छत्तीसगढ़

माओवादियों को isolate करें- येचुरी

रायपुर | समाचार डेस्क: माकपा महासचिव ने कहा है छत्तीसगढ़ में माओवादियों को राजनीतिक रूप से अलग-थलग करें. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को लिखें अपने पत्र में माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा है कि छत्तीसगढ़ में माओवादी समस्या के हल के लिये उन्हें अलग-थलग करने की जरूरत है परन्तु इसके लिये जनतंत्र को अपनी भूमिका का पालन करने दिया जाये.

उन्होंने मुख्यमंत्री को लिखें अपने पत्र में कहा है, “सभी राजनैतिक पार्टियों को बस्तर में बिना किसी भय के अपनी राजनैतिक गतिविधियां संचालित करने की और पत्रकारों को जमीनी वास्तविकता की रिपोर्टिंग करने की अनुमति दी जाये.” येचुरी ने इस मामलें में मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप की मांग की है.

माकपा महासचिव येचुरी ने मुख्यमंत्री से आग्रह किया है, “क्या मैं यह आशा कर सकता हूं कि आप बस्तर पुलिस तथा प्रशासन को यह निर्देश देंगे कि विपक्षी पार्टियों के कार्यकर्ताओं, पत्रकारों व अन्य लोगों को प्रताड़ित करना तथा उनके खिलाफ झूठे प्रकरण दर्ज करना बंद करें.”

येचुरी ने अपने पत्र में आरोप लगाया है, “मैं इस तथ्य से अवगत हूं कि बस्तर पुलिस तथा प्रशासन द्वारा ऐसी दमनात्मक कार्यवाही पत्रकारों, शोधकर्ताओं, वकीलों तथा अन्य लोगों के खिलाफ भी की जा रही है, ताकि बस्तर में उन्हें घूमने तथा जनता के संवैधानिक और मानव अधिकारों के उल्लंघन की रिपोर्टिंग करने से रोका जा सकें.”

उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों दिल्ली से आया एक प्रतिनिधिमंडल बस्तर गया था उसके बाद उनके खिलाफ़ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई गई है तथा पुलिस अधीक्षक द्वारा दिल्ली यूनिवर्सिटी तथा जेएनयू को पत्र लिखकर स्थिति से अवगत कराया गया था. पुलिस अधीक्षक के पत्र के बाद प्रतिनिधिमंडल की एक सदस्या तथा जेएनयू की प्राध्यापक प्रो. अर्चना प्रसाद ने तंज कसा था कि एसपी बस्तर का राजा है क्या.

बस्तर गये प्रतिनिधिमंडल में माकपा के छत्तीसगढ़ राज्य सचिव व केंद्रीय समिति सदस्य संजय पराते, जोशी-अधिकारी संसथान, नई दिल्ली से संबद्ध भाकपा सदस्य विनीत तिवारी, जेएनयू की प्राध्यापक तथा अ. भा. जनवादी महिला समिति की सदस्य प्रो. अर्चना प्रसाद और दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. नंदिनी सुंदर शामिल थे, ने 12-16 मई, 2016 तक बस्तर संभाग का दौरा किया था.

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में माओवादियों को राजनीतिक रूप से अलग-थलग करने के दौरान सबसे ज्यादा माकपा के कार्यकर्ताओँ ने ही अपने जान की कुर्बानी दी थी. आज भी पश्चिम बंगाल के ‘जंगल-महल’ में माकपा के कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमलें हो रहें हैं. माकपा सैद्धांतिक तथा वैचारिक रूप से सबसे ज्यादा इन नक्सलवादियों का विरोध करती है.

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