छत्तीसगढ़

हमने देखी है फांसी

रायपुर | संवाददाता: यह फांसी की पहली आंखों देखी रिपोर्टिंग थी. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के सेंट्रल जेल में 25 अक्टूबर 1978 को बैजू ऊर्फ रामभरोसा को फांसी दी गई थी. दावा है कि हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में किसी फांसी की यह पहली आंखों देखी रिपोर्टिंग है.

इन दिनों रायपुर से प्रकाशित शाम के अखबार ‘छत्तीसगढ़’ का संपादन करने वाले सुनील कुमार से कुछ समय पहले आलोक पुतुल ने फांसी की उस रिपोर्टिंग पर लंबी बातचीत की थी. यहां इस बातचीत को आप सुन सकते हैं.

यह ध्यान रहे कि देशबंधु अख़बार ने सबसे पहले फांसी की यह रिपोर्ट 26 अक्टूबर 1978 के अंक में प्रकाशित की थी. तब रिपोर्टर के बतौर दो लोगों के नाम प्रकाशित हुये थे- गिरिजा शंकर और सुनील कुमार. बाद में सुनील कुमार की किताब ‘आजकल’जब प्रकाशित हुई तो इसमें गिरिजा शंकर के नाम का उल्लेख नहीं था. इस बातचीत में भी सुनील कुमार ने इस बात का उल्लेख नहीं किया है और यही जताया है कि फांसी देखने की अनुमति लेने से लेकर रिपोर्ट लिखने तक का सारा काम उन्होंने अकेले किया था.

कुछ वर्षों बाद गिरिजा शंकर ने ‘आंखों देखी फांसी‘ नाम से एक पूरी किताब ही लिखी. इस बहुचर्तित किताब में हालांकि इस बात का उल्लेख है कि रिपोर्टिंग में गिरिजा शंकर के अलावा सुनील कुमार भी शामिल थे.

One thought on “हमने देखी है फांसी

  • वैभव शिव

    जितना रोमांचकारी रिपोर्टिंग सुनील कुमार सर के लिए थी, उतना ही रोमांच का अनुभव शायद सर आप सुनील सर बातचीत करते हुए किए होंगे…उतना ही रोमांच का अनुभव मैंने इस बातचीत को सुनकर किया…मैं इस बातचीत को सुनकर अब किसी को फांसी कैसे दी जाती है , होता क्या है ये इस बातचीत के आधार पर लोगों को बता सकता हूँ….इस बातचीत फांसी के बारे में जानने वाले हर किसी को सुनना चाहिए….

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