छत्तीसगढ़

तीन करोड़ का मक्का बीज घोटाला

रायपुर. खुद को छत्तीसगढ़ के किसानों का सबसे बड़ा हितैषी बताने वाली भाजपा के ही एक सांसद के भाई के इशारे पर राज्य में तीन करोड़ रुपए के घटिया बीज किसानों को बांट दिए गए. मक्का के घटिया बीज बांटने का राज तब खुला, जब कई जिलों से आए सैंपल प्रयोगशाला में जांच के दौरान फेल हो गए.

पिछले कुछ सालों से सुनियोजित तरीके से छत्तीसगढ़ में नगदी फसलों को बढ़ावा देने की कोशिश जारी है. उसी दिशा में साल दर साल मक्का के रकबे में बढ़ोत्तरी की जा रही है लेकिन यह भी भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है.

राज्य में इस साल चालू रबी मौसम में मक्के की बोनी प्रस्तावित रकबे से अधिक क्षेत्र में हुई हैं. प्रस्तावित रकबा 34.89 हजार हेक्टेयर था, जिसके विरूद्ध 43.32 हजार हेक्टेयर में बोनी की गई. पर इससे राज्य बीज निगम के माध्यम से घटिया बीज किसानों को बांट दिए गए. वह भी बीज की जांच प्रमाणीकरण प्रयोगशाला में कराने के पहले ही.

जानकारों के मुताबिक प्रदेश के कई जिलों में बीजों की खरीदी बीज निगम द्वारा तय की गई एक कंपनी से की गई है. इसी कंपनी के घटिया स्तर के बीज किसानों को थमा दिए और बीज निगम ने इसे किसानों को बांट दिया. इस कंपनी से खरीदी के बाद जब बीजों के सैंपल बीज प्रमाणीकरण विभाग की प्रयोगशाला में भेजे गए, तो मालूम हुआ कि बीज अमानक हैं. दरअसल 6 जिलों से जांच के लिए आए 13 सैंपलों में इसका रहस्योद्घाटन हुआ है कि सैंपल मानक पर खरे नहीं हैं.

प्रयोगशाला में नौ जिलों रायपुर के साथ जांजगीर, बिलासपुर, दुर्ग, कोरबा, कांकेर, जगदलपुर, धमतरी और कोंडागांव के 26 सैंपल भेजे गए. इनमें से 6 जिलों के 13 सैंपल मानक के अनुरूप नहीं मिले. कोंडागांव से आए पांच के पांच, बिलासपुर के चार में चार, जांजगीर, रायपुर और कोरबा से आए एक में एक और धमतरी से आए दो सैंपलों में से दोनों सैंपल जांच में फेल हो गए. उनमें 80 प्रतिशत से भी कम अंकुरण की मात्रा मिली जबकि हाईब्रीड बीजों में 90 फीसदी अंकुरण की मात्रा होती है.

खबर है कि बीजों की खरीदी में भी भारी गोलमाल किया गया है. तीन करोड़ रुपए से अधिक के हाईब्रीड बीज की खरीदी एक कंपनी से मिलीभगत कर खरीदी गई, जबकि उस कंपनी के खिलाफ पहले भी घटिया बीज देने की शिकायतें रही है. बीज के जानकार जांचकर्ता अधिकारी बताते हैं कि बीजों की जांच में सबसे अहम अंकुरण का प्रतिशत देखा जाता है. हाईब्रिड में 90 और सामान्य बीजों में 80 प्रतिशत अंकुरण की मात्रा पाए जाने पर ही बीजों का उपयोग किया जाना चाहिए. मक्के के सारे बीज हाईब्रिड हैं और इसके लिए मानक 90 प्रतिशत है, लेकिन बीजों की जांच में अंकुरण की मात्रा ऐसी नहीं थी.

राज्य में किसानों को घटिया बीज देकर छला गया और राज्य बीज निगम के अध्यक्ष व भाजपा सांसद रमेश बैस के भाई श्याम बैस इस पूरे मामले से पल्ला झाड़ते नजर आ रहे हैं. वे कहते हैं कि- ”बीजों की खरीदी की मुझे कोई जानकारी नहीं दी गई है. मेरे पास इसकी मंजूरी के लिए फाइल ही नहीं भेजी गई. जिन्होंने भी खरीदी में गड़बड़ी की है और किसानों को घटिया बीज दिए हैं, उन्हें छोड़ा नहीं जाएगा. खरीदी के साथ प्रयोगशाला की रिपोर्ट मंगाकर मैं खुद देखूंगा कि मामला क्या है.” लेकिन अध्यक्ष जब तक प्रयोगशाला की रिपोर्ट लाकर देखेंगे तब तक राज्य में बोनी हो चुकी होगी और किसान कंगाल बन चुके होंगे.

किसानों से हजारों हेक्टेयर में फसल प्रदर्शन के लिए मक्का की खेती कराई जा रही है और उन्हें सब्सिडी भी दी जा रही है लेकिन मिलने वाली सब्सिडी होने वाले नुकसान से कई गुना अधिक है. इस बारे में राज्य के कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहु की चुप्पी चौंकाने वाली है.

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