राष्ट्र

जयललिता को दफनाया गया

नई दिल्ली | संवाददाता: जे जयललिता के पार्थिव शरीर को मरीना बीच पर दफनाया गया. मंगलवार शाम तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे जयससिता को पूरे राजकीय सम्मान के साथ शाम को चेन्नई के मरीना बीच पर उनके राजनीतिक गुरु एमजी रामचंद्रन की समाधि के पास दफनाया गया. उनकी क़ब्र के पास ही द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेता और डीएमके के संस्थापक अन्नादुरै की भी क़ब्र है, अन्नादुरै तमिलनाडु के पहले द्रविड़ मुख्यमंत्री थे. एमजीआर पहले डीएमके में ही थे लेकिन अन्नादुरै की मौत के बाद जब पार्टी की कमान करुणानिधि के हाथों चली गई तो कुछ सालों के बाद वो पुराने राजनीतिक दल से अलग हो गए और एआईएडीएमके की नींव रखी.

गौरतलब है कि जे जयललिता का जन्म एक आयंगर ब्राम्हण परिवार में हुआ था जहां दफनाने की परंपरा नहीं है. जे जयललिता के पार्थिव शरीर को चंदन की लकड़ी से बने ताबूत में दफनाया गया. अंतिम संस्कार से जुड़े लोग इसकी वजह द्रविड़ आंदोलन को मानते हैं.

द्रविड़ आंदोलन के बड़े नेता रहे पेरियार, अन्ना दुरई और एमजी रामचंद्रन जैसी शख्सियतों को दफनाया गया था इसीलिये जब जयललिता को अंतिम संस्कार की बारी आई तो दाह संस्कार की बजाये चंदन और गुलाब जल के साथ दफनाने का फैसला हुआ. द्रविड़ आंदोलन से जुड़े नेता नास्तिक होते हैं और सैद्धांतिक रूप से ईश्वर को नहीं मानते.

हमेशा प्रार्थना करने वाली और आयंगर नमम लगाने वाली जयललिता के बारे में तर्क दिया गया कि वो किसी जाति और धर्म की पहचान से अलग थीं.

एमजीआर के समर्थकों को यकीन है कि मरीना बीच पर आज भी एमजीआर की घड़ी के टिकटिक करने की आवाज सुन सकते हैं. दरअसल बड़े नेताओं को दफनाये जाने के बाद समाधि बनाये जाने का चलन है. इसलिये भी कहा जाता है दफनाये जाने से समर्थकों को एक स्मारक के रूप में याद करने में सहूलियत होती है.

कौन थे पेरियार ईवी रामास्वामी

ईवी रामास्वामी एक तमिल राष्ट्रवादी, राजनेता और सामाजिक कार्यकर्ता थे. इनके प्रशंसक इन्हें आदर के साथ ‘पेरियार’ संबोधित करते थे. इन्होने ‘आत्म सम्मान आन्दोलन’ या ‘द्रविड़ आन्दोलन’ प्रारंभ किया था. उन्होंने जस्टिस पार्टी का गठन किया जो बाद में जाकर ‘द्रविड़ कड़गम’ हो गई. वे आजीवन रुढ़िवादी हिन्दुत्व का विरोध करते रहे और हिन्दी के अनिवार्य शिक्षण का भी उन्होने घोर विरोध किया. बाल विवाह, देवदासी प्रथा, विधवा पुनर्विवाह के विरूद्ध अवधारणा, स्त्रियों तथा दलितों के शोषण के पूर्ण विरोधी थे. उन्होने हिन्दू वर्ण व्यवस्था का भी बहिष्कार किया.

उन्होंने दक्षिण भारतीय समाज के शोषित वर्ग के लिये आजीवन कार्य किया. उन्होंने ब्राह्मणवाद और ब्राह्मणों पर करारा प्रहार किया और एक पृथक राष्ट्र ‘द्रविड़ नाडु’ की मांग की. पेरियार ईवी रामास्वामी ने तर्कवाद, आत्म सम्मान और महिला अधिकार जैसे मुद्दों पर जोर दिया और जाति प्रथा का घोर विरोध किया.

उन्होंने दक्षिण भारतीय गैर-तमिल लोगों के हक़ की लड़ाई लड़ी और उत्तर भारतियों के प्रभुत्व का भी विरोध किया. उनके कार्यों से ही तमिल समाज में बहुत परिवर्तन आया और जातिगत भेद-भाव भी बहुत हद तक कम हुआ.

यूनेस्को ने अपने उद्धरण में उन्हें ‘नये युग का पैगम्बर, दक्षिण पूर्व एशिया का सुकरात, समाज सुधार आन्दोलन के पिता, अज्ञानता, अंधविश्वास और बेकार के रीति-रिवाज़ का दुश्मन’ कहा.

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