स्वास्थ्य

छत्तीसगढ़-डायबिटीज़ का गढ़

रायपुर | बीबीसी: छत्तीसगढ़ को यदि डायबिटीज़ का गढ़ कहा जाये तो गलत न होगा. छत्तीसगढ़ में इसके मरीज जिस तेजी से बढ़ रहें हैं उससे आगे आने वाले समय में यह जीवनशैली का रोग भयावह रूप धारण करने जा रहा है. सबसे खतरनाक बात यह है कि डायबिटीज़ को यदि नियंत्रण में न रखा जाये तो यह हृदय, किडनी तथा आंखों को नुकसान पहुंचाता है. कुलमिलाकर यह रोग कई अन्य रोगों को बुलावा देता है. कहीं ऐसा न हो कि हमारी आने वाली पीढ़ी को कहना पड़े कि हम छत्तीसगढ़ नहीं डायबिटीज़गढ़ में रहते हैं. अभी तक यह माना जाता रहा है कि मधुमेह यानी डायबिटीज़ ख़ूब खाने पीने और और कम शारीरिक श्रम करने वालों को अपनी चपेट में लेता है. लेकिन छत्तीसगढ़ में आश्चर्यजनक रुप से बेहद ग़रीब और श्रमिक वर्ग मधुमेह का शिकार हो रहा है. ग्रामीण इलाकों में भी मधुमेह तेज़ी से फैल रहा है.

डॉक्टरों को आशंका है कि यह स्थिति कुपोषण के कारण हो सकती है. इसके अलावा ग्रामीणों में विभिन्न तरह के दबाव के कारण भी मधुमेह की बीमारी फैली है. राज्य के शहरी इलाकों में भी जीवनचर्या के कारण मधुमेह के रोगियों की संख्या बढ़ रही है.

एक साल के भीतर छत्तीसगढ़ के गैर संचारी रोगों से संबंधित चिकित्सा केंद्रों में ही मधुमेह के रोगियों की संख्या जिस तेज़ी से बढ़ी है, वह चौंकाने वाला है. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार देश के लगभग 8 फीसदी नए मधुमेह रोगी अकेले छत्तीसगढ़ में मिले हैं. मधुमेह की तेज़ रफ्तार ने छत्तीसगढ़ को पूरे देश में इस बारे में पहले नंबर पर खड़ा कर दिया है.

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 2014-15 के 12 महीनों में छत्तीसगढ़ में गैर संचारी रोगों से संबंधित चिकित्सा केंद्रों में जांच के दौरान 11,867 मधुमेह के रोगियों की पहचान की गई थी.

लेकिन इस साल केवल सात महीनों में यह आंकड़ा चार गुना बढ़ गया. इस साल अप्रैल से अक्टूबर तक 45,833 नए मधुमेह रोगियों की पहचान की जा चुकी है.

राष्ट्रीय आंकड़ों की बात करें तो देश के किसी भी राज्यों या केंद्रशासित प्रदेश में मधुमेह रोगियों की संख्या इस रफ्तार से नहीं बढ़ी है.

2014-15 में देश में नए चिन्हित किए गए मधुमेह मरीज़ों की संख्या 5 लाख 59 हज़ार 718 थी. अक्टूबर में इसमें मामूली परिवर्तन हुआ और यह आंकड़ा 5 लाख 74 हज़ार 215 पर जा पहुंचा.

मध्य भारत में ‘ग़रीबों के अस्पताल’ के नाम से बहुचर्चित जन स्वास्थ्य सहयोग, बिलासपुर के वरिष्ठ चिकित्सक डॉक्टर योगेश जैन का मानना है कि स्वास्थ्य संबंधी अधिकांश सरकारी योजनाएं गंभीर प्रयासों के अभाव में विफल हो रही हैं. लेकिन अब जिस तेज़ी से ग़रीब और कमज़ोर वर्ग में मधुमेह रोग फैल रहा है, वह चिंताजनक है.

योगेश जैन कहते हैं, “आरंभिक तौर पर जो समझ में आ रहा है, उससे तो यही लगता है कि मधुमेह के फैलाव के पीछे कुपोषण भी एक कारण है. गर्भावस्था में भी ग़रीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाली महिलाएं आम तौर पर केवल अनाज और ज़्यादातर चावल ही खाती हैं. इसके कारण शरीर के दूसरे हिस्सों की तरह पेंक्रियाज पर भी स्वाभाविक रूप से असर पड़ता है.”

योगेश जैन का कहना है कि मधुमेह में जिस तरह की सावधानी और महंगे इलाज की ज़रूरत होती है, उसे वहन कर पाना किसी ग़रीब के लिए संभव नहीं है. इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य को लेकर जागरुकता की भी कमी है.

लेकिन शहरी इलाक़ों का हाल भी बहुत अच्छा नहीं है. वरिष्ठ मधुमेह रोग विशेषज्ञ और अपोलो शुगर क्लिनिक की प्रमुख डॉक्टर कल्पना दाश ने पिछले कुछ महीनों से राजधानी रायपुर में सार्वजनिक स्थानों पर मधुमेह की जांच के लिए अभियान चला रखा है.

डॉक्टर दाश कहती हैं, “लगभग 7 हज़ार लोगों में से 25 प्रतिशत लोग हमें डायबिटीज़ के मरीज़ मिले तो 30 प्रतिशत प्री- डायबिटीक. इनमें 10 प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जिन्हें पहली बार पता चला कि उन्हें मधुमेह की बीमारी है. अगर आप आंकड़ों में देखेंगे तो राजधानी रायपुर की 10 फ़ीसदी आबादी अपने शरीर में मधुमेह लिए घूम रही है और उसे कुछ भी पता नहीं है.”

डॉक्टर कल्पना दाश का मानना है कि सब्जियों में कीटनाशकों का इस्तेमाल भी मधुमेह के लिए ज़िम्मेदार है. साथ ही ग्रामीण इलाकों में भी शारीरिक श्रम करने का चलन कम हुआ है, इसलिए अब गांवों में भी मधुमेह रोगी बढ़ रहे हैं.

हालांकि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर का दावा है कि सरकार विशेष तौर पर ग़रीबों के स्वास्थ्य के लिए कई योजनाएं चला रही है और उनमें लगातार सुधार भी हो रहा है.

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर का दावा बीमारी पर अंकुश के लिए कई योजनाएं चल रही हैं. चंद्राकर कहते हैं, “छत्तीसगढ़ में पिछले 10-15 सालों में लोगों की जीवन शैली में बड़ा बदलाव आया है. लेकिन हम उस बदलाव के साथ-साथ अपनी सेहत के मुद्दों को लेकर जागरुक नहीं हो पाए हैं. उसके कारण भी मधुमेह के रोगियों की संख्या बढ़ी है.”

लेकिन स्वास्थ्य मंत्री के दावे का दूसरा पहलू ये है कि छत्तीसगढ़ का स्वास्थ्य महकमा राष्ट्रीय कैंसर, मधुमेह, हृदय और आघात रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रम यानी एनपीसीडीसीएस के तहत आवंटित बजट भी खर्च नहीं कर पा रहा है.

छत्तीसगढ़ को 2014-15 में इस मद में 504.00 लाख रुपए मिले थे. लेकिन इसकी अधिकांश रकम तब खर्च की गई जब वित्तीय वर्ष का समापन होने लगा. छत्तीसगढ़ सरकार इस स्थिति में भी केवल 390.27 लाख ही खर्च कर सकी.

इस साल तो बजट आवंटन और खर्च की स्थिति और भी बुरी है. सरकार इस साल आवंटित 526 लाख में से केवल 22.48 लाख ही खर्च कर पाई है. यानी बजट का केवल 4.27 प्रतिशत ही सरकार ने खर्च किया है.

छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सुविधाओं पर शोध कर रहे कुमार प्रशांत कहते हैं, “भारत दुनिया में डायबिटीज़ का घर है और छत्तीसगढ़ इस मामले में भारत की राजधानी.”

(बीबीसी के लिये रायपुर से आलोक पुतुल की रिपोर्ट)

error: Content is protected !!