विविध

विलुप्त हो रहे हिमालयी गिद्ध

देहरादून | एजेंसी: हिमालयी गिद्धों की लगातार हो रही मौत के कारण विशाल पक्षी की यह प्रजाति विलुप्त होती जा रही है. हाल ही में एक जगह 17 हिमालयी गिद्धों के शव पाए गए. इन गिद्धों की मौत जहरीले पदार्थ के कारण होने की आशंका जताई गई है.

उत्तराखंड में ऊधम सिंह नगर जिले के नादेही गांव के पास पांच दिन पूर्व 17 हिमालयी गिद्धों के शव मिले और चार गंभीर अवस्था में पाए गए थे. वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, शवों के पास ही एक भैंस का शव भी पाया गया था. इसी आधार पर वनकर्मियों ने दावा किया था कि गिद्धों ने भैंस का शव खाया होगा और भैंस के दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए उपयोग किए जाने वाले ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन के कारण भैंस के शरीर में जहर फैल गया होगा.

ज्ञात हो कि ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित किया जा चुका है. मुख्य वन संरक्षक (कुमाऊं) परमजीत सिंह ने जहर के कारण गिद्धों के मरने की पुष्टि की है.

वनाधिकारियों के इस दावे के विपरीत नैनीताल स्थित पशु चिकित्सा अधिकारी डा. योगेश भारद्वाज ने इस दावे का खंडन करते हुए दावा किया कि प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि गिद्धों की मौत भैंस का शव खाने से नहीं, बल्कि जहरीला पदार्थ खाने की वजह से हुई है. उन्होंने कहा कि यह अवश्य हो सकता है कि गिद्धों को मारने के लिए भैंस के शव पर कोई जहरीला पदार्थ डाला गया हो.

उन्होंने कहा कि ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन के अन्य साइडइफेक्ट (दुष्परिणाम) अवश्य है, लेकिन यह संभव नहीं है कि भैंस का शव खाने से गिद्ध मर जाएं. वर्ष 2007 के पक्षी सर्वेक्षण में राज्य में कुल डेढ़ हजार की संख्या वाले विलुप्त हो रहे इन हिमालयी गिद्धों की संख्या बढ़ने की संभावना व्यक्त की जा रही थी, लेकिन बड़ी संख्या में गिद्धों के मारे जाने से वन्यजीव प्रेमियों में रोष है.

पक्षियों पर उल्लेखनीय कार्य के लिए सम्मानित खटीमा के रहने वाले प्रेम मलिक के अनुसार, गिद्धों की यह प्रजाति उत्तराखंड के तराई व ऊंची पर्वतीय इलाकों में आजकल देखी जा रही थी. मलिक ने गिद्धों को जहर देकर मारे जाने की घटना की राज्य सरकार से उच्चस्तरीय जांच की मांग की है.

मुख्य वन संरक्षक (कुमाऊं) ने बताया कि हरियाणा में पिजौंर स्थित गिद्ध अनुसंधान संस्थान, उत्तराखंड में पंतनगर स्थित पक्षी अनुसंधान केंद्र व उत्तर प्रदेश में बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा विज्ञान अनुसंधान केंद्र 17 गिद्धों के बिसरा जांच के लिए भेजे गए हैं.

नादेही स्थित घटनास्थल पर गिद्धांे के 17 शव बरामद किए गए थे, जबकि चार गिद्ध गंभीर रूप से बीमार पाए गए थे. चार गंभीर रूप से घायल गिद्धों के मुंह से खून रिस रहा था, जिसके आधार पर डा. भारद्वाज ने जहरीला पदार्थ खिलाने का दावा किया है.

उपचार के दौरान मारे गए चार गिद्धों के शवों के पोस्टमार्टम करने के आदेश अब भी चिकित्सकों को नहीं मिले हैं, जबकि चार दिन पूर्व ही चिकित्सकों ने वनाधिकारियों को शेष चार गिद्धों के मारे जाने की सूचना भी दे दी थी.

हिमालयी गिद्धों की लगातार हो रही मौत के कारण विशाल पक्षी की यह प्रजाति विलुप्त होती जा रही है. हाल ही में एक जगह 17 हिमालयी गिद्धों के शव पाए गए. इन गिद्धों की मौत जहरीले पदार्थ के कारण होने की आशंका जताई गई है. उत्तराखंड में ऊधम सिंह नगर जिले के नादेही गांव के पास पांच दिन पूर्व 17 हिमालयी गिद्धों के शव मिले और चार गंभीर अवस्था में पाए गए थे. वन विभाग के अधिकारियों के अनुसार, शवों के पास ही एक भैंस का शव भी पाया गया था. इसी आधार पर वनकर्मियों ने दावा किया था कि गिद्धों ने भैंस का शव खाया होगा और भैंस के दूध की मात्रा बढ़ाने के लिए उपयोग किए जाने वाले ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन के कारण भैंस के शरीर में जहर फैल गया होगा.

ज्ञात हो कि ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित किया जा चुका है. मुख्य वन संरक्षक (कुमाऊं) परमजीत सिंह ने जहर के कारण गिद्धों के मरने की पुष्टि की है.

वनाधिकारियों के इस दावे के विपरीत नैनीताल स्थित पशु चिकित्सा अधिकारी डा. योगेश भारद्वाज ने इस दावे का खंडन करते हुए दावा किया कि प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि गिद्धों की मौत भैंस का शव खाने से नहीं, बल्कि जहरीला पदार्थ खाने की वजह से हुई है. उन्होंने कहा कि यह अवश्य हो सकता है कि गिद्धों को मारने के लिए भैंस के शव पर कोई जहरीला पदार्थ डाला गया हो.

उन्होंने कहा कि ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन के अन्य साइडइफेक्ट (दुष्परिणाम) अवश्य है, लेकिन यह संभव नहीं है कि भैंस का शव खाने से गिद्ध मर जाएं. वर्ष 2007 के पक्षी सर्वेक्षण में राज्य में कुल डेढ़ हजार की संख्या वाले विलुप्त हो रहे इन हिमालयी गिद्धों की संख्या बढ़ने की संभावना व्यक्त की जा रही थी, लेकिन बड़ी संख्या में गिद्धों के मारे जाने से वन्यजीव प्रेमियों में रोष है.

पक्षियों पर उल्लेखनीय कार्य के लिए सम्मानित खटीमा के रहने वाले प्रेम मलिक के अनुसार, गिद्धों की यह प्रजाति उत्तराखंड के तराई व ऊंची पर्वतीय इलाकों में आजकल देखी जा रही थी. मलिक ने गिद्धों को जहर देकर मारे जाने की घटना की राज्य सरकार से उच्चस्तरीय जांच की मांग की है.

मुख्य वन संरक्षक (कुमाऊं) ने बताया कि हरियाणा में पिजौंर स्थित गिद्ध अनुसंधान संस्थान, उत्तराखंड में पंतनगर स्थित पक्षी अनुसंधान केंद्र व उत्तर प्रदेश में बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा विज्ञान अनुसंधान केंद्र 17 गिद्धों के बिसरा जांच के लिए भेजे गए हैं.

नादेही स्थित घटनास्थल पर गिद्धांे के 17 शव बरामद किए गए थे, जबकि चार गिद्ध गंभीर रूप से बीमार पाए गए थे. चार गंभीर रूप से घायल गिद्धों के मुंह से खून रिस रहा था, जिसके आधार पर डा. भारद्वाज ने जहरीला पदार्थ खिलाने का दावा किया है.

उपचार के दौरान मारे गए चार गिद्धों के शवों के पोस्टमार्टम करने के आदेश अब भी चिकित्सकों को नहीं मिले हैं, जबकि चार दिन पूर्व ही चिकित्सकों ने वनाधिकारियों को शेष चार गिद्धों के मारे जाने की सूचना भी दे दी थी.

error: Content is protected !!