Columnist

दुनिया के पहले हक की हिफाजत

सुनील कुमार
एक मलयालम पत्रिका, गृहलक्ष्मी, इन दिनों खबरों में है, और यह भी खबर है कि उसके कवर पेज के खिलाफ कुछ लोग कानूनी कार्रवाई कर रहे हैं क्योंकि पत्रिका ने स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए एक अभियान छेड़ा है और एक मलयालम अभिनेत्री, गिलु जोसेफ, ने इस कवर पेज के लिए एक नन्हें बच्चे को दूध पिलाते हुए अपनी तस्वीर खिंचवाई है. इस अभिनेत्री का कहना है कि पत्रिका ने यह तस्वीर एक सही मकसद के अभियान के लिए चाही थी, और इसमें उसे कुछ भी गलत नहीं लगा. यह एक अलग बात है कि उसकी मां और बहन इससे सहमत नहीं हैं, और कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इस तस्वीर में उसने अगर एक हिन्दू महिला की तरह बिंदी नहीं लगाई होती तो यह तस्वीर अविवाहित माताओं का भी प्रतिनिधित्व कर पाती. सोशल मीडिया इस कवर पेज पर उबला पड़ा है, बहुत से लोग इस हौसले और पत्रिका की इस पहल दोनों की तारीफ कर रहे हैं, और बहुत से लोग इसे अश्लील या नग्न या आपत्तिजनक तस्वीर मान रहे हैं.

दुनिया में महिलाओं के अपने बच्चे को दूध पिलाने का मुद्दा कहीं भी विवादों से परे नहीं है. सबसे विकसित देशों में भी कुछ लोग इस बात पर बिफर पड़ते हैं कि किसी सार्वजनिक जगह पर कोई महिला कैसे अपने बच्चे को दूध पिला सकती है. दूसरी तरफ पश्चिम के एक देश में संसद के भीतर वहां की सदस्य महिला अपने दूध पीते बच्चे को लेकर गई और वहां कार्रवाई के बीच भी उसने उसे दूध पिलाते हुए कार्रवाई में हिस्सा लिया. अनगिनत ऐसे देश हैं जहां पर महिलाएं बच्चों को सार्वजनिक जगहों पर दूध पिलाने को अपना और बच्चे का बुनियादी हक बताते हुए एकजुट होकर ऐसा प्रदर्शन करती हैं, और इसमें फख्र भी महसूस करती हैं.

दुनिया के विकसित देशों में महिला और बच्चे के इस अधिकार का सम्मान करते हुए काम की जगहों पर और सार्वजनिक जगहों पर इसे पूरी तरह मान्यता दी गई है. हिन्दुस्तान में इस पत्रिका के इस कवर पेज के बाद छिड़ी बहस में एक महिला ने ट्विटर पर यह सवाल उठाया है कि हिन्दुस्तानी हवाईअड्डों पर लोगों के सिगरेट पीने के लिए तो अलग से कमरा बनाया गया है, लेकिन बच्चों के दूध पीने के लिए ऐसी कोई जगह नहीं बनाई गई है.

स्तनपान को एक अश्लील बात करार देने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि कुदरत ने महिला को स्तन अपने बच्चे को दूध पिलाने के लिए दिए हैं, न कि उसे सेक्स के सामान की तरह दिखाने या मानने के लिए. इंसानों से परे भी स्तनधारी तमाम जानवरों के बीच स्तन का यही एक इस्तेमाल रहता है, और शायद धरती के प्राणियों में अकेला इंसान ही है जो कि बच्चों के लिए कुदरत के दिए हुए महिला के इस अंग को एक सेक्स-प्रतीक मानकर उसे उसी तरह बढ़ावा देता है. जंगल के और शहरी, तमाम किस्म के प्राणियों को देखें, तो उनके सेक्स में मादा के स्तन का और कोई इस्तेमाल नहीं होता.

इंसानों में पुरूषप्रधान समाज में अपनी सोच से महिला के शरीर के अलग-अलग इस्तेमाल तय किए गए, जिन्हें पुरूषप्रधान सोच वाले बाजार-कारोबार ने और बढ़ावा दिया. लोगों को याद होगा कि 25-30 बरस पहले हिन्दुस्तान की कई वयस्क पत्रिकाएं, और महिलाओं की पत्रिकाएं ऐसे किसी उपकरण या क्रीम के इश्तहारों से भरी रहती थीं जिनसे महिलाओं के शरीर को और सुडौल बनाने का वादा और दावा किया जाता था. वक्त के साथ-साथ ऐसे फर्जी दावों के इश्तहार भी गायब हो गए, लेकिन महिलाओं में हीनभावना भरने के लिए बाजार अब पहले से भी अधिक चौकन्ना है, पहले से भी अधिक सक्रिय है.

गृहलक्ष्मी स्तनपान और गिलु जोसेफ
गृहलक्ष्मी स्तनपान और गिलु जोसेफ
जहां तक एक गंभीर मकसद और इरादे से दूध पिलाती एक महिला की तस्वीर का इस्तेमाल है, तो वह तारीफ के लायक है, पत्रिका के लिए भी, और मॉडल के लिए भी. यह विवाद खड़ा करने वाले लोगों को यह बात याद नहीं है कि 1984 में भारत सरकार ने एक डाक टिकट जारी की थी जो कि स्तनपान को बढ़ावा देने के मकसद से की गई थी. यह टिकट एक विशेष स्मारक डाक टिकट नहीं रखी गई थी, और रोजाना इस्तेमाल होने वाली टिकट की तरह उसे जारी किया गया था ताकि उसका अधिक से अधिक इस्तेमाल हो. हमारा ख्याल है कि ऐसी करोड़ों टिकटें उस वक्त बिकी होंगी, और किसी ने भी कोई हैरानी जाहिर नहीं की थी, आपत्ति जाहिर नहीं की थी, जबकि उस टिकट में महिला का शरीर इस मलयालम पत्रिका के कवर में मॉडल के शरीर के मुकाबले अधिक उजागर दिख रहा था.

लोगों को यह भी समझने की जरूरत है कि स्तनपान को बढ़ावा न मिल जाए यह एक बहुराष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय साजिश है. यह साजिश इसलिए गढ़ी गई है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियों के बनाए हुए बेबी-फूड की अधिक से अधिक बिक्री हो. महिलाओं के मन में यह झूठी आशंका भरने में भी बाजार लगे रहता है कि बच्चों को दूध पिलाने से उनका शरीर बेडौल हो जाएगा. ऐसी साजिश के साथ बाजार तरह-तरह से यह कोशिश करता है कि बच्चों को दूध पिलाना कम से कम हो. आज अगर एक तस्वीर के खिलाफ अभियान चल रहा है, तो वह महिला विरोधी भी है, एक बच्चे के हक के खिलाफ भी है, और कुदरत की बनाई हुई सबसे पहली और सबसे प्राकृतिक बात के खिलाफ भी है. यह विरोध बाजार-कारोबार से शुरू किया हुआ लगता है जो कि आज सोशल मीडिया पर तरह-तरह का समर्थन और विरोध खड़ा करने की ताकत को भाड़े में लेने की ताकत रखता है.

भारत में स्तनपान के लिए एक बड़ी जागरूकता की जरूरत है, और महिला-बच्चे के इस हक को दुनिया के किसी भी दूसरे तबके के हक से ऊपर मानने की जरूरत है, इस मुद्दे को बढ़ावा देने की जरूरत है, इसे अश्लीलता और नग्नता से अलग करने की जरूरत है. जिस राजस्थान की महिलाएं घूंघट में रहती हैं, पर्दा करती हैं, वहां की महिलाओं की भी बहुत सी तस्वीरें समय-समय पर सामने आती हैं जिनमें वे कहीं हिरणियों के बिछड़े बच्चों को अपना दूध पिलाती हैं, कहीं वे गाय के अकेले रह गए बछड़े को अपना दूध पिलाती हैं.

मां और मां का हक, बच्चा और बच्चे का हक, दुनिया के किसी भी नियम-कायदे, किसी भी रीति-रिवाज से ऊपर हैं. कोई भी सभ्य समाज इसे सबसे अधिक महत्वपूर्ण मानेगा, और इस हक की हिफाजत करेगा. हिन्दुस्तान को अपनी खोई हुई सभ्यता को वापिस पाने की बड़ी जरूरत है क्योंकि सैकड़ों बरस पहले के मंदिरों पर तो ऐसी मूर्तियां हैं जिनमें महिला बच्चे को दूध पिला रही है, लेकिन आज इस बात को अश्लील करार दिया जा रहा है. हिन्दुस्तान को एक बार फिर सभ्य बनने की जरूरत है.

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