चुनाव विशेषछत्तीसगढ़

घोषणा पत्र में कांग्रेस

लोकतांत्रिक विरोध और जनआंदोलनों के दमन नहीं करने का वायदा वह पार्टी कैसे कर सकती है जिसने आतंकवाद को नष्ट करने के नाम पर देश और कई प्रदेशों में मानव अधिकार विरोधी कानून बना रखे हैं. छत्तीससगढ़ विशेष जनसुरक्षा अधिनियम का विरोध इसी आधार पर क्यों नहीं हो सकता? राजिम कुंभ अधिनियम के तहत एक दो महीने के लिए नगरपालिका के संवैधानिक अधिकार छीनकर संस्कृति मंत्री के अंतर्गत मेला अधिकारी को दे दिए जाते हैं. ऐसी बहुत सी संवैधानिक चूकों के प्रति कांग्रेस को ध्यान देना चाहिए था.

90 सदस्यीय विधानसभा वाले छोटे प्रदेश में विधान परिषद गठित करने का अनावश्यक वायदा शायद उन कांग्रेसियों के लिए किया गया है जिन्हें विधानसभा के टिकट नहीं दिए जा सके हैं. छत्तीसगढ़ के किसान और श्रमिक बड़ी संख्या में प्रतिवर्ष काम की तलाश में पलायन करते हैं. कांग्रेस पार्टी ने इस मानव तस्करी को रोकने के लिए जो प्रयत्न किए हैं-उनका संक्षिप्त ब्यौरा देने से उसकी जनोन्मुखी प्रतिबद्धताएं स्पष्ट होतीं. पहले से हावी नौकरशाही पर निर्भर रहने की मंशा घोषणा पत्र में बार बार कुलबुलाती है.

मुख्य सचिव, कमिश्नर, प्रशासनिक अधिकारी वगैरह की अध्यक्षता में कई तरह की समितियां बनाने का वायदा है. ऐसी समितियां पहले ही न केवल कई बार बन चुकी हैं, बल्कि उनकी सिफारिशें भी कूड़ादान में फेंक दी जाती हैं. छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों के लिए केन्द्रीय योजना आयोग ने एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ दल का गठन किया था. उसकी प्रशंसनीय रिपोर्ट केन्द्र सरकार के दफ्तर में धूल खा रही है. यदि उसे ही लागू कर दिया जाए तो दोनों बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों को अपने घोषणा पत्रों में कई बिन्दुओं का उल्लेख करने का कष्ट नहीं उठाना पड़ेगा.

कांग्रेस का घोषणा पत्र पुराने ढर्रे पर सोच समझकर बाबूगिरी की दफ्तरी शैली में बनाया गया है. ऐसा भी लगता है कि इसे बनाने में किसी सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी को ज़िम्मेदारी दी गई है. लगता है कि कोई सरकारी रपट जारी हुई है. जीवन्त, ऐतिहासिक तथा जनसमर्थन से सत्ता में चली आ रही पार्टी के घोषणा पत्र की भावना, भाषा और संसूचनाओं में जो ताज़गी, तरन्नुम और तारतम्यता का अभाव है. इस जन-ऐलान में कांग्रेस की धड़कन नहीं है. उसे जिस तरह ढीले ढाले, बुजुर्ग अंदाज़ में प्रस्तुत तथा अल्पबुद्धिजीविता के नेतृत्व में ड्राफ्ट किया गया, उससे जनस्फुरण भी कहां हुआ?

कई वाक्यांश साधारणतः लोगों की समझ में भी नहीं आएंगे. मसलन ‘पसरा टैक्स की समाप्ति‘ का अर्थ बिना समझे पढ़ने में मनोरंजक लगता है. ‘नक्सली हिंसा और उसके प्रतिवाद में हुई हिंसा‘ शब्दांश का क्या यह भी अर्थ है कि राज्य ने जो बल प्रयोग किया उसे भी ‘प्रतिवाद में हुई हिंसा‘ मान लिया जाना है. संविधान की सातवीं अनुसूची में राज्यों को 66 विषयों में कानून बनाकर हुकूमत करने का अधिकार दिया गया है. घोषणा पत्र में बहुत संक्षेप में सही सभी महत्वपूर्ण बिन्दुओं का स्पर्श हो सकता था. उसे गीता प्रेस, गोरखपुर की तर्ज़ पर छोटे गुटके के रूप में छपा देने से प्रत्येक कार्यकर्ता द्वारा जेब में रख सकता था.

आखिरी कवर पृष्ठ पर कई चित्र छापे गए हैं. उनसे घोषणा पत्र की सुसंगतता को ढूंढ़ना मुश्किल है. कई चित्र-व्यक्तित्व पकड़ में ही नहीं आते हैं. शंकर गुहानियोगी, मुक्तिबोध और ठाकुर प्यारेलाल सिंह जैसे वामपंथी विचारों के तेज़ तर्रार लोग मौजूदा घोषणाओं से खुद कैसे संबद्ध हैं. मुक्तिबोध ने अपनी महान महाकाव्योचित कविता ‘‘अंधेरे में‘‘ के द्वारा जिस वर्तमान को उकेरा था वह तो अब भी वर्तमान बना हुआ है. उस कविता को कितने कांग्रेसियों ने पढ़ा होगा?

शंकर गुहा नियोगी के प्रयत्नों और सपनों का छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के घोषणा पत्रों में वर्णित रहा है. ठाकुर प्यारेलाल सिंह आज़ादी के बहुत बड़े सूरमा होते हुए भी आज़ादी के बाद जिस कांग्रेस से खिन्न हो गए थे, वह कांग्रेस फिर भी जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में बहुत संवेदनशील और समाजवादी प्रकृति की थी. ठाकुर साहब द्वारा स्थापित सरकारी धरोहरों पर किन लोगों ने किसकी शह पर बलात कब्ज़ा कर लिया है?

तत्कालीन सी. पी. और बरार विधानसभा में छत्तीसगढ़ प्रदेश बनाने का प्रस्ताव बाद में कांग्रेसी हो गए विश्वनाथ यादव तामस्कर ने रखा था. उनकी तस्वीर शायद नहीं छप पाई. ऐसे तो छत्तीसगढ़ में महेश योगी, स्वामी अग्निवेश और पूर्व सरसंघ चालक सुदर्शन जैसे चर्चित व्यक्ति भी पैदा हुए हैं. मुक्तिबोध और नियोगी जैसे यायावरों की शैली में विवेकानन्द, सुखदेवराज तथा विश्वनाथ वैशम्पायन जैसे क्रांतिकारी भी छत्तीसगढ़ में रहे हैं. न्यायविद हिदायतुल्ला भी. विस्मृत विवेकानन्द के छोटे भाई कांग्रेसी थे. उन्हें तश्तरी पर रखकर उन्हें संघ परिवार को भेंट में कांग्रेस ने क्यों दे दिया है?

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