छत्तीसगढ़

महानदी विवाद पर समिति गठित

नई दिल्ली | संवाददाता: केन्द्र ने महानदी विवाद पर समिति गठित की है. यह समिति तीन माह में अपनी रिपोर्ट देगी. यह समिति महानदी से संबंधित मौजूदा जल बंटवारा समझौतों पर भी गौर करेगी और इन नदियों के जल की उपलब्‍धता एवं उपयोग के संबंध में ओडिशा, छत्‍तीसगढ़, मध्‍य प्रदेश, महाराष्‍ट्र और झारखंड के दावों पर विचार करेगी. ओडिशा राज्य की शिकायत के संदर्भ में इस समिति का गठन किया गया है.

केंद्रीय जल आयोग के सदस्‍य इस समिति की अध्‍यक्षता करेंगे और इसमें 11 अन्‍य सदस्‍य होंगे. ओडिशा, छत्‍तीसगढ़, मध्‍य प्रदेश, महाराष्‍ट्र एवं झारखंड राज्‍यों और केंद्रीय कृषि मंत्रालय, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण, भारतीय मौसम विभाग और केंद्रीय जल आयोग के प्रतिनिधिगण भी इन सदस्‍यों में शामिल हैं.

जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय ने आईएसआरडब्‍ल्‍यूडी अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत महानदी और इसकी सहायक नदियों के जल की उपलब्‍धता एवं उपयोग का आकलन करने के लिए एक विचार-विमर्श समिति गठित की है.

गौरतलब है कि महानदी के पानी के बंटवारे को लेकर छत्तीसगढ़ तथा ओडिशा के बीच विवाद की स्थिति उत्पन्न हो गई है जिसके बाद ओडिशा सरकार ने केन्द्र से इसकी शिकायत की थी.

ओड़िशा सरकार ने वर्तमान के साथ-साथ प्रस्तावित निर्माण कार्यों पर भी रोक लगाने की मांग की है. ओड़िशा सरकार का कहना है कि छत्तीसगढ़ में महानदी पर बांध व बरॉज बनाने से ओड़िशा को सामाजिक, आर्थिक व पर्यावरणीय दृष्टिकोण से नुकसान हो रहा है.

उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 55 प्रतिशत हिस्से का पानी महानदी में जाता है. यह नदी और इसकी सहायक नदियों के कुल ड्रेनेज एरिया का 53.90 प्रतिशत छत्तीसगढ़ में, 45.73 प्रतिशत ओड़िशा में और 0.35 प्रतिशत अन्य राज्यों में है.

हीराकुंड बांध तक महानदी का जलग्रहण क्षेत्र 82 हजार 432 वर्ग किलोमीटर है, जिसमें से 71 हजार 424 वर्ग किलोमीटर छत्तीसगढ़ में है, जो कि इसके सम्पूर्ण जल ग्रहण क्षेत्र का 86 प्रतिशत है. हीराकुंड बांध में महानदी का औसत बहाव 40 हजार 773 एम.सी.एम. है.

इसमें से 35 हजार 308 एम.सी.एम. का योगदान छत्तीसगढ़ देता है, जबकि छत्तीसगढ़ द्वारा वर्तमान में लगभग 9000 एम.सी.एम. पानी का उपयोग किया जा रहा है, जो कि महानदी के हीराकुंड तक उपलब्ध पानी का सिर्फ 25 प्रतिशत है.

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