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ये था देश का पहला घोटाला

नई दिल्ली | संवाददाता: लालू यादव पर जिस चारा घोटाले में मुकदमा चलेगा, वह एक करोड़ रुपये से भी कम का है. जाहिर है, जब आज हज़ार हज़ार करोड़ रुपये के घोटाले हो रहे हों तब यह रक़म छोटी लग सकती है लेकिन चारा घोटाला जब सामने आया था, उस समय यह देश ही नहीं दुनिया भर का सबसे चर्चित घोटाला था. हालांकि पूरे चारा घोटाले की बात करें तो वह 900 करोड़ रुपये के आसपास का है.

गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले में आपराधिक साजिश रचने का मुकदमा चलाने को हरी झंडी दे दी है. सीबीआई की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया. इससे पहले झारखंड हाईकोर्ट ने कहा था कि जिसे बरी किया जा चुका हो या जिसे दोषी ठहराया जा चुका हो, उसके खिलाफ फिर से मामला चलाने का कोई अर्थ नहीं है.

चारा घोटाले की फाइल फिर से खुलने के साथ ही देश में पुराने घोटालों की याद ताज़ा हो गई है. देश में चाहे कांग्रेस की सरकार रही हो, चाहे भाजपा की, घोटालों में कभी कमी नहीं आई. भारतीय जनता पार्टी के राज में कारगिल ताबूत घोटाले से लेकर प्रतिभूति, उर्वरक जैसे घोटालों की एक लंबी फेहरिश्त है.

लेकिन यह बात कम ही पाठकों को पता होगा कि देश का पहला घोटाला नेहरु राज में हुआ था. ए जी नूरानी की किताब मिनिस्टर्स मिस्कंडक्ट में विस्तार से इस घोटाले का जिक्र है. भारत के रक्षा मंत्री वी के कृष्ण मेनन बिटेन में भारत के उच्चायुक्त थे. कश्मीर पर पाकिस्तान का हमला हुआ था. सेना को करीब 4600 जीपों की जरुरत थी. सेना का एक प्रतिनिधिमंडल बिटेन गया, लेकिन बात नहीं बनी. यह 1948 का किस्सा है.

सरकार को लगा कि ऐसे ब़ड़े काम के लिये मेनन साहब को क्या कहा जाये लेकिन मेनन साहब खुद ही खरीदी में कूद पड़े. सरकार ने अमरीका की एक कंपनी से करार किया था, पहले उसे रद्द करवाया और भारत सरकार को तार भेजा कि 1500 जीप तैयार हैं, मंगवा लें. कीमत थी- 300 पाउंड प्रति जीप. मजेदार ये कि रक्षा सौदों के लिये वह कंपनी ऐंटी मिस्टांटेस अधिकृत ही नहीं थी. और 300 पाउंड में एक जीप बेचने वाली इस कंपनी की कुल जमा पूंजी थी 600 पाउंड. सरकार ने 2000 जीपों का आर्डर दिया और 65 पतिशत एडवांस.

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 9 माह बाद 1949 में 155 जीपें सप्लाई की गईं. मद्रास बंदरगाह पर पहुंची ये जीपें कबाड़ की तरह थीं और कहते हैं कि सर्विस कराने के बाद भी वो इस लायक नहीं थीं कि उन्हें चलाया जा सके. संसद में हंगामा हुआ और कंपनी के साथ का सौदा रद्द हुआ. हालांकि बाद में नामक कंपनी का कहीं अता-पता नहीं चला.

वी के कृष्ण मेनन ने हार नहीं मानी. उन्होंने एक और कंपनी तलाशी- एस सी के एजेंसीज. तय हुआ कि यह कंपनी हर महीने 68 जीप सप्लाई करेगी. पूरे दो साल गुजर गये और दो साल में यह कंपनी 50 जीपें भी सप्लाई नहीं कर पाई.

मेनन साहब विद्वान आदमी थे और बहादूर भी. जीपों का मामला सुलझा भी नहीं कि वे रायफलों की खरीदी में भीड़ गये. जेसी केनाट नामक एक कंपनी से मेनन साहब ने करार करवाया. तय हुआ कि 3 करोड़ रुपये के इस सौदे में 90 दिन में रायफलों की सप्लाई की जाएगी. ऐसा नहीं हुआ तो रक्षा मंत्रालय को लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ है. उसने करार रद्द करने की बात की. मेनन साहब फिर अड़ गये. कहा कि ऐसा करते हैं कि रायफल तो मिली नहीं, इस कंपनी से रेलवे के लिये स्टील की प्लेट खरीद लेते हैं. 6 महीने हो गये, स्टील की प्लेटें भी नहीं पहुंची.

अस्थाई संसद थी. लेकिन घपला तो घपला था. कांगेस पार्टी ने अनंत शयनम अयंगार की अध्यता में एक कमेटी बनाई, जिसने पूरे मामले की जांच की. मेनन साहब धरा गये, उनकी गड़बड़ी सामने आ गई. मेनन साहब की ईमानदारी कि उन्होंने अपना दोष भी स्वीकार कर लिया. लेकिन यह किस्सा 1955 का है. तब के अपने गृहमंत्री गोविंद वल्लभ पंत ने घोषणा की कि जीप कांड की फाइल हम बंद कर रहे हैं और संसद के कोई सदस्य अगर इससे संतुष्ट न हों तो वो इसे चुनाव में मुद्दा बना सकते हैं.

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