बाज़ार

डूबी मनमोहनी अर्थव्यवस्था

नई दिल्ली । एजेंसी: रुपये तथा शेयर बाजार के हालत खस्ता हो जाने के बाद अब सवाल उठ रहें हैं कि क्या मनमोहन सिंह देश की अर्थव्यवस्था को डूबाकर ही छोड़ेगें. हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि देश में अभी 1991 जैसे हालात नहीं हैं. उन्होंने ये भी कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस दौर में उदारीकरण की नीति से पीछे नहीं हट सकती है.

डालर के मुकाबले रुपया 62 के मुकाम पर पहुंच गया है. ऐसे में यह सवात पूछना लाजिमी है कि रुपयें की स्थिति कब सुधरेगी. रुपयें के गिरते कीमत का अर्थ यह है कि भारतीय अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढञ रही है. देश की आजादी के वक्त जो रुपया अमरीकी मुद्रा डालर के बराबर था वह अब 62 गुना गिर चुका है.

1991 में जब मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने तो एक डॉलर की कीमत 24 रुपये थी. 1996 में जब मनमोहन सिंह ने कुर्सी छोड़ी तब रुपया डॉलर के मुकाबले 35 रुपये पार कर चुका था. 2004 में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने तो रुपया एक डॉलर के मुकाबले 44 रुपये था और 2013 में ये 62 रुपये पहुंच चुका है.

मनमोहन सिंह की सरकार ने 2009 से लेकर 2012 के बीच कार्पोरेट घरानों को 6,21,890 करोड़ रुपयें की छूट कस्टम में दी थी. इसी प्रकार एक्साइज में 4,23,294 करोड़ की छूट दी गई थी.

यदि इसी प्रकार कार्पोरेट घरानों को छूट देना जारी रखा गया तो सरकार का बजट घाटा बढ़ता ही जायेगा. आखिरकार सरकार अपने बजट को संभालने के लिये आम जनता को दी जाने वाली छूट को कम करेगी तथा नये-नये कर लगाएगी.

अब तो यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या मनमोहन-मोंटेक तथा चिदंबरम की जोड़ी फेल हो गई है. दूसरी तरफ महंगाई ने विकराल रूप धारण कर लिया है और देश में बेरोजगारी बढ़ रही है. शिक्षा तथा चिकित्सा का खर्च दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है. आम जनता खस्ताहाल तथा परेशान है लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नही.

मनमोहन सिंह से लेकर नरेन्द्र मोदी सभी आगामी लोकसभा की तैयारी में लगे हुए हैं. जनता के मुद्दों को भी नही उठा रहा है.

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