छत्तीसगढ़बस्तर

MLA बनने के बाद किसानी नहीं छोड़ी

दंतेवाड़ा | पी रंजन दास: देवती कर्मा ने MLA बनने के बाद भी किसानी नहीं छोड़ी. आज भी जब भी मौका मिलता है वे अपने खेत के काम खुद ही करती हैं. चाहे धान की मिंजाई का काम हो या उसे कोठार तक ले जाना हो. उन्हें आज भी गांव की मिट्टी की खुशबू वहां खींच लाती है. अपनों से जुड़ने की चाहत उन्हें बार-बार नक्सल प्रभावित इलाकें में आने के लिये प्ररित करती रहती है. सरकार ने उन्हें भारी सुरक्षा दे रखी है उसके बावजूद भी वे सुबह-सुबह उठकर पैदल ही गांव का चक्कर लगाना नहीं भूलती हैं. मंगलवार को विधायक से मिलने संवाददाता जब फरसपाल पहुंचा तो मकान के गेट पर तैनात संतरी ने रोका. परिचय के साथ आने का कारण भी पूछा.

परिचय देते हुए कहा ‘भैया विधायक मैडम से मिलना था ‘संतरी ने भीतर जाने की इजाजत दे दी. आंगन में दाखिल हुए तो परिवार के सदस्यों ने बताया ‘मैडम कोठार में है, धान मिंजाई कर रही है’ सुनने के बाद हमने कोठार में जाने की इच्छा प्रकट की तो वे ले जाने को राजी हो गए. अपने मकान के पीछे विधायक श्रीमती कर्मा नजर आई. साधारण महिलाओं की तरह दिख रही विधायक धान की थप्पियों पर चढ़कर थ्रेशर मशीन से मिंजाई कर रही थी.

कुछ देर बाद थप्पियों से उतरकर टोकरी भरा धान लेकर कोठार के भीतर गई. एक बारगी चेहरा गमछा से ढका होने से पहचान भी नहीं आ रही थी.

बाहर आते ही प्रसन्नता के साथ उन्होंने चर्चा की. कैमरे में पहली बार कैद मेहनतकश तस्वीरों पर उन्होंने कहा ‘मैं विधायक जनता के लिए हूं वरना एक किसान हूं. किसान परिवार में जन्मी, पली-बढ़ी, विवाह भी मेरा किसान परिवार में हुआ. गांव की मिट्टी की खुशबु, खेत-खलिहानों की हरियाली, शांत और संस्कृति में रचे-बसे लोगों के बीच मेरा पूरा जीवन बीता है. इस पड़ाव में इन सब चीजों से कैसे दूर हो सकती हूं ?

भावुक नजर आई विधायक ने अपने बारे में बताते कहा कि मैं फूलनार गांव से हूं. जन्म के बाद ही सिर से पिता का साया उठ गया. मां ने तीन भाई-बहनों को मुश्किल से पाला-पोषा. मेरा बचपन गांव में ही बीता. खेत-खलिहानों से हमेशा नाता रहा.

आगे उन्होंने कहा पति को खोने के बाद घर की दहलीज से बाहर निकलकर बड़ी जिम्मेदारी कंधों पर उठाई हूं, जनता का भरोसा मुझ पर है, विधायक हूं इस नाते जनता के बीच रहना, उनके सुख-दुख में साथ रहना मेरा कर्तव्य भी है. इस बीच विधानसभा की कार्रवाई, क्षेत्र का दौरा, आयोजनों में उपस्थिति से जीवनचर्या पूरी तरह से व्यस्त हो चुकी है.

लेकिन समय निकालकर गांव की ओर लौट आती है. मंगलवार को श्रीमती कर्मा के शेड्यूल में कई कार्यक्रम थे मगर उन्होंने सभी कार्यक्रमों को रद्द करते हुए व्यस्तता से दूर मिंजाई में मन लगाया.

उनके साथ गांव की दूसरी महिलाएं भी इस काम पर लगी हुई थी. विधायक भी उनके साथ उन्हीं के वेशभूषा और बोलचाल शैली में ढली हुई थी.

सुरक्षा के सवाल पर उनका दो टूक कहना था कि अपने गांव और अपने लोगों के बीच किसका डर. फरसपाल आती हूं तो तड़के उठती हूं, गांव का चक्कर लगाती हूं. लोगों से मिलती हूं, उनका हालचाल पूछती हूं. मुझे किसी बात की परवाह नहीं होती. क्योंकि मुझे गांव में अपनेपन का ही एहसास होता है.

चर्चा खत्म हुई तो वे अपने साथ बगीचा दिखाने ले गई. आम, अमरूद, चीकू, नारियल के वृक्षों से हरा-भरा बगीचे के संदर्भ में उन्होंने कहा कि आप बगीचे की जिस हरियाल से अभिभूत हैं, यह मेरे पति दिवंगत महेन्द्र कर्मा की मेहनत है. बगीचे के हर एक पौधे को उन्होंने अपने हाथों से रोपा और सींचा भी.

जुबां पर पति का जिक्र आते ही श्रीमती कर्मा की आंखें भी नम हो गई थी. उन्होंने कहा बगीचे में अमरूद बड़े आकार के और रसीले भी है. आप जरूर चखिए.

यूं तो दक्षिण बस्तर में नक्सलियों के भय से जनप्रतिनिधि अपने गांव जाने से कतराते हैं मगर दंतेवाड़ा विधायक देवती कर्मा को अपनों से जुडऩे की चाहत और गांव की मिट्टी, खेत-खलिहान से ऐसा लगाव है कि परिस्थितियों को दरकिनार करते हुए विधायक हर हाल में पहुंचती हैं.

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