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सामाजिक सरोकर से दूर है बजट

नंद कश्यप
छत्तीसगढ़ का ताजा-तरीन बजट गहरे तक निराश करने वाला बजट कहा जा सकता है. कम से कम चुनावी वर्ष में उम्मीद की जा रही थी कि राज्य सरकार के बजट में आम जनता के प्रति सरकार की जवाबदेही नजर आयेगी लेकिन पूरे बजट में सामाजिक सरोकार का नितांत अभाव है.

जनता की गाढ़ी कमाई पर बैठी सरकार की अधिकांश घोषणाएं इस अंदाज में सामने आई हैं, मानों सरकार आम जनता पर मेहरबानी कर रही हो. सरकारी आंकड़ों की ही मानें तो छत्तीसगढ़ के मेहनतकश किसानों ने पूरे देश में राज्य की नाक उंची की. लेकिन सरकार ने इन किसानों को अब तक हाशिये पर रखा है. चुनावी वर्ष होने के कारण धान पर 270 रुपये के बोनस की घोषणा की गई लेकिन रमन सिंह से पूछने का मन होता है कि यह घोषणा तो चार साल पुरानी थी, इसमें नया क्या है? यहां तक कि प्रदेश में सिंचित भूमि के अधिग्रहण पर भी कृषि बजट ने चुप्पी साध रखी है.

छत्तीसगढ़ में जितने प्राकृतिक संसाधन हैं, उनसे छत्तीसगढ़ की आम जनता का जीवन स्तर बहुत उंचा बनाया जा सकता था. लेकिन इस बजट में प्रति व्यक्ति आय का फरेबी आंकड़ा बतलाता है कि सरकार की चिंता में आम जनता शामिल ही नहीं है. सरकार के आंकड़ों को मान भी लें तो सकल घरेलू आय में वृद्धि तो मुद्रास्फीति के कारण है. असल में तो गरीबों की संख्या में बढोत्तरी ही हुई है. सरकार के आंकड़े भी यही तथ्य परोस रहे हैं.

इस बजट में स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में घोषणायें तो हुई हैं परंतु उन पर अमल के लिये कोई माहौल, कोई पृष्ठभूमि ही तैयार नहीं की गई है. श्रम करने वालों के लिये इस बजट में श्रम अधिकार की कोई बात नहीं कही गई है. उलटे मुफ्तखोरी को और बढ़ाने की घोषणाएं जरुर मुंह चिढ़ाती नजर आती हैं.

इसी तरह इस बजट में नदियों पर एनिकट की घोषणा के साथ-साथ सिंचाई के रकबे की वृद्धि की घोषणा की गई है. क्या सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि उपलब्ध पानी से उतनी सिंचाई निश्चित ही होगी और उद्योग किसानों का हक नहीं छीनेंगे? जाहिर है, सरकार अब तक जो कुछ करती आई है, उसमें ऐसे किसी दावे पर विश्वास करने का कोई कारण नजर नहीं आता.

जूता, चप्पल, साइकिल, गाय, सांड, बैल बांटने के बाद अब सरकार ने मुफ्त तीर्थयात्रा कराने का श्रेय लेते हुये तीर्थयात्रा का बजट बढ़ाने की घोषणा की है. कहा तो यही जाता है कि तीर्थ यात्रा का लाभ उन्हीं को मिलता है, जो स्वयं के पुरुषार्थ और ईश्वर की भक्ति की शक्ति से तीर्थाटन करते हैं. क्या सरकार यह संदेश देना चाहती है कि जनता के पैसे से सरकार का परलोक सुधरेगा?

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