छत्तीसगढ़

रमन की राह में कई कांटे

रायपुर | एजेंसी: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह विकास के दावे के साथ अपने निर्वाचन क्षेत्र राजनांदगांव की जनता के पास गए हैं. कोई उनकी जीत पक्की मान रहा है तो कुछ लोग कहते हैं कि इस बार रमन को जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा.

मुख्यमंत्री की जीत पर संशय! आखिर वजह क्या है? दरअसल, कांग्रेस ने चुनावी अखाड़े में मुख्यमंत्री के खिलाफ इस बार अलका मुदलियार को उतारा है और जीरम घाटी नक्सली कांड के जरिए सहानुभूति वोट बटोरने की कोशिश कर रही है. वहीं, मुख्यमंत्री रमन के बेटे अभिषेक सिंह भी अपने पिता के कार्यो का बखान कर राजनांदगांव के हर घर में पहुंच रहे हैं.

अलका ने राजनांदगांव में चुनावी बिगुल भी फूंक दिया है. वह इस बार घर-घर जाकर नक्सली कांड में शहीद हुए राज्य के शीर्ष नेताओं का जिक्र कर सहानुभूति पाने की कोशिश कर रही हैं.

यहां बताना लाजिमी होगा कि पिछले दिनों बागी तेवर अख्तियार कर चुकीं करुणा शुक्ला भी अब अलका के समर्थन में उतर चुकी हैं. उन्होंने इतना तक कह दिया कि अलका उनकी बेटी हैं और वे अलका के लिए राजनांदगांव में जनसंपर्क भी करेंगी.

करुणा के इस कथन से यह साफ हो गया है कि वे आने वाले दिनों में कांग्रेस में भी प्रवेश कर सकती हैं. यहां पर यह कहना गलत नहीं होगा कि बागी करुणा आने वाले दिनों में भाजपा को नुकसान पहुंचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं.

अलका जनसंपर्क कर जीरम में शासन-प्रशासन की हुई चूक के बारे में कहकर और जनता से गले मिलकर आंसू बहा रही हैं. एक महिला प्रत्याशी का रोना अगर दिलों को छू गया तो यह कहना गलत नहीं होगा कि सीएम को ‘आटे-दाल का भाव’ पता चल जाएगा. वहीं सूत्रों से पता चला है कि इस बार राजनांदगांव की जनता भी सीएम से खफा है.

लोगों का कहना है कि सीएम उनके जिला के हैं, फिर भी राजनांदगांव का विकास नहीं हो पाया. वहीं इस बार कांग्रेस भी अपनी सारी ताकत राजनांदगांव में ही झोंक रही है. कांग्रेस के सभी नेता राजनांदगांव में सीएम के लिए अलग ही रणनीति तैयार कर रहे हैं. अब देखना होगा कि आने वाले समय में सीएम रमन सिंह कांग्रेस के चक्रव्यूह को तोड़ने में कहां तक सफल होते हैं.

रमन सिंह के लिए राहत की बात यह है कि जीरम घाटी से जुड़ी सहानुभूति की लहर अभी तक जिले में नजर नहीं आ रही है. अगर आने वाले दिनों में लहर दौड़ गई तो सीएम को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

बता दें कि राजनीति और किक्रेट दो ऐसी चीजें हैं कि कब कौन बाजी मार जाए, कुछ नहीं कहा जा सकता. अब तो आने वाला समय ही बताएगा कि राजनांदगांव में सीएम के विकास के दावों के सिक्के चलेंगे या अलका के मार्फत सहानुभूति की लहर.

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