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कुमार विश्वास का ‘गधा पुराण’

नई दिल्ली | समाचार डेस्क: लगता है यूपी चुनाव ‘गधे’ के आसपास ही घूम रहा है. सबसे पहले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गुजरात के गधे के लिये प्रचार न करने की सलाह दी तो प्रधानमंत्री मोदी ने करारा जवाब देते हुये का कि गधे से प्रेरणा लेनी चाहिये. गधा अपने मालिक का वफादार होता है. पिछले कुछ दिनों ने ‘गधा’ राजनीति के अलावा सोशल मीडिया पर भी छाया हुआ है. अब आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास ने भी ‘गधे’ पर अपना ज्ञान पेल दिया है.

कुमार विश्वास ने हास्य कवि स्वर्गीय ओमप्रकाश आदित्य की एक कविता सुना डाली. जरा आप भी इस वीडियो को ध्यान से देखिये और सुनिये कैसे कविता में कुमार विश्वास गधे के बारे में गाते हैं.

Dr Kumar Vishwas | Gadha |

इस कविता को हास्य कवि स्वर्गीय ओमप्रकाश आदित्य अकसर सुनाया करते थे.

इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं

इधर भी गधे हैं, उधर भी गधे हैं
जिधर देखता हूं, गधे ही गधे हैं

गधे हँस रहे, आदमी रो रहा है
हिन्दोस्तां में ये क्या हो रहा है

जवानी का आलम गधों के लिये है
ये रसिया, ये बालम गधों के लिये है

ये दिल्ली, ये पालम गधों के लिये है
ये संसार सालम गधों के लिये है

पिलाए जा साकी, पिलाए जा डट के
तू विहस्की के मटके पै मटके पै मटके

मैं दुनियां को अब भूलना चाहता हूं
गधों की तरह झूमना चाहता हूं

घोड़ों को मिलती नहीं घास देखो
गधे खा रहे हैं च्यवनप्राश देखो

यहाँ आदमी की कहाँ कब बनी है
ये दुनियां गधों के लिये ही बनी है

जो गलियों में डोले वो कच्चा गधा है
जो कोठे पे बोले वो सच्चा गधा है

जो खेतों में दीखे वो फसली गधा है
जो माइक पे चीखे वो असली गधा है

मैं क्या बक गया हूं, ये क्या कह गया हूं
नशे की पिनक में कहां बह गया हूं

मुझे माफ करना मैं भटका हुआ था
वो ठर्रा था, भीतर जो अटका हुआ था

गधे हंस रहे हैं, आदमी रो रहा है.

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