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विकास हर आंख के आंसू पोछेगा

नई दिल्ली | समाचार डेस्क: आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है दहाई अंक का विकास हर आंख से आंसू की हर बूंद पोछ सकता है. इसमें अगले कारोबारी साल के लिए विकास दर आठ फीसदी से अधिक रहने का अनुमान जताया गया है और कहा गया है कि महंगाई में गिरावट आ रही है. इसमें व्यापक सुधार की रूपरेखा पेश की गई है, ताकि विकास को और बढ़ावा मिले, अतिशय खर्च घटे और पर्यावरण अनुकूल तरीके से निवेश को बढ़ावा मिले. केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा शुक्रवार को संसद में प्रस्तुत सर्वेक्षण मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम के नेतृत्व में विशेषज्ञों के एक दल ने तैयार की है. अर्थव्यवस्था की स्थिति पर सालाना रिपोर्ट कार्ड में कहा गया है कि विकास दर को अब और बढ़ाया जाना चाहिए और दहाई संख्या में विकास दर संभव है.

सर्वेक्षण में हालांकि कहा गया है, “आठ फीसदी अनुमानित विकास दर के साथ अनुमान यह है कि मानसून अनुकूल रहेगा.” साथ ही यह भी कहा गया है कि गरीबी मिटाने के लिए यह विकास दर जरूरी है.

इसमें कहा गया है, “दहाई अंकों में विकास दर हर आंख से आंसू की हर बूंद पोछ सकती है और देश के युवाओं की अभिलाषा पूरी कर सकती है.”

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर 2012-13 में 5.1 फीसदी थी. यह 2013-14 में बढ़कर 6.9 फीसदी हो गई और अब 2014-15 में और अग्रिम अनुमान के मुताबिक इसके बढ़कर 7.4 फीसदी रहने का अनुमान है.

महंगाई के बारे में इसमें कहा गया है कि 2013 के बाद से इसमें छह प्रतिशतांक से अधिक की गिरावट आ चुकी है. निर्यात और विदेशी पूंजी के आगम में भी मजबूती आ रही है. औद्योगिक विकास दर में भी तेजी आई है.

कृषि क्षेत्र के बारे में सर्वेक्षण में कहा गया है, “2014-15 के लिए अनाज उत्पादन 25.707 करोड़ टन रहने का अनुमान है, जो गत वर्ष के उत्पादन से 85 लाख टन अधिक होगा.”

सर्वेक्षण में कृषि उपज के लिए राष्ट्रीय बाजार बनाने के तीन चरणों का जिक्र किया गया है, जो हैं : फलों और सब्जियों को विनियमित वस्तुओं की सूची से बाहर निकालना, निजी क्षेत्र में वैकल्पिक या विशेषज्ञ बाजार बनाने के लिए नीतिगत सहयोग और विदेशी निवेश के लिए उदार नीति.

सर्वेक्षण में हाल के वर्षो में फलदायी निवेश में गिरावट का जिक्र किया गया है. इसमें कहा गया है कि पिछले कुछ सालों में निवेश की दर सकल पूंजी निर्माण, जीसीएफ आधार पर 2011-12 के 38.2 फीसदी से घटकर 2013-14 में 32.3 फीसदी रह गई है.

सब्सिडी के बारे में इसमें कहा गया है कि इससे गरीबों के जीवनस्तर में कोई विशेष बदलाव आया हो, ऐसा दिखाई नहीं पड़ता. वित्तीय स्थिति के बारे में सर्वेक्षण में कहा गया है कि सरकार वित्तीय घाटा कम करने के लिए प्रतिबद्ध है और राजस्व बढ़ाने पर प्रमुखता से ध्यान दिया जाएगा.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि 3,78,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी गरीबी से लड़ने के लिए सरकार के हाथ में सही हथियार नहीं हो सकती है जोकि जीडीपी का 4.24 फीसदी है.

इसमें खास तौर से कहा गया है कि वर्तमान सब्सिडी व्यवस्था में अधिक लाभ गरीबों की तुलना में अमीरों को मिल रहा है.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि सब्सिडी को समाप्त करना संभव नहीं है, लेकिन सब्सिडी को पसंद भी नहीं किया जा सकता है और जन धन योजना, आधार कार्ड और मोबाइल फोन से सब्सिडी को बेहतर तरीके से लक्षित किया जा सकता है.

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