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दिल्ली: बिजली कंपनियों के ऑडिट पर रोक नहीं

दिल्ली | एजेंसी: दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को दिल्ली सरकार के उस आदेश पर रोक लगाने से इंकार कर दिया, जिसमें सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी में विद्युत वितरण के काम से जुड़ीं तीन बिजली कंपनियों की 2002 में उनकी स्थापना से लेकर अब तक के बही-खातों की नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) से जांच कराने के आदेश दिए हैं.

न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, “आदेश पर स्थगन लगाने की प्रार्थना खारिज की जाती है.” उन्होंने हालांकि कहा, “सीएजी मामले की अगली सुनवाई तक अपनी रपट जमा नहीं करेंगे.” उन्होंने मामले की सुनवाई 19 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी.

न्यायालय ने बिजली कंपनियों द्वारा दाखिल याचिका पर जवाब देने के लिए दिल्ली सरकार और सीएजी को नोटिस जारी किया. याचिका में आरोप लगाया गया है कि सरकार ने पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर ऑडिट का आदेश दिया है.

राष्ट्रीय राजधानी में निजी क्षेत्र की टाटा पॉवर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड, बीएसईएस राजधानी और बीएसईएस यमुना उपभोक्ताओं को बिजली की आपूर्ति करती हैं. इन कंपनियों ने आरोप लगाया है कि ऑडिट का आदेश एक राजनीतिक चाल है. कंपनियों ने कहा है कि ऑडिट एक गंभीर मुद्दा है और उन्होंने अदालत से इसकी वैधता की जांच करने की मांग की.

बीएसईएस के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, “यह कोई चुनावी भाषण नहीं है, जहां कोई (अरविंद केजरीवाल) कंपनियों को सबक सिखाने का दावा करे.” उन्होंने कहा कि यह आदेश पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर जारी किया गया है और कंपनियों को अपनी बात रखने का अवसर नहीं दिया गया.

टाटा पॉवर के वकील हरीश साल्वे ने कहा कि मौजूदा कानून के तहत सीएजी सरकारी कंपनियों का ही ऑडिट कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि बिजली कानून के तहत दिल्ली के उपराज्यपाल की ओर से ऑडिट आदेश जारी होना चाहिए, न कि सरकार के फैसले से सहमत होना चाहिए.

दिल्ली सरकार के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि तीनों में से प्रत्येक कंपनी में सरकार की 49 फीसदी हिस्सेदारी है. उन्होंने कहा कि 2002 में जब राजधानी में बिजली वितरण व्यवस्था का निजीकरण हुआ था, तब पूर्ववर्ती कंपनी दिल्ली विद्युत बोर्ड की हजारों करोड़ों रुपये की संपत्ति इन कंपनियों को दे दी गई थी.

भूषण ने कहा कि दिल्ली बिजली नियामक आयोग (डीईआरसी) ने 2010 में तत्कालीन सरकार को एक पत्र लिखकर इन कंपनियों के खातों में अनियमितता की बात कही थी, जो आम लोगों के लिए हितकारी नहीं थी. उन्होंने कहा कि डीईआरसी ने दिल्ली सरकार से तीनों कंपनियों की सीएजी जांच कराने की मांग की थी. भूषण ने कहा कि इन कंपनियों पर भरोसा कायम करने के लिए ऑडिट जरूरी है.

सीएजी के वकील ने कहा कि उन्हें इन कंपनियों की ऑडिट करने का अधिकार है. सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि उन्हें सरकारी रिकार्ड की जांच करनी होगी, क्योंकि कंपनियों ने पूर्वाग्रह से ग्रस्त फैसले और उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं दिए जाने की बात उठाई है.

उपराज्यपाल नजीब जंग ने एक जनवरी को सीएजी को इन कंपनियों की ऑडिट करने का निर्देश दिया था.

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पद संभालने के तुरंत बाद 28 दिसंबर को सीएजी शशिकांत शर्मा से मुलाकात की थी और तीनों कंपनियों की ऑडिट करने का अनुरोध किया था. उन्होंने आरोप लगाया है कि ये कंपनियां उपभोक्ताओं से अधिक शुल्क ले रही हैं.

दिल्ली सरकार ने सात जनवरी को इन कंपनियों की ऑडिट सीएजी से कराने के आदेश दिए, जिससे खिन्न होकर कंपनियों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में रिट याचिका दाखिल की.

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