छत्तीसगढ़

‘मंत्री का बयान कार्पोरेट परस्त’

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन का आरोप है कि केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के रविवार के बयान कार्पोरेट परस्त है. उल्लेखनीय है कि रविवार को अपने रायपुर प्रवाल के समय केन्द्रीय वन एवं पर्यावण मंत्री ने छत्तीसगढ़ में कोयले के लिये वनों की कटाई को उचित ठहराया था. उन्होंने कहा था कि जंगल दूसरी जगह लगाया जा सकता है पर कोयला जहाँ है वही से निकाला जा सकता है.

सोमवार को छत्तीसगढ़ बचाओ आंन्दोलन और हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति ने संयुक्त रूप बयान जारी कहा है, “पर्यावरण मंत्री द्वारा यह कहना कि जंगल तो कटेगा ही, इससे सरकार की पर्यावरण के प्रति असंवेदनशीलता झलकती है. पर्यावरण मंत्री इस तरह के बयान कोल लॉबी के दवाब में आकर दे रहे हैं. पर्यावरण मंत्रालय का काम है पर्यावरणीय संवेदनशील क्षेत्रों को संरक्षित किया जाये, किसी भी परियोजन को स्वीकृति देने के पूर्व उसके पर्यावरण पर पड़ने वाले सभी प्रभावों का आकलन करना, परन्तु वर्तमान सरकार ऐसे तमाम क्षेत्रों में खनन की अनुमति दे रही है जिससे न सिर्फ वनसंपदा का विनाश हो रहा हे बल्कि वह निवासरत आदिवासी समुदाय, पर्यावरण और वन्य प्राणियों का अस्तित्व संकट में है.”

संयुक्त बयान में कहा गया है, “राज्य और केंद्र सरकार सिर्फ कार्पोरेट हितो को साधने में लगी हुई है. छत्तीसगढ़ राज्य जिसमे अभी भी 70 प्रतिशत लोग कृषि कार्यो में लगे हुए हैं. ऐसे में बड़े पैमाने पर औद्योगिकरण की नीतियों को थोपने से आने वाले समय में प्रदेश में भुखमरी और पलायन जैसी समस्याए बढेंगी. राज्य सरकार सरकार शीघ्र ही पूरी खनिज संपदा का दोहन करना चाहती है और यही कारण है की प्रदेश में पेसा और वनाधिकार कानूनों का भी सही ढंग से पालन नहीं किया जा रहा है. वन क्षेत्रों में खनन गतिविधिया बढने से न सिर्फ पर्यावरण का विनाश और विस्थापन बढ़ा है, बल्कि जंगली जानवर और लोगों के बीच संघर्ष भी ढञ रहा है. राज्य सरकार ने सिर्फ 7 कोयला खदानों को बचाने के लिए लेमरू हाथी परियोजना को रद्द कर दिया जिससे आज हजारों लोगो की जान को संकट पैदा हो गया है.

उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार के द्वारा 214 कोयला खदानों की नीलामी/आवंटन की प्रक्रिया शुरू किये जाने के पूर्व हसदेव अरण्य की 18 ग्रामसभाओ ने जनवरी 2015 में प्रस्ताव पारित करके उनके क्षेत्र में कोयला खदान के आवटन/नीलामी का विरोध किया था. ग्रामसभाओ ने कहा है की सम्पूर्ण हसदेव अरण्य पांचवी अनुसुक्षित क्षेत्र है जहां किसी भी परियोजना के पूर्व ग्रामसभा की सहमति आवश्यक है. इसलिए हम पहले से ही कोयला खदान का विरोध करते हैं और मांग करते हैं की हमारे गाँव में किसी भी कंपनी को खदान आवंटित न किया जायें.

गौरतलब है कि हसदेव अरण्य आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र है. जिनकी आजीविका जंगल और कृषि पर निर्भर है साथ ही जंगल उनकी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है. हसदेव अरण्य 20 कोल ब्लाकों से लगभग 15 हजार लोग प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होंगे जिसमे 80 प्रतिशत लोग आदिवासी हैं

संयुक्त बयान में कहा गया है कि हसदेव जंगल में वन जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत श्रेणी 1 के जीव के अतिरिक्त लगभग 14 रेपटाईल्स, 111 पक्षी, 34 मेमल्स तथा 29 प्रकार की प्रजातियों की मछली उपलब्ध है. इसके अलावा 51 प्रकार की मेडिसिनल प्लांट, 38 स्क्रब्स, 19 हर्ब्स, 12 प्रकार की घास की प्रजातीय उपलब्ध है.

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