प्रसंगवश

एक था धरमजयगढ़

धरमजयगढ़ को आने वाले दिनों में याद करना पड़ेगा. लेकिन धरमजयगढ़ से पहले इतिहास के कुछ सूत्रों को समझना ज़रुरी है. प्रागैतिहासिक काल के बहुमूल्य अवशेष आज विस्थापन के मूल कारण हैं. लाखों-करोड़ों वर्ष पहले जो चीज जमीनदोंज हो गई थी, आज उसको प्राप्त करने के लिये युद्ध हो रहे हैं तथा लोगों को विस्थापन का दर्द सहना पड़ रहा है. वह प्रागैतिहासिक वस्तुएं हैं कोयला एवं तेल. दोनों ही वर्तमान काल में ऊर्जा के स्त्रोत हैं. इराक तथा लीबिया का युद्ध तेल के खेल का ही हिस्सा है. राजा-रजवाड़ों को भी जमीन के नीचे से निकाली गई बहुमूल्य धातुओं से प्रेम था तथा इसके लिये कई युद्ध लड़े गये थे. इतिहास इनके उदाहरणों से भरा पड़ा है.

छत्तीसगढ़ के धरमजयगढ़ के करीब अठारह हजार बाशिंदो को अपनी पुरखों द्वारा बसायी गई बस्तियों को छोड़ना पड़ेगा. कारण यह है कि वहां की जमीन के नीचे बारह करोड़ टन कोयले के दबे होने का पता चला है. यह 520 वर्ग किलोमीटर में फैले रायगढ़-मांड कोलफील्ड का हिस्सा है. एसईसीएल को शाहपुर-दुर्गापुर ब्लाक आवंटित किया गया है एवं डीबी पावर को दुर्गापुर-सरिया कोल ब्लाक आवंटित हुआ है. यहां पर क्षैतिज खनन होना है, जिससे धरमजयगढ़ के 15 में से 12 वार्ड को विस्थापना का दर्द झेलना पड़ेगा. बाकी के वार्डवासी तो पर्यावरण के दूषित हो जाने के कारण स्वंय विस्थापित हो जाना चाहेंगे.

डीबी पावर लिमिटेड, दैनिक भास्कर समूह की कंपनी है. इस कंपनी को छत्तीसगढ़ में 1320 मेगावॉट क्षमता का बिजली संयंत्र लगाने की अनुमति रमन सरकार ने दी है. यह संयंत्र उस श्रृंखला का हिस्सा है, जिसके तहत बिजली सरप्लस होने के बावजूद भी छत्तीसगढ़ में इनको बनाने वाली संयंत्रो की बाढ़ आ गयी है. सीधे तौर पर कहें तो बेचने के लिये ये बिजली संयंत्र लगाये जा रहे हैं और छत्तीसगढ़ की जनता को विस्थापन होना पड़ रहा है. धर्मजयगढ़ इसी कड़ी का एक कस्बा है.

ऐसा लगता है कि धरमजयगढ़ के लोगो के पुरखो ने अनजाने में ही एक प्रागैतिहासिक वस्तु के भंडार पर अपनी बस्ती बसा ली थी. यदि उन्हें मालूम होता कि भविष्य में उनकी संतानों को दंश झेलना पड़ेगा तो वे हरगिज यहां नही बसते. कोयला खनन के लिये धरमजयगढ़ के दो कॉलेजों को तोड़ा जायेगा. एक मस्जिद, एक चर्च एवं तीन मंदिरो को भी तोड़ा जाना है. इस आंधी से धर्मजयगढ़ का वर्षों पुराना किला, पंचायत भवन और जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान भी ढह जायेंगे.

अस्सी के दशक में रैगन-थैचर की जोड़ी का जुमला ही था कि सरकार, शासन करने के लिये है व्यापार करने के लिये नहीं. धीरे-धीरे पूरे विश्व में सरकारों ने जन कल्याणकारी योजनाओं से हाथ खींच लिया. व्यापारियों को छूट दी जाने लगी. सरकार ने अपने सारे कर्तव्य से मुंह मोड़ लिया.धरमजयगढ़ के लोगों को यदि विस्थापित होना पड़ रहा है तो उसके मूल में रैगन-थैचर के जुमले का अमलीकरण है.

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