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हाथियों के साथ जीना सीख रहा है हाटी

बिलासपुर । एजेंसी: छत्तीसगढ़ का हाटी (धर्मजयगढ़) इलाका जहां दूर-दूर तक हरियाली पसरी है और इस हरियाली के बीच काली परछाइयां विचरा करती हैं. ये परछाइयां जब भी नजर आती हैं तो लोगों की नींद उड़ जाती है. पता नहीं कब और कहां हमला हो जाए, किसका घर उजड़ जाए, किसकी फसल चौपट हो जाए, किसी की जान ही चली जाए, इसी डर से रातें मशालों की रोशनी में कटती हैं. काली परछाइयां यानी हाथियों की परछाइयां, जिससे लोग थर्राते हैं.

रायगढ़ जिले का यह इलाका वन्यजीवों से भरपूर है. इस इलाके में पिछले कुछ वर्षो में हाथियों ने जितना नुकसान किया है, उसका अनुमान लगाना संभव नहीं. यहां हाथियों का समूह झारखंड और उड़ीसा की सरहदों से दाखिल होता है और फिर शुरू हो जाता है उत्पात.

राज्य में 2001 से 2012 तक 82 लोगों को हाथियों ने मारा है और अकेले धर्मजयगढ़ में 2009 से 2012 तक 20 लोगों को जान गंवानी पड़ी है. पिछले 10 सालों में कम से कम नौ हजार मामलों में सरकार ने धर्मजयगढ़ में मुआवजा भी बांटा है. पिछले कुछ सालों में ही 21 हाथी भी मारे गये हैं. लेकिन बेशर्मी की इंतेहा ये है कि राज्य सरकार का वन विभाग कोयले के खनन के लिये अनापत्ति जताते हुये प्रपत्र जारी करता है और कहता है कि यहां हाथी यदा-कदा आते हैं.

कोयला खदान के लिये सरकार ने हाथियों और धरमजयगढ़ के लोगों की जान को दांव पर लगा दिया है. धर्मजयगढ़ के डाक्टर डीएस माल्या कहते हैं-सरकार को बड़े लोगों के लिये कोयले की चिंता है, आदमी की जान की नहीं. इलाके में 60 से ज्यादा कोल ब्लाक आवंटित किये गये हैं और सरकार ने बिना जंगल और वनजीवों की परवाह किये दस्तावेजों में लिख दिया कि यहां कोई जंगली जानवर नहीं है.

हालत ये है कि जब इस इलाके में हाथी घुसते हैं तो वन विभाग के अधिकारी अपना फोन बंद कर लेते हैं. गांव के लोग खुद ही इन हाथियों से मुकाबला करते हैं, अपनी जान की परवाह किये बगैर. उन्होंने मान लिया है कि उन्हें इन्हीं हाथियों के साथ जीना है और मरना है.

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