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छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सुविधायें बीमार-नीति आयोग

रायपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य सुविधायें बीमार हैं और दम तोड़ रही हैं. यह बात हम नहीं, देश का नीति आयोग कह रहा है. नीति आयोग की 2015-16 के आंकड़ों को लेकर देश भर में स्वास्थ्य सुविधाओं की जो पड़ताल की गई है, उसमें यह बात सार्वजनिक हुई है. कई मामलों में तो छत्तीसगढ़ अपनी बदहाली में शीर्ष पर है.

देश के जिलों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी की बात करें तो छत्तीसगढ़ इस मामले में पूरे देश में पहले नंबर पर है. आंकड़े बताते हैं कि राज्य के 77.7 प्रतिशत जिला अस्पतालों में विशेषज्ञ डाक्टर हैं ही नहीं. जाहिर है, लोगों के इलाज की स्थिति को इस आंकड़े से समझा जा सकता है. पड़ोसी राज्य ओडिशा में केवल 19 प्रतिशत जिला अस्पताल ऐसे हैं, जहां विशेषज्ञ चिकित्सक नहीं हैं. इसी तरह झारखंड में यह आंकड़ा 50.3 प्रतिशत, मध्यप्रदेश में 51.0 प्रतिशत और आंध्र में यह 30.4 प्रतिशत है.

निर्दिष्ट रेफ़रल इकाइयों के रूप में काम करने वाले अस्पतालों में विशिष्ट प्रकार की स्वास्थ्य सुविधाओं का अनुपात देखें तो देश में छत्तीसगढ़ की हालत अत्यंत दयनीय है. राज्य के केवल 23.5 प्रतिशत रेफरल केंद्रों में ही विशिष्ठ सुविधायें उपलब्ध हैं. इसी तरह जिलों में कार्डिएक केयर यूनिट्स का हाल भी छत्तीसगढ़ में बुरा है. प्रतिशत के हिसाब से देखें तो यह आंकड़ा महज 3.3 प्रतिशत है. हां, कुछ पड़ोसी राज्यों की तुलना में यह स्थिति ठीक मानी जा सकती है. लेकिन मध्यप्रदेश में यह आंकड़ा 9.8 प्रतिशत है और महाराष्ट्र में 22.9 प्रतिशत. आंध्र प्रदेश में यह आंकड़ा 53.9 प्रतिशत है. देश में हिमाचल प्रदेश में यह आंकड़ा सबसे बेहतर है, जहां 91.7 प्रतिशत जिलों में कार्डिएक केयर यूनिट्स हैं.

स्वास्थ्य सुविधाओं में अधिकांश मामलों में छत्तीसगढ़ पड़ोसी राज्यों से काफी पीछे हैं. राज्य में संस्थागत प्रसव का आंकड़ा 64.5 प्रतिशत है. अगर बड़े राज्यों के आंकड़े देखें तो छत्तीसगढ़ अंतिम से चौंथे नंबर पर है. छत्तीसगढ़ के 64.5 प्रतिशत के आंकड़ों की तुलना में केरल जैसे राज्य में यह आंकड़ा 96 प्रतिशत है. यहां तक कि पड़ोसी राज्य झारखंड में 67.4, मध्यप्रदेश में 64.8, ओडिशा में 74.8, आंध्र में 87.1, महाराष्ट्र में 85.3 है.

यही हाल टीबी जैसी बीमारियों के उपचार का है. झारखंड में जहां 90.9 प्रतिशत लोग उपचार के बाद ठीक हुये हैं, वहीं छत्तीसगढ़ में यह आंकड़ा 89.1 प्रतिशत है. मध्य प्रदेश में यह 90.3 प्रतिशत और बिहार में 89.7 प्रतिशत है.

महिलाओं के प्रसव पर होने वाले खर्च में भी छत्तीसगढ़ अंतिम से तीसरे स्थान पर है. पश्चिम बंगाल में जहां प्रति प्रसव पर लगभग 7,782 रुपये खर्च होते हैं, वहीं छत्तीसगढ़ में यह महज 1,480 रुपये है. हालत ये है कि तेलंगाना जासे राज्य में भी यह आंकड़ा 4,020 रुपये और ओडिशा में 4,225 रुपये है.

पीएचसी और सीएचसी में स्टॉफ नर्स की कमी का हाल ये है कि राज्य में 37.3 प्रतिशत पद पिछले कई साल से खाली हैं. ओडिशा जैसे पड़ोसी राज्य में यह आंकड़ा शून्य प्रतिशत है तो उत्तरप्रदेश में 1.9 प्रतिशत. पड़ोसी तेलंगाना में भी केवल 12.8 प्रतिशत पद खाली हैं. साथ बने उत्तराखंड में यह आंकड़ा 20 प्रतिशत का है.

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