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छत्तीसगढ़: स्वास्थ्य में ढांचागत कमी

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य विभाग में ढांचागत कमी का असर सेवाओं पर पड़ रहा है. छत्तीसगढ़ में चिकित्सा अधिकारियों के 1873 पद स्वीकृत हैं उनमें से 410 पद रिक्त हैं. इस तरह से करीब 22 फीसदी पद रिक्त हैं. इसी तरह से राज्य में स्टाफ नर्स के 3275 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 16 फीसदी अर्थात् 533 पद रिक्त हैं. छत्तीसगढ़ का बस्तर इनमें सबसे ज्यादा बुनियादी ढांचे में कमी से जूझ रहा है. बस्तर में स्वास्थ्य विभाग का बुनियादी ढांचा भारी कमी से जूझ रहा है. छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में जिला चिकित्सालय, सिविल अस्पताल, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में चिकित्सा अधिकारियों के 56 फीसदी तथा स्टाफ नर्स के 27 फीसदी पद रिक्त हैं. जाहिर है कि इसका सीधा असर बस्तर के स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ रहा है.

बस्तर संभाग में चिकित्सा अधिकारियों के 383 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 216 रिक्त पड़े हुये हैं. इस तरह से बस्तर संभाग में 167 चिकित्सा अधिकारी ही नियुक्त हैं. जिनमें से 33 संविदा, 7 तदर्थ तथा केवल 127 नियमित हैं. बस्तर में स्टाफ नर्स के 620 पद स्वीकृत हैं जिनमें से 169 रिक्त पड़े हुये हैं.

जहां तक पूरे राज्य की बात है छत्तीसगढ़ में 22 फीसदी चिकित्सा अधिकारियों की कमी है. जिसमें से बस्तर संभाग में सबसे ज्यादा 56 फीसदी, सरगुजा संभाग में 20 फीसदी, बिलासपुर संभाग में 14 फीसदी तथा रायपुर संभाग में 8 फीसदी कमी है.

इसी तरह से छत्तीसगढ़ में स्टाफ नर्स के 16 फीसदी पद रिक्त हैं. जिनमें से बस्तर संभाग तथा बिलासपुर संभाग में 27 फीसदी, सरगुजा संभाग में 18 फीसदी तथा रायपुर संभाग में 5 फीसदी पद रिक्त पड़े हैं.

जाहिर है कि जब स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में कमी होगी तो उसका सीधा असर स्वास्थ्य सूचकों पर पड़ेगा. जैसे की गर्भवती महिलाओं की देखभाल, नवजात शिशुओं की देखभाल, रक्त अल्पता की बीमारी से ग्रस्तों की संख्या है. सबसे बड़ी बात है कि स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी से जूझ रहे छत्तीसगढ़ी की औसत आयु भी देश के अन्य राज्यों से कम है.

गर्भवती महिला की देखभाल
महिलाओं को प्रसव पूर्व विशेष देखभाल की जरूरत पड़ती है. यह माना जाता है कि अपने प्रसवावस्था के समय गर्भवती महिला की चार बार चिकित्सीय जांच हो जानी चाहिये. लेकिन नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के समय पाया गया कि यह सुविधा छत्तीसगढ़ की केवल 59.1 फीसदी गर्भवती महिलाओं को ही मिल पाती है. इतना ही नहीं राज्य की केवल 30.3 फीसदी गर्भवती महिलाओं को 100 दिन या उससे ज्यादा दिन आयरन की गोली खाने को मिल पाती है. जबकि गर्भावस्था के समय सभी महिलाओँ को यह सुविधा मिलनी चाहिये.

आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ की महज 21.7 फीसदी गर्भवती महिलाओं को ही पूरी प्रसव पूर्व मिलने वाली सुविधा मिल पाती है. प्रसव के बाद के दो दिनों तक भी केवल 63.6 फीसदी माताओं की चिकित्सक, नर्स या अन्य स्वास्थ्य कर्मचारियों द्वारा देखभाल की सुविधा मिल पाती है.

नवजात, शिशुओं की देखभाल
जिन बच्चों का जन्म घर में होता है उनमें से केवल 4.7 फीसदी को ही 24 घंटे के अंदर चिकित्सीय जांच हो पाती है. राज्य में महज 34.2 फीसदी नवजात की ही दो दिनों के अंदर चिकित्सीय जांच संभव हो पाती है. छत्तीसगढ़ में 70.2 फीसदी प्रसव किसी न किसी चिकित्सीय संस्थान में होती है जिसमें से 55.9 फीसदी प्रसव सरकारी अस्पतालों में होता है.

जहां तक बच्चों की देखभाल की बात है 76.4 फीसदी 12 माह से 23 माह तक के बच्चों को ही बीसीजी, मीसल्स, पोलियो तथा डीटीपी के प्रतिरक्षक टीके तथा ड्राप मिल पाते हैं.

रक्त अल्पता की बीमारी
एनीमिया या रक्ताल्पता की बीमारी से छत्तीसगढ़ की बहुत बड़ी आबादी ग्रसित है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार राज्य में 6-59 माह के 41.6 फीसदी बच्चे, 15-49 साल की गैर-गर्भवती 47.3 फीसदी लड़कियां तथा महिलायें, 15-49 साल की 41.5 फीसदी गर्भवती लड़कियां तथा महिलायें एवं 15-49 साल के 22.2 फीसदी लड़के तथा पुरुष रक्तअल्पता से ग्रसित हैं.

छत्तीसगढ़िया की औसत आयु
भारतीयों की औसत आयु 67.9 वर्ष की है. जबकि छत्तीसगढ़ में रहने वालों की औसत आयु 64.8 वर्ष, मध्यप्रदेश में रहने वालों की औसत आयु 64.2 वर्ष तथा उत्तरप्रदेश में रहने वालों की औसत आयु 64.1 वर्ष है. असम में यह 63.9 वर्ष है. इस तरह से ये चार राज्य ऐसे हैं जहां के नागरिकों की औसत आयु राष्ट्रीय औसत 67.9 वर्ष से कम है.

बाकी के राज्यों में आंध्रप्रदेश में यह 68.5 वर्ष, बिहार में 68.1 वर्ष, दिल्ली में 73.2 वर्ष, गुजरात में 68.7 वर्ष, हरियाणआ में 68.6 वर्ष, हिमाचल प्रदेश में 71.6 वर्ष, जम्मू-कश्मीर में 72.6 वर्ष, झारखंड में 66.6 वर्ष, कर्नाटक में 68.8 वर्ष, केरल में 74.9 वर्ष, महाराष्ट्र में 71.6 वर्ष, ओडिशा में 65.8 वर्ष, पंजाब में 71.6 वर्ष, राजस्थान में 67.7 वर्ष, तमिलनाडु में 70.6 वर्ष, उत्तराखंड में 71.7 वर्ष तथा पश्चिम बंगाल में यह 70.2 वर्ष की है.

फोटो: प्रतीकात्मक

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