किडनी की बीमारियों को समझें
डॉ. शुभा दुबे
किडनी यानी गुर्दा मानव शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग है. शरीर में इसका कार्य किसी कंप्यूटर की तरह अत्यंत जटिल है. गुर्दा हमारे शरीर में सिर्फ मूत्र बनाने का ही काम नहीं करता वरन इसके अन्य कार्य भी हैं. जैसे- खून का शुद्धिकरण, शरीर में पानी का संतुलन, अम्ल और क्षार का संतुलन, खून के दबाव पर नियंत्रण, रक्त कणों के उत्पादन में सहयोग और हड्डियों को मजबूत करना इत्यादि. लेकिन यह दुखद है कि आम तौर पर बरती जाने वाली लापरवाही के कारण भारत में कैंसर और ह्रदय रोग के बाद सर्वाधिक लोगों की मौत किडनी की बीमारी से होती है.
किडनी से संबधित बीमारियों की बात करें तो इसका ठीक-ठीक पता तो चिकित्सकीय परीक्षण के बाद ही लग सकता है लेकिन इसके कुछ लक्षण आसानी से देखे-समझे जा सकते हैं. सो कर उठने पर सुबह आँखों के ऊपर सूजन आना, चेहरे और पैरों में सूजन आना, भूख कम लगना, उल्टी आना, जी मिचलाना, बार-बार पेशाब आना, कम उम्र में रक्तचाप होना, कमजोरी लगना, रक्त में फीकापन आना, थोड़ा पैदल चलने पर साँस फूलना; जल्दी थक जाना, 6 साल की उम्र के बाद भी बिस्तर गीला होना, पेशाब कम मात्रा में आना, पेशाब में जलन होना और उसमें खून अथवा मवाद (pus) का आना, पेशाब करने में तकलीफ होना, बूंद-बूंद पेशाब का उतरना, पेट में गाँठ होना, पैर और कमर में दर्द होना जैसे लक्षण अगर शरीर में नज़र आ रहे हों तो आपको सतर्क हो जाना चाहिये.
जाहिर है, इसके लिये आपको चिकित्सकीय परीक्षण की आवश्यकता पड़ेगी. लेकिन किडनी का परीक्षण किन लोगों को कराना चाहिए और किडनी की तकलीफ होने की संभावना कब अधिक होती है? इसका सीधा जवाब है कि जिस व्यक्ति में किडनी के रोग के लक्षण मालूम हों, जिसे डायबिटीज़ की बीमारी हो, खून का दबाव नियत सीमा से अधिक (हाई ब्लडप्रेशर) रहता हो, परिवार में वंशानुगत किडनी रोग हो, काफी समय तक दर्द निवारक दवाइयां ली हों, मूत्रमार्ग में जन्म से ही खराबी हो; उन्हें अनिवार्य रुप से परीक्षण कराना चाहिये.
किडनी के रोगों के इलाज के लिये कुछ ज़रुरी जांच कराने होते हैं, जिसमें पेशाब का परीक्षण, खून का परीक्षण, खून में क्रिएटिनिन और यूरिया की मात्रा, किडनी की सोनोग्राफी, पेट का एक्सरे, आई. वी. पी (I.V.P) शामिल है.
किडनी से संबंधित मुख्य रोग हैं- किडनी फेल्योर, किडनी में सूजन आना, नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम, पेशाब के संक्रमण का रोग, मूर्त्रमार्ग में पथरी, प्रोस्टेट की बीमारियां, मूत्रमार्ग में जन्म से तकलीफ, मूत्रमार्ग का कैंसर.
किडनी से संबंधित इन बीमारियों के बारे में विस्तार से अगर आप जान लें तो शायद आप इसे ठीक-ठीक समझ पाएंगे. इनमें सबसे पहली बीमारी है एक्यूट किडनी फेल्योर. एक्यूट किडनी फेल्योर में सामान्य रूप से काम करती किडनी कम समय में अचानक खराब हो जाती है. एक्यूट किडनी फेल्योर होने का मुख्य कारण है दस्त-उल्टी का होना, मलेरिया, खून का दबाव अचानक कम हो जाना इत्यादि है. उचित दवा और आवश्यकता होने पर डायलिसिस के उपचार से इस प्रकार खराब हुई दोनों किडनी पुन: संपूर्ण तरह से काम करने लगती है.
इसके बाद है क्रोनिक किडनी फेल्योर. क्रोनिक किडनी फेल्योर में दोनों किडनी धीरे-धीरे लंबे समय में इस प्रकार खराब होती हैं कि पुनः ठीक न हो सकें. शरीर में सूजन आना, भूख कम लगना, उल्टी आना, जी मिचलाना, कमजोरी महसूस होना, कम आयु में उच्च रक्तचाप होना आदि इस रोग के मुख्य लक्षण है. क्रोनिक किडनी फेल्योर होने का मुख्य कारण डायबिटीज़ (मधुमेह), उच्च रक्तचाप तथा किडनी के विभिन्न रोग इत्यादि हैं. खून की जाँच में क्रिएटिनिन एवं यूरिया की मात्रा से किडनी की कार्यक्षमता के बारे में पता चलता है. किडनी के अधिक खराब होने पर खून में क्रिएटिनिन और यूरिया की मात्रा बढ़ने लगती है.
इस रोग का उपचार दवाइयां और खाने में पूरी तरह परहेज के द्वारा किया जाता है. इस उपचार का उद्देश्य किडनी को अधिक खराब होने से बचाते हुए दवाई की मदद से मरीज का स्वास्थ्य लंबे समय तक अच्छा रखना है. किडनी के अधिक खराब होने पर सामान्यत: उसके उपचार के दो विकल्प डायलिसिस और किडनी प्रत्यारोपण हैं.
इसके बाद है नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम. किडनी की यह बिमारी भी अन्य उम्र की तुलना में बच्चों में अधिक पाई जाती है, इस रोग का मुख्य लक्षण शरीर में बार-बार सूजन आना है. इस रोग में पेशाब में प्रोटीन का आना, खून परीक्षण की रिपोर्ट में प्रोटीन का कम होना और कोलेस्ट्रोल का बढ़ जाना होता है. इस बीमारी में खून का दबाव नहीं बढ़ता और किडनी खराब होने की संभावना बिल्कुल कम होती है. यह बीमारी दवा लेने से ठीक हो जाती है, परंतु बार-बार रोग का उभरना, साथ ही शरीर में सूजन का आना नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम की विशेषता है.
पेशाब का संक्रमण किडनी की एक महत्वपूर्ण बीमारी है. पेशाब में जलन होना, बार-बार पेशाब आना, पेट में दर्द होना, बुखार आना इत्यादि इसके लक्षण हैं. पेशाब की जाँच में मवाद का होना, रोग को इंगित करता है. प्रायः यह रोग दवा के सेवन से ठीक हो जाता है. बच्चों में इस रोग के उपचार के दौरान विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है.
यदि बार-बार पेशाब का संक्रमण हो तो मरीज को मूत्रमार्ग में अवरोध, पथरी, मूत्रमार्ग की टी.बी. आदि के निदान के लिए जाँच करना जरूरी होता है. बच्चों में पेशाब में बार-बार संक्रमण होने का मुख्य कारण वीयूआर (वसइको यूरेटरिक रिफलेक्स) है. वीयूआर में मूत्राशय और मूत्रवाहिनी स्थित बीच के बल्ब में जन्मजात क्षति होती है, जिसके कारण पेशाब मूत्राशय से उल्टा मूत्रवाहिनी में किडनी की ओर जाता है.
पथरी एक महत्वपूर्ण किडनी रोग है. सामान्यतः पथरी किडनी, मूत्रवाहिनी और मूत्राशय में होने वाली बीमारी है. इस रोग के मुख्य लक्षणों में पेट में असहनीय दर्द होना, उल्टी-उबकाई आना, पेशाब लाल रंग का होना इत्यादि हैं. इस बीमारी में कई मरीजों को बीमारी होते हुए दर्द नहीं होता है, जिसे ‘साइलेंट स्टोन’ कहते हैं.
पेट का एक्सरे एवं सोनोग्राफी पथरी के निदान के लिए सबसे महत्वपूर्ण जाँच है. आम तौर पर छोटी पथरी पानी पीने से अपने आप निकल जाती है. यदि पथरी के कारण बार-बार ज्यादा दर्द हो रहा हो, बार-बार खून अथवा मवाद आ रहा हो और पथरी में मूत्रमार्ग में अवरोध होने की वजह से किडनी को नुकसान होने का भय हो तब ऐसे मरीज के लिये पथरी का निकलवाना जरूरी होता है.
*लेखिका मध्य भारत की सुप्रसिद्ध किडनी रोग विशेषज्ञ हैं और रायपुर में रहती हैं.
thanks for helpful information about kidney disease
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Kidney ek baare mein btane k liye dhanyavad yeh aaj ke time mein sbse jyda hone vali bimari hain.