेकिन कॉलेज के कुछ लड़के जिस तरह पहले मुझे घुरते थें आज भी मेरे कपड़ों में झांक-झांक कर शरीर को देखने की कोशिश करते हैं. प्रिंसिपल से कई बार शिकायत की हर बार उन्हे वार्न किया जाता है लेकिन उनपर कोई असर नही पड़ता. आप ही बताओ दीदी अब ऐसे लड़कों के कारण क्या हम पढ़ाई करना छोड़ दें”?

रेप के मामले में लोगो की राय अलग-अलग जरुर हो सकती है लेकिन प्रभावित हर हाल में महिला ही होती है. इस संबध में सरकारी रिपोर्ट बताती हैं कि 2009 के बाद रेप की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है. प्रसिद्ध अंग्रजी अखबार “द इंडियन एक्सप्रेस” के अनुसार साल 2015 में रेप की घटना सबसे अधिक दर्ज की गई. देश में 93 महिलाएं हर रोज दुष्कर्म का शिकार होती हैं इनमें 70 प्रतिशत महिलाएं अपने घरों में ही किसी न किसी की हवस का शिकार बनी हैं. हर 5 में से 2 बच्ची जिनकी उम्र एक से पांच साल के बीच होती है जीवन के आरंभ में ही रेप पीड़िता की श्रेणी में शामिल हो जाती हैं.

ऑकड़े हमसे सवाल कर रहे हैं कि आखिर गलती किसकी है? छोटे कपड़े पहनने वाली लड़कियों की, घर में रहने वाली महिलाओं की, अपने परिवार को आर्थिक मदद देने वाली कामकाजी महिला की, पलंग पर खिलौनों के साथ खेलती दो-तीन साल की मासूम बच्ची की, या मां-बाप द्वारा बेटों को दी जाने वाली परवरिश की? अच्छा होगा हम समय रहते इन सवालों के जवाब ढूंढ़ लें ताकि हमारी बेटियों को एक सुरक्षित वातावरण में सांस लेने का मौका मिले.

(चरखा फीचर्स)

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