कोरबाछत्तीसगढ़

झोलाछाप कर रहे सर्जरी

कोरबा | अब्दुल असलम: लंबे समय से कोरबा जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डाक्टरों की सक्रियता बढ़ी हुई है. वे गांव लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ तो कर ही रहे हैं साथ ही रूपए भी लूट रहे है. बताया जाता है कि ऐसे डाक्टर इलाज के नाम पर ग्रामीणों से पैसे लूटकर लखपति भी बन गए हैं. हद तो यह है कि ये डाक्टर सर्जरी और अवैध गर्भपात तक करने से नहीं हिचकते.

जिले में नर्सिंग होम एक्ट लागू है. स्वास्थ्य विभाग की जांच टीम कागजों में अस्पतालों का निरीक्षण कर रही है. यह बात झोलाछाप डॉक्टर भी भलीभांति जानते है. जिसके कारण उन्हें नर्सिंग होम एक्ट का कोई भय नहीं है.

गौरतलब है कि झोलाझाप डाक्टरों की सक्रियता पर प्रशासन का चेतावनी भरा आदेश और नर्सिंग होम एक्ट कानून कोई विशेश प्रभाव नहीं डाल सका है. वहीं स्वास्थ्य विभाग ग्रामीणों के स्वास्थ्य पर मंडराने वाले खतरे से जानबूझकर अनजान बना हुआ है. ग्रामीणों के उत्थान पर भाषण देने वाले नेता और स्वास्थ्य अधिकारी भी इन डाक्टरों पर कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं.

क्षेत्र के सैकड़ो गांवों में पूरी सक्रियता से अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे इन झोलाछाप डाक्टरों के खिलाफ कभी कभार केवल कागजों पर ही अभियान चलाया जाता है. ठोस कार्रवाई के अभाव में अभियान से जुड़े लोगों पर भी शक की सुई घुमती नजर आती है जबकि ठोस कार्रवाई नहीं होने से ऐसे तथा कथित झोला छाप डाक्टरों का मनोबल इस कदर बढ़ चुका है कि वे मरीजों की सर्जरी करने से भी नहीं हिचकिचाते.

ग्रामीण क्षेत्र में प्रशासन भले ही बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान कराने का दावा करें, लेकिन वास्तविक ठीक इसके विपरीत है. इन क्षेत्रों में सरकारी सुविधाओं तथा कथित घोषणाएं महज शोपीस साबित हो रहे है. हद तो तब हो जाती है जब सरकारी जन स्वास्थ्य रक्षक भी निजी प्रैक्टिश पर उतारू होकर लाखों रूपए जनता से लूटने लगते हैं.

अक्सर बंद रहत हैं स्वास्थ्य केन्द्र
रामीण क्षेत्रों में सरकार ने उप स्वास्थ्य केन्द्र अवश्य खोल रखा हैं लेकिन ये अक्सर बंद रहते हैं सुविधाओं के अभाव में ग्रामीण नीम हकीमों के इलाज पर ही निर्भर रहना पड़ता है. इधर सरकारी अस्पताल के डाक्टर भारी वेतन लेने के बावजूद वह गंभीरता नहीं दिखाते जो अपेक्षित है. आपातकालीन स्थिति में मरीजों को अन्यत्र रिफर कर दिया जाता है.

तीन वर्ष हो सकता है कारावास
इंडियन मेडिकल कौंसिल एक्ट 1956 की धारा 15 (2) के उपबंधों के तहत वह व्यक्ति एलोपैथी पद्धति से इलाज कर सकता है जिसका नाम आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम 1937 की धारा 11 के अंतर्गत संचालित राज्य के चिकित्सा रजिस्टर में अंकित हो. कानून के मुताबिक ऐसे झोलाछाप डाक्टरों को तीन वर्ष का कारावास दिया जा सकता है लेकिन वे बेखौफ ग्रामीण का इलाज कर रहे हैं.

आखिर सक्रियता क्यों
आमतौर पर दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रो में पदस्थ सरकारी डाक्टर अपनी सेवाएं प्रदान करना पसंद नहीं करते. इसका पूरा लाभ झोलाछाप डाक्टर उठा रहे हैं. ग्रामीणों से इलाज के नाम पर धन तो ऐंठ लिया जाता है लेकिन इलाज के नाम पर अनाप शनाप दवाइयॉं थमा दी जाती है. सीजन में ग्रामीण क्षेत्रों में फैले बीमारियों ने झोलाछाप डाक्टरों को अनायास ही लखपति बना दिया है.

बताया जाता है कि सलाइन के नाम पर तथाकथित झोलाछाप ग्रामीणों से हजारों रूपए आसानी से ऐंठ कर मालामाल हो रहे हैं. जबकि मरीज के इलाज के नाम पर कई किसान बीज के लिए रखे अनाज को बेचकर ऐसे कथित डाक्टरों की फीस अदा कर रहे हैं.

ज्ञात हो कि झोला छाप डाक्टरों के गलत इलाज की वजह से कई दफे मरीजों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ता है तथा क्षेत्र में इस तरह की कई घटनाएं सामने आ चुकी है. लेकिन तथाकथित झोलाछाप डाक्टर किसी तरह से मामला रफा-दफा करा लेते हैं उल्लेखनीय तो यह भी है कि ऐसे तथाकथित डाक्टर अवैध गर्भपात तक कराने से नहीं हिचकते. कई बार जच्चा और बच्चा दोनों की जान को खतरा बना रहता है. इन सबकी जानकारी हेते हुए भी स्वास्थ्य विभाग लापरवाही बरत रहा है.

नशीली और एक्सपायरी वाली दवाईयॉं बिक रही
अंचल में गरीबी, अशिक्षा के कारण नकली व एक्सपायरी डेट की दवाइयॉं धड़ल्ले से बिक रही है. साथ ही शराब, भांग, व गांजा समेत अवैध मादक पदार्थ बड़े पैमाने पर बेचे जा रहे हैं. इस वजह से मासूम बच्चे, किषोर व युवक विभिन्न तरह के नशे के आदी हो रहे हैं.

आलम यह है कि प्रशासन नशीले पदार्थ तथा एक्सपायरी दवाईयों के अवैध कारोबार को रोकने गंभीरता नहीं दिखा रहा है. वहीं पड़ोसी राज्य ओड़ीसा से बड़े पैमाने पर तस्करी होकर छत्तीसगढ़ में आ रहे गांजा के मामले पर तस्करी होकर छत्तीसगढ़ में आ रहे गांजा के मामले में पुलिस व आबकारी विभाग अकर्मण्य बना है.

गौरतलब है कि नगर सहित क्षेत्रों में एक्सपायरी व नशीली दवाईयों की बिक्री चरम पर है. प्रशासन की उदासीनता के चलते ये खुलेआम बिक रही है. सूत्रों की मानें तो मेडिकल दुकान के संचालक, अनपढ़ व खासकर ग्रामीणों से अधिक लाभ कमाने चिकित्सकों द्वारा लिखी गई दवाईयों के एवज में दूसरी कंपनी की दवाईयॉं थमा देते हैं. ग्रामीणों को ठगे जाने के पीछे उनकी अज्ञानता और प्रशासन की उदासीनता को बड़ा कारण माना जा रहा है.

हीन भावना से छुटकाना पाने करते हैं नशा

वहीं एक्सपायरी दवाओं के सेवन पैदा होने वाली हीनभावना से छूटकारा पाने युवा जीवन रक्षक दवाओं का नशे के रूप में उपयोग करते हैं. इनमें ज्यादातर दर्द निवारक दवाएं शामिल हैं. मेडिकल दुकानों में खांसी की सिरप व दर्दनिवारक दवाओं के आसान उपलब्ध्ता के कारण इसके चलन में काफी बढोत्तरी हुई है. एक्सपायरी व नशीली दवाओं के विक्रय पर प्रतिबंध लगाने खाद्य व औषधि प्रशासन विभाग ध्यान नहीं दे रहा है.

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