पास-पड़ोस

बुंदेलखंड: भूख मिटा रहा है ‘रोटी बैंक’

महोबा | समाचार डेस्क: सूखे की त्रासदी झेल रहे बुंदेलखंड के में एक पत्रकार द्वारा शुरु किया गया महोबा का ‘रोटी बैंक’ एक बड़ा सहारा बन गया है. इससे भूखों को दोनों वक्त की रोटी मुहैया कराकर उनकी भूख की तड़प को मिटाया रहा है. यह ‘रोटी बैंक ‘ एक तरफ जहां भूख मिटा रहा है, वहीं भीख मांगने वालों की संख्या भी घटा रहा है.

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में फैले बुंदेलखंड में 13 जिले आते हैं. यह इलाका एक बार फिर सूखे की मार झेल रहा है. खेत वीरान पड़े हैं और जलस्रोत भी सूख गए हैं. इसके चलते बड़ी संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं. कई इलाके ऐसे हैं, जहां घरों में बुजुर्ग ही बचे हैं. इस स्थिति में महोबा के गरीब और बुजुर्गो के लिए ‘रोटी बैंक’ पेट भरने का जरिया बन गया है.

महोबा से नाता रखने वाले तारा पाटकर लखनऊ में एक दैनिक समाचार पत्र के पत्रकार थे, मगर उन्हें यहां के लोगों की गरीबी खींच लाई. वे अपने गृहनगर यह सोचकर आए कि कुछ लोग मिलकर अन्य लोगों की भूख क्यों नहीं मिटा सकते. इसके चलते उन्होंने ‘रोटी बैंक’ की परिकल्पना को साकार किया. उनका संकल्प है कि कोई भी भूखा न सोए.

इसी को ध्यान में रखकर 15 अप्रैल 2015 को अपने साथियों के साथ मिलकर रोटी बैंक की शुरुआत की. उस समय उन्होंने 10 घरों से दो से चार रोटी और सब्जी का संग्रह करना शुरू किया. यह खाना शाम के समय उन गरीबों को बांट दिया जाता था, जो भूखे सोते थे.

वक्त गुजरने के साथ सहयोग करने वालों की संख्या बढ़ी, नतीजतन रोटी बैंक को रोटी व सब्जी उपलब्ध कराने वालों की संख्या सात सौ तक पहुंच गई, जिससे पांच सौ लोगों का पेट भर जाता है.

पाटकर ने बताया कि सूखे से जूझते इस शहर में नए साल में एक जनवरी से दिन में भी भोजन उपलब्ध कराने का क्रम शुरू किया गया है. गरीबों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए शहर में 12 काउंटर बनाए गए हैं. इन केंद्रों से अब दोनों समय भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है.

रोटी और सब्जी इकट्ठा करने की अपनी प्रक्रिया है. एक तरफ जहां बुंदेली समाज के कार्यकर्ता घर-घर जाकर रोटी-सब्जी का संग्रह करते हैं तो उसके अलावा कई स्थानों पर ऐसे डिब्बे रखे गए हैं, जिनमें समाज के विभिन्न तबकों के लोग पैकेट में लाकर रोटी-सब्जी रख जाते हैं. बाद में खाने के पैकेट बनाए जाते हैं. पैकेट में चार रोटी और सब्जी होती है जो गरीबों में बांटा जाता है.

रोटी बैंक के लिए काम करने वाले अरुण चतुर्वेदी ने कहा कि जिन लोगों को ‘रोटी बैंक’ से खाना दिया जाता है, उनका ब्योरा एक प्रोफर्मा में दर्ज किया जाता है, इस प्रोफर्मा में संबंधित की पारिवारिक स्थिति, आय का जरिया और पृष्ठभूमि आदि को दर्ज किया जाता है, ताकि जरूरतमंद को ही खाना मिल सके.

इसके अलावा इस काम में लगे कार्यकर्ताओं का ब्योरा उनके पास होता है और उन्हें परिचय पत्र भी दिए गए हैं.

पाटकर ने कहा कि रोटी बैंक के लिए किसी से आर्थिक मदद नहीं ली जाती है, इसके लिए सिर्फ बनी हुई रोटी तथा सब्जी ही ली जाती है. इस अभियान में हिंदू-मुस्लिम और अन्य वर्ग के लोग मिलकर काम कर रहे हैं. सभी घरों से रोटी-सब्जी आती है, और उसे जरूरतमंदों में बांटा जाता है.

बुंदेलखंड में सूखा जैसे हालात के कारण खेत खाली पड़े हैं, रोजगार का साधन नहीं है, लिहाजा बड़ी संख्या में युवा पलायन कर गए हैं. इस स्थिति में घरों में बुजुर्ग लोग ही बचे हैं. इनके पास एक तो खाने के लिए खाद्यान्न नहीं है, दूसरा जिनके पास खाद्यान्न हैं, वे खाना पकाने में सक्षम नहीं हैं. ऐसे लोगों के लिए रोटी बैंक वरदान बन गया है.

उदल चौक क्षेत्र में कपड़े की दुकान के संचालक अचल सोनी ने बताया है कि बुंदेली समाज नामक संगठन के लोग आमजन से लगातार यही आह्वान कर रहे हैं कि भीख मांगने वालों को नकद राशि नहीं, भोजन दें.

एक तरफ अपील और दूसरी ओर रोटी बैंक से हो रहे भोजन वितरण का नतीजा यह हुआ है कि इलाके में भीख मांगने वालों की संख्या कम हो गई है.

महोबा शहर से शुरू हुआ गरीबों की भूख मिटाने का अभियान अब ग्रामीण इलाकों की ओर बढ़ चला है. अगर यह अभियान इसी तरह आगे बढ़ता रहा और लोगों का सहयोग मिला तो आने वाले समय में कोई भी बुंदेलखंड में भूखा नहीं रहेगा. इतना ही नहीं, आम आदमी की यह कोशिश सरकार को आइना दिखाने वाली भी है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!