छत्तीसगढ़

PSC 2003: 50 की नौकरी खतरे में

बिलासपुर | संवाददाता: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के आदेश से 50 से ज्यादा अफसरों की नौकरी खतरे में हैं. इसमें कई डीएसपी तथा डिप्टी कलेक्टर शामिल हैं. उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को साल 2003 के पीएससी की मेरिट सूची फिर से बनाने के आदेश दिये हैं. अदालत ने माना है कि छत्तीसगढ़ पीएससी के 2003 के परीक्षा में मेरिट सूची बनाने में हेराफेरी हुई है.

अदालत ने 31 अक्टूबर तक नई मेरिट सूची बनाने का आदेश दिया है. जानकारी मुताबिक इससे 56 उम्मीदवारों के पदों में फेरबदल होगी. फैसले के अनुसार दोबारा साक्षात्कार नहीं होंगे. शुक्रवार को अदालत के फैसले के बाद कई अफसर रोते हुये बाहर निकले.

अदालत ने लेखाधिकारी राजीव सिंह चौहान को दो सप्ताह के भीतर बर्खास्त करने का आदेश दिया है. राजीव सिंह चौहान अनारक्षित वर्ग से हैं उसके बावजूद उनका चयन अनुसूचित जाति वर्ग के लिये आरक्षित पद पर हुआ है.

अदालत के फैसले के मुताबिक चयनित अभ्यार्थी अगर बाहर हो जाते हैं तो उनके अब तक के सेवाकाल की रिकवरी नहीं होगी. करीब 11 साल बाद आये छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फैसले से हड़कंप मच गया है.

अदालत के फैसले पर मुख्यमंत्री रमन सिंह ने कहा है कि हाईकोर्ट के फैसले की जानकारी मुझे मिली है, फैसले का विस्तृत अध्ययन करने के बाद सरकार फैसला लेगी. इसके लिये विधि सचिव और वरिष्ठ अधिकारियों को फैसले का अध्ययन करने का निर्देश दिया गया है.

छत्तीसगढ़ पीएससी के परीक्षा नियंत्रक अरुण कुमार मिश्रा ने अदालत के फैसले पर कहा है कि अभी उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश की कापी आयोग को प्राप्त नहीं हुई है. आयोग को हाईकोर्ट के आदेश की प्रति प्राप्त होते ही, जैसा निर्देश दिया गया होगा, हाईकोर्ट को जानकारी दी जायेगी.

गौरतलब है कि राज्य शासन के पास भर्ती के नियम बनाने तथा शिथिल करने का अधिकार है, अगर किसी संवैधानिक संस्था द्वारा कुछ अनियमिततायें होती हैं तो अनियमिततायें करने वाले को दंडित कर, विशेष शक्ति का प्रयोग कर पूर्व अधिकारियों को मौलिक अधिकार के तहत उऩकी नौकरी यथावत भी कर सकती है.

2003 में हुई पीएससी की परीक्षा को लेकर वर्षा डोंगरे ने एक याचिका हाईकोर्ट में दायर की थी कि परीक्षा में बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार हुआ है. इस मामले में रविंद्र सिंह और चमन सिंहा ने भी याचिका दायर की थी. इस मामले में शुरुआती बहसों के बाद याचिकाकर्ताओं ने खुद ही इस मामले में बहस और पैरवी की थी. कई सालों तक चली सुनवाई के बाद आज अदालत ने फैसला सुनाते हुये वर्षा डोंगरे को 5 लाख रुपये और शेष दो याचिकाकर्ताओं को 2-2 लाख रुपये की मुआवजा राशि भी देने के भी आदेश दिये हैं.

छत्तीसगढ़ में पीएससी भ्रष्टाचार का गढ़ बना रहा है. मनमाने तरीके से सवाल और कापियों में गड़बडी के मामले लगातार उजागर होते रहे हैं. आयोग के सदस्य और अध्यक्ष तक पैसे की बात करते कैमरों में कैद हुये हैं लेकिन राज्य सरकार ने कभी कोई कार्रवाई नहीं की. हालत ये हुई है कि राज्य सरकार ने तमाम तरह की गड़बड़ी करने वालों को हमेशा बचाने की ही कोशिश की है. ताज़ा मामले में फैसला आने के बाद फिलहाल राज्य सरकार के अधिकारी कुछ भी बोलने बताने से बच रहे हैं और अदालत के आदेश की कापी आने का हवाला दे रहे हैं.

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