राष्ट्र

कल होगा आने वाले कल का फैसला

नई दिल्ली | बीबीसी: कल याने गुरुवार को आने वाले कल का संकेत मिलेगा. गुरुवार को देश के पांच राज्यों में हुये विधानसभा चुनाव के नतीजें सामने आयेंगे जिससे आने वाले समय में देश की राजनीति किस ओर जायेगी इसका संकेत छिपा होगा. पांच राज्यों में सबसे ज्यादा बेसब्री से पश्चिम बंगाल तथा असम के विधानसभा चुनाव परिणामों की प्रतीक्षा की जा रही है. पाँच राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव परिणाम दोनों मुख्य राजनीतिक दलों के लिए बड़े संदेश लेकर आएंगे. इनसे पता लगेगा कि प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने की ‘बीजेपी की महत्वाकांक्षा’ और घटते प्रभाव के ‘कांग्रेसी ख़तरे’ कितने वास्तविक हैं.

ये क्षेत्रीय चुनाव हैं. इनका आपस में कोई रिश्ता नहीं है, पर इनके भीतर छिपा राष्ट्रीय संदेश भी होगा. दोनों पार्टियों को इन परिणामों के मद्देनजर कुछ बड़े फैसले करने होंगे. शायद कांग्रेस अब राहुल गांधी को पार्टी का पूर्ण अध्यक्ष घोषित कर दे.

पिछले साल बिहार में बीजेपी की पराजय का कोई संदेश था तो असम में जीत का संदेश भी होगा. इससे बीजेपी को ‘पैन इंडिया’ छवि बनाने का मौका मिलेगा.

अलबत्ता यह देखना होगा कि दोनों पार्टियाँ इन परिणामों को लेकर किस तरह दिल्ली वापस आएंगी और अपने समर्थकों को क्या संदेश देंगी. ये परिणाम अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को भी प्रभावित करेंगे. खासतौर से उत्तर प्रदेश को.

इन परिणामों से क्षेत्रीय राजनीति के बदलते समीकरणों पर भी रोशनी पड़ेगी. दो महत्वपूर्ण महिला क्षत्रपों का भविष्य भी इन चुनावों से जुड़ा है. फिलहाल ‘दीदी’ की राजनीति उठान पर और ‘अम्मा’ की ढलान पर जाती नज़र आती है.

इस बात का संकेत भी मिलेगा कि 34 साल तक वाममोर्चे का गढ़ रहा पश्चिम बंगाल क्या ‘वाम मुक्त भारत’ का नया मुहावरा भी देगा? यह सवाल उठेगा कि वामपंथी पार्टियों की राष्ट्रीय अपील घटते-घटते हिन्द महासागर के तट से क्यों जा लगी है?

इन परिणामों में जो नई बातें जाहिर होंगी, उनमें सबसे महत्वपूर्ण है भारतीय जनता पार्टी का चार राज्यों में प्रदर्शन. असम में यदि उसे पूर्ण बहुमत मिला या वह सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी तो यह एक नई शुरूआत होगी.

यह सफलता उसे असम की जटिल जातीय और क्षेत्रीय संरचना और ‘अपने-पराए’ पर केंद्रित राजनीति के कारण मिलेगी. यह शेर की सवारी है, आसान नहीं. पिछले तीन दशक से असम किसी न किसी प्रकार के आंदोलनों से घिरा है. बीजेपी के लिए यह एक अवसर साबित हो सकता है और काँटों का ताज भी.

असम में 30 फ़ीसदी से ज़्यादा मुसलमान वोट हैं. चुनाव परिणाम बताएंगे कि मुसलमान वोटों की भूमिका इस बार क्या रही. असम विधानसभा चुनाव में पिछली बार मौलाना बदरूद्दीन अजमल के असम युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट 18 सीटें हासिल करके देश का ध्यान खींचा था.

हवा में यह बात है कि विधानसभा त्रिशंकु रही तो यह पार्टी बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना सकती है, जैसा जम्मू-कश्मीर में हुआ. बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार सर्बानंद सोनोवाल ने ऐसे गठबंधन की संभावना को खारिज किया है.

सारी बातें चुनाव परिणामों पर निर्भर करेंगी. बीजेपी बड़ी विजय की उम्मीद कर रही है. यह उम्मीद तभी पूरी होगी, जब उसके पक्ष में मुसलमानों का वोट भी पड़े. क्या ऐसा होगा? पार्टी के नेता हिमन्त विश्व शर्मा का दावा है कि भाजपा को मुस्लिम वोट मिले हैं.

बीजेपी ने पिछले पाँच साल में एक लंबी यात्रा तय की है. सन 2011 के इन पाँच राज्यों के चुनाव में उसके पाँच सौ से ज्यादा प्रत्याशी खड़े हुए थे. सीटें मिली थीं कुल पाँच. तब किसी का ट्वीट था ‘बीजेपी का इस चुनाव में लड़ना, जैसे कनाडा का वर्ल्ड कप खेलना.’
बंगाल, तमिलनाडु और केरल में बीजेपी खाता खोलने में सफल हुई तो यह उसकी उपलब्धि होगी. ऐसा हुआ तो वह उसे अपनी राष्ट्रीय पैठ साबित करने का मौक़ा मिलेगा.

बंगाल में वाम मोर्चा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन कर जुआ खेला है. चौंतीस साल तक बंगाल की सत्ता में वाम मोर्चे के बने रहने से वहाँ की संस्कृति में गहरा लाल रंग बुरी तरह घुल गया था. ममता बनर्जी की वापसी का मतलब है वाम मोर्चा के विदाई गीत का लिखा जाना.

पिछले चुनाव में तृणमूल और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा था. इसबार कांग्रेस और वाम मोर्चा ने एक-दूसरे का दामन थामा था. यह एक नई राजनीति है और इसके निहितार्थ सामने आएंगे.

बंगाल की राजनीति में हिंसा का गहराई तक प्रवेश हो चुका है. किसी ने कहा कि बंगाल तो तरबूज है, बाहर से हरा, भीतर से लाल. क्या इसमें भगवा रंग की गुंजाइश भी है? इस चुनाव से पता लगेगा.

केरल और तमिलनाडु में स्ट्राइक रोटेशन की राजनीति है. दोनों राज्यों में ‘एंटी इनकम्बैंसी’ महत्वपूर्ण साबित होती है. पिछले साल नवंबर में चेन्नई में आई बाढ़ जयललिता सरकार को बहा ले गई.

द्रमुक में सत्ता परिवर्तन का दौर है. के करुणानिधि ने अपनी उम्र को देखते हुए अपने उत्तराधिकारी को तैयार कर लिया है. जयललिता के साथ अभी उम्र है, पर उनकी पार्टी में उत्तराधिकारी कैसे तय होगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है.

द्रमुक सरकार बनी तो संभव है अभी करुणानिधि मुख्यमंत्री पद संभालें. पर कुछ समय बाद एमके स्टैलिन ही नेता बनेंगे.

तमिलनाडु में दोनों प्रमुख दलों के समांतर एक नया गठबंधन भी तैयार हुआ है. तमिल फिल्म अभिनेता विजयकांत की पार्टी डीएमडीके और पीपुल्स वेलफेयर फ्रंट का मोर्चा काफी विश्वास के साथ इसबार चुनाव में उतरा है. इसके प्रदर्शन पर नजर रखनी होगी.

केरल में लंबे अरसे से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सक्रिय है. पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 139 सीटों पर अपने प्रत्याशी खड़े किए, पर जीता कोई नहीं. इसबार उसने चार पार्टियों के साथ गठबंधन किया है. उसे कुछ सीटें मिलीं तो इस राज्य में तीसरी ताक़त का प्रवेश होगा.

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