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जंक फूड के जहर से बचना जरुरी

डॉ. संजय शुक्ला
जंक फूड को लेकर हाल ही में केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा बच्चों के बढ़ते मोटापे की समस्या पर गठित एक विशेषज्ञ समिति ने यह सुझाव दिया है कि स्कूलों में तथा इसके आस-पास 200 मीटर के दायरे में जंक फूड की बिक्री व उपलब्धता पर प्रतिबंध लगाया जाये. इन खाद्य पदार्थों पर अतिरिक्त टैक्स लगाने की सिफारिश भी की गई है. ‘कंजम्प्शन ऑफ फैट शुगर एंड साल्ट एंड इट्स हेल्थ इफेक्ट ऑन इंडियन पॉपुलेशन’ नाम की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में जंक और अस्वास्थयकर भोजन के उपयोग को कम करने अथवा प्रतिबंधित करने की अत्यंत आवश्यकता है.

यह अतिश्योक्ति नहीं होगी कि कल के भारत के लिए बच्चों, किशोरों एवं युवाओं में जंक फूड या फास्ट फूड की बढ़ती लत सबसे बड़ी चिंता का सबब है. भागदौड़ भरी आधुनिक जिंदगी में जंक फूड यानि प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों ने लोगों के खान-पान में अपनी गहरी पैठ बना ली है. लेकिन यह न केवल हमारे स्वास्थ्य को हानि पहुंचा रहा है वरन् यह लोगों की कार्य क्षमता को भी कम कर रहा है. रिपोर्ट के अनुसार देश में गैर-संचारी रोगों जैसे उच्च रक्तचाप, डायबिटीज (मधुमेह) और हृदरोग जैसे बीमारियों के बढ़ते आंकड़ो के मद्देनजर ‘जंक फूड’ पर शिकंजा कसा जाना जरुरी है.

आधुनिक जीवन शैली व अस्वास्थ्यकर खान-पान के कारण देश में गैर-संचारी रोगों से पीडि़त मरीजों की संख्या में लगातार इजाफा जो रहा है, इन रोगों का बड़ी संख्या में बच्चे, किशोरों और युवा भी शिकार हो रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक देश में साल 2020 तक गैर-संचारी रोगों से मरने वालों की संख्या 80 लाख तक पहुंॅच जायेगी जो पिछले दो दशकों के पहले होने वाली मौतों की तुलना में 100 फीसदी ज्यादा है. समिति ने जंक फूड की श्रेणी में पिज्जा, बर्गर और शीतल पेय जैसे पदार्थों सहित समोसा, पैटीज और पकौड़े को भी शामिल किया है.

इन खाद्य व पेय पदार्थों में कार्बोहाइड्रेट, शक्कर, सोडियम, फैट, प्रोटीन, जहरीले प्रिजर्वेटिव, घातक रंग और फास्पोरिक एसिड व ट्रांस-फैट की अत्यधिक मात्रा होती है जो शरीर के लिए घातक साबित हो रहा है. समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि फास्ट फूड व कोल्ड ड्रिंक जैसे खाद्य व पेय पदार्थों के लेबलिंग को ज्यादा स्पश्ट किया जावे तथा इसमें प्रयुक्त घटकों की मात्रा का स्पश्ट उल्लेख किया जावे ताकि उपभोक्ता यह समझ सके कि यह खाद्य या पेय पदार्थ उसके स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव डाल सकता है.

गौरतलब है कि इस समिति ने पहली बार ‘जंक फूड’ को परिभाशित किया है जबकि इससे पहले खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम 2006 में यह परिभाशित ही नहीं था. जंक फूड के इतिहास पर गौर करें तो अमेरिकी वैज्ञानिक माइकल जेकोबसन ने वर्श 1972 में ‘‘जंक फूड’’ शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया तो उनका आशय इस फूड से कबाड़ जैसे खाने से था. उन्होंने इस फूड के बारे में लोगो को समझाने का प्रयास किया था कि ये फूड स्वाद में तो अच्छे लगते हैं लेकिन इनमें पौश्टिक तत्व न के बराबर होते हैं साथ ही ये सेहत के लिए नुकसानदायक होते हैं.

बहरहाल फास्ट फूड न केवल शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य के लिए नुकसान दायक है बल्कि यह मनोवैज्ञानिक दुश्प्रभाव भी पैदा कर रहा है. पिज्जा, बर्गर, पेस्ट्री-केक और शीतल पेय में अत्यधिक कैलोरी होती है जो मोटापे का कारण बनती है और यही मोटापा डायबिटीज, उच्चरक्तचाप, हृदयरोग और मानसिक बीमारियों का प्रमुख कारण है. ये खाद्य सामग्री मुख्य तौर पर नुकसानदायक मैदा और ट्रांसफैट से बने होते हैं. विडंबना यह है कि नयी पीढ़ी इन खाद्य पदार्थों के सेवन अक्सर कोल्ड-ड्रिंक्स के साथ ही कर रहा है जो सेहत के लिये ज्यादा घातक है.

विशेषज्ञों के अनुसार जंक फूड के कारण पिछले दस सालों में मोटापे से ग्रस्त रोगियों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है जिसमंे बच्चें और युवावर्ग दोनों शामिल है. गौरतलब है अमरीका जैसा विकसित देश आज मोटापे की समस्या से जूझ रहा है इसका दुश्प्रभाव वहां के युवाओं के स्वास्थ्य सूचकांकों तथा कार्यक्षमता में दृश्टिगोचर हो रहा है, भारत जैसे विकासशील देश के लिए यह सोचनीय है. फास्ट फूड लोगों के भूख को तो मिटाता है लेकिन इसमें जरूरी प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट नहीं होता जो शरीर को उर्जा देता है. फलस्वरूप इस प्रकार के खाद्य पदार्थ के सेवन के बावजूद थकान महसूस होता है जिससे कार्यक्षमता प्रभावित होती है.

इसी प्रकार जंक फूड के लगातार सेवन से कई हार्मोन्स का संतुलन भी बिगड़ जाता है परिणामस्वरूप अवसाद, अनिद्रा जैसी मानसिक बीमारियां, पाचन तंत्र तथा लीवर से संबंधित रोग भी पैदा होती है. हाल के अनुसंधान में यह पता चला है कि अत्यधिक मात्रा में वसायुक्त भोजन और शक्कर के सेवन से कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है. शीतल पेय में फास्पोरिक एसिड मिले होते हैं जिससे हड्डियां कमजोर होती हैं.

गर्भवती माताओं के फास्ट फूड के लगातार सेवन से होने वाले बच्चों में जन्मजात हृदय रोग तथा मधुमेह रोग का खतरा बना रहता है. इन विसंगतियों के लिए नयी पीढ़ी के साथ-साथ पालक वर्ग भी समानरूप से जवाबदेह है क्योंकि वह भी अपनी तत्कालिक सुविधा के चलते बच्चों को ‘जंक फूड’ सुलभ कराने में कोई देर नहीं करता है.

बहरहाल अर्थिक उदारीकरण और खुले वैश्विक बाजार के चलते बहुराश्ट्रीय खाद्य एवं पेय पदार्थ कंपनियों के लिए भारत बहुत बड़ा बाजार है. अनुमान के मुताबिक साल 2020 तक भारत में फास्ट फूड का बाजार 27.57 अरब डॉलर का हो जायेगा. इस व्यापार को बढ़ावा टी.वी. एवं अन्य माध्यमों में प्रसारित व प्रकाशित होने वाले अनेक लुभावने एवं स्टंट वाले विज्ञापनों से मिला है.

मनोविज्ञान विशेषज्ञों का मानना है कि सेलेब्रिटियों पर केन्द्रित विज्ञापन अत्यंत संवेदनशील होते हैं जो बच्चों किशोरों और युवाओं के दिलो-दिमाग पर गहरा असर डालते हैं फलस्वरूप यह वर्ग जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक्स के प्रति बड़ी तेजी से आकर्शित होता है. इसलिए समिति ने खासकर बच्चों के चैनलों पर ‘‘जंक फूड’’ का विज्ञापन न दिखाने की सिफारिश की है.

गौरतलब है कि कनाडा, चिली, आयरलैंड, मैक्सिको, नार्वे, ताइबान व ब्रिटेन जैसे देशों ने फास्ट फूड वाले विज्ञापन दिखाने पर अपने देश में अलग-अलग तरीके से रोक लगा रखा है. बहरहाल नई राश्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में गैर-संचारी रोगों के प्रभावी नियंत्रण को प्राथमिकता दी गयी है, इस लिहाज से भी यह जरूरी है कि सरकार ‘जंक फूड’ के अंधाधॅुंध बिक्री और उपलब्धता पर शिकंजा कसे ताकि नयी पीढ़ी का सेहत सलामत रहे इसके लिए जरूरी है कि सरकार समिति की सिफारिशों पर गंभीरता से विचार करें.
* लेखक आयुर्वेद महाविद्यालय, रायपुर में व्याख्याता हैं.

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