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60% और अधिक कर्ज में दबा छत्तीसगढ़ का किसान

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में किसान कर्ज के बोझ में दबते जा रहे हैं. पिछले दो सालों की तुलना में वर्ष 2016-17 में कृषि ऋण की रकम में 60 प्रतिशत से अधिक की बढोत्तरी हो गई है. जबकि इसी दौरान देश भर में कृषि ऋण के वितरण में महज 16.4 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है.

2014-15 के आंकड़े बताते हैं कि कृषि ऋण के मद में 7,872.01 करोड़ रुपये किसानों को दिये गये. अगले वर्ष यानी 2015-16 में यह रकम घट कर 7,674.26 करोड़ रह गई. लेकिन 2016-17 में छत्तीसगढ़ में वितरित कृषि ऋण की रकम बढ़ कर 12,237.42 करोड़ हो गई.

देश का औसत देखें तो 2014-15 में कृषि ऋण की रकम 8,45,328.23 करोड़ थी, जो 2015-16 में बढ़ कर 915,509.92 करोड़ हो गई. 2016-17 के आंकड़ों की बात करें तो यह आंकड़ा 10,65,755.67 रकम तक ही था.

लेकिन यह देखना भी दिलचस्प है कि छत्तीसगढ़ में एक तरफ तो सरकार अरबों रुपये का ऋण बांट रही है लेकिन दूसरी ओर किसानों की फसलों का बीमा करने में सरकार की कोई दिलचस्पी नहीं है. हालत ये है कि इस साल बस्तर के 3 जिलों में एक भी किसान ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बीमा नहीं कराया है. एक जिले में तो महज 2 किसानों ने फसल बीमा कराया है.

कृषि विभाग के अनुसार राज्य के 43 लाख किसानों में से 1,51,217 किसानों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा के तहत बीमा करवाया है, जिनमें लगभग आधे 68,321 किसान एकमात्र राजनांदगांव जिले के हैं. राजनांदगांव मुख्यमंत्री रमन सिंह और उनके बेटे सांसद अभिषेक सिंह का गृह जिला है.

पिछले साल राज्य के 10 जिलों में फसल बीमा की जितनी रकम किसानों को मिली थी, उतनी रकम अकेले राजनांदगांव जिले के किसानों को बांटी गई थी. जाहिर है, ऐसे में पूरे राज्य के 26 जिले एक तरफ और राजनांदगांव जिला एक तरफ होने के कारण को समझा जा सकता है. लेकिन बस्तर के आदिवासी जिलों में एक भी किसान का बीमा नहीं किया गया. बस्तर के कोंडागांव ज़िले में महज दो किसानों ने फसल बीमा करवाया है, जबकि नारायणपुर, बीजापुर और सुकमा में एक भी किसान ने प्रधानमंत्री फसल बीमा के तहत बीमा नहीं कराया है.

सरकारी अफसरों ने दावा किया था कि आदिवासी बहुल बस्तर के सभी सात जिलों में किसानों ने चना, गेहूं, अलसी, सरसों, तिवरा और आलू की फसल लगाई है. इनके उत्पादन के भी बड़े-बड़े दावे किये गये थे. लेकिन इनमें से एक भी किसान द्वारा फसल बीमा नहीं कराये जाने से सरकारी दावों की हकीकत सामने आ गई.

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