कलारचना

फिर से रुला गई ‘नीरजा’……

मुंबई | मनोरंजन डेस्क: तीस साल बाद फिल्म ‘नीरजा’ ने लोगों को नीरजा भनोट की शहादत पर फिर से रोने को मजबूर कर दिया. इस फिल्म की कहानी ही ऐसी है कि एक तरफ इससे एक जांबाज लड़की पर गर्व होता है तो दूसरी तरफ उस मासूस की मौत का गम भी होता. जिस नीरजा भनोट को देशवासी भूल से गये थे उसे फिल्म ‘नीरजा’ ने फिर से याद दिला दिया है. जिस दिन का करोड़ो हिंदुस्तानियों को इंतजार था वो 19 फरवरी 2016 के नाम से दर्ज हुआ. ‘नीरजा’ रिलीज हुई और अब इस रिलीज के साथ ही नीरजा भनोट हर घर में पहुंच गई है. कम बजट की इस फिल्म को रिलीज के दिन ही देश में 4.7 करोड़ रुपये की ओपनिंग मिली है.

दर्शकों के इस प्रकार के रिस्पांस से फिल्म के निर्माता के साथ ही पूरी टीम खुश है. पैसों के अलावा फिल्म देखकर निकलते हर दर्शक के चेहरे पर एक चमक दिखी, एक गर्वीला एहसास जो मानो यह बता रहा हो कि नीरजा जैसी वीरांगनों के कारण मादरे हिंद अपनी विशिष्ट पहचान रखता है. महिलाओं और युवतियां जो एक दूसरे को जानती तक नहीं थी, वो भी आपस में नीरजा को लेकर चर्चा कर रहीं थी. किसी भी सिनेमा को लेकर ऐसा आजकल अमूमन कम ही होता है. वरना लोग सिनेमा देखते हैं पॉपकार्न खाते हैं और अपने रास्ते चले जाते हैं.

राम माधवानी की मेहनत तब सफल दिखती है, जब हॉल में बैठे हर एक दर्शक का हाथ उसकी आंखों की ओर जाता है और वो आंख दबा लेता है.

सोनम कपूर और शबाना आजमी अपने-अपने किरदारों के लिए सभी ओर से तारीफें ही बटोर रही हैं. माधवानी की ‘नीरजा’ ने हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि खाड़ी देशों में भी पहले दिन परचम लहराया है. वहां फिल्म ने 1 लाख 35 हजार डॉलर के साथ ओपनिंग की है. महिला नायिका पर आधारित किसी भी फिल्म को खाड़ी देशों में यह अब तक का सबसे शानदार रिस्पांस है.

फिल्म ‘नीरजा’ एक वास्तविक घटना पर आधारित है. 23 साल की नीरजा भनोट ने 5 सितंबर 1986 को हाईजैक हुए पैमएम फ्लाइट 73 में सवार 359 लोगों की जान अपनी जान देकर बचाई थी. नीरजा ने कैसे लोगों की जान बचाई और अपनी जान देने में क्यों कोई गुरेज नहीं किया वो भी 23 साल की उम्र में. इसी पूरी घटनाक्रम पर यह फिल्म आधारित है.

शुक्रवार को रिलीज होने के साथ ही फिल्म ने सिनेमाघरों में अपनी शानदार मौजूदगी दर्ज कराई है. देश के हर कोने से ‘नीरजा’ को सलाम मिल रहा है. फिल्म का निर्देशन राम माधवानी ने किया है और फिल्म का निर्माण फॉक्स स्टार स्टूडियो और ब्लिंग अनप्लग्ड ने किया है.

फिल्म के सह निर्माता और प्रसिद्ध फोटोग्राफर अतुल कासबेकर कहते हैं, “लोगों से मिले रिस्पांस से हम गदगद हैं, हमारा आत्मविश्वास काफी बढ़ा है. नीरजा की कहानी से यह बात पानी की तरह साफ हो गई है कि किसी भी फिल्म के लिए कहानी/कॉन्टेन्ट प्राइमरी होता है. उसके बाद सारी चीजें मायने रखती हैं. समय के साथ लोग इस कहानी को और ज्यादा अपनाएंगे, अभी तो बस शुरूआत हुई है.”

कासबेकर ने कहा, “फिल्म की शुरुआत में मैं और राम माधवनी ने यह कहा था कि जिस उद्देश्य से हम फिल्म बना रहे हैं उसी भाव को हमें अंत तक रखना है. ऐसा हुआ भी, हमने और हमारी टीम ने पूरी ईमानदारी, निष्ठा लगन और जुनून से नीरजा प्रोजेक्ट में काम किया. जैसा नीरजा थी और जो उन्होंने किया अब आपके सामने है.”

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