राष्ट्र

विकास रैली में कितने लोग?

जनता हालांकि यह सब सुनने के लिए नदारद थी. सिर्फ मीडिया के जिमी जि़प कैमरे हवा में टंगे घूम रहे थे. अचानक मिठाई और नाश्ते के डिब्बे बंटने शुरू हुए. कुछ कार्यकर्ता मीडिया वालों का नाम-पता जाने किस काम से नोट कर रहे थे.

फिर पौने दस बजे के करीब अचानक एक परिचित चेहरा दर्शक दीर्घा में दिखाई दिया. यह अधिवक्ता प्रशांत भूषण को चैंबर में घुसकर पीटने वाली भगत सिंह क्रांति सेना का सरदार नेता था. उसकी पूरी टीम ने कुछ ही देर में अपना प्रचार कार्य शुरू कर दिया. ”नमो नम:” लिखी हुई लाल रंग की टोपियां और टीशर्ट बांटे जाने लगे. कुछ ताऊनुमा बूढ़े लोगों को केसरिया पगड़ी बांधी जा रही थी. कुछ लड़के भाजपा का मफलर बांट रहे थे.

जनसभा के घोषित समय दस बजे के आसपास पंडाल में भाजपा कार्यकर्ताओं, स्वभयंसेवकों और मीडिया की चहल-पहल बढ़ गई. सारी कुर्सियां और दरी अब भी जनता की बाट जोह रही थीं और टीवी वाले जाने कौन सी जानकारी देने के लिए पीटीसी मारे जा रहे थे.

सवा दस बजे एक पत्रकार मित्र के माध्यम से सूचना आई कि नरेंद्र मोदी 15 मिनट पहले फ्लाइट से दिल्ली् के लिए चले हैं. यह पारंपरिक आईएसटी (इंडियन स्ट्रे चेबल टाइम) के अनुकूल था, लेकिन आम लोगों का अब तक रैली में नहीं पहुंचना कुछ सवाल खड़े कर रहा था.

साढ़े दस बजे के आसपास माइक से एक महिला की आवाज़़ निकली. उसने सबका स्वागत किया और एक कवि को मंच पर बुलाया. ”भारत माता की जय” के साथ कवि की बेढंगी कविता शुरू हुई. फिर एक और कवि आया जिसने छंदबद्ध गाना शुरू किया. कराची और लाहौर को भारत में मिला लेने के आह्वान वाली पंक्तियों पर अपने पीछे लाइनें दुहराने की उसकी अपील नाकाम रही क्योंकि कार्यकर्ता अपने प्रचार कार्य में लगे थे और दुहराने वाली जनता अब भी नदारद थी.

पौने ग्यारह बजे की स्थिति यह थी कि आयोजन स्थ्ल पर बमुश्किल दस से बारह हज़ार लोग मौजूद रहे होंगे. एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर ने (नाम लेने की ज़रूरत नहीं) बताया कि कुल सात हज़ार के आसपास सुरक्षाबल (सरकारी और निजी), 500 के आसपास मीडिया, तीन हज़ार के आसपास कार्यकर्ता और स्वयंसेवक व छिटपुट और लोग होंगे.

”लोग नहीं आए अब तक?”, मैंने पूछा. वो मुस्कोराकर बोला, ”सरजी संडे है. हफ्ते भर नौकरी करने के बाद किसे पड़ी है. टीवी में देख रहे होंगे.” फिर उसने अपने दो सिपाहियों को चिल्लाकर कहा, ”खा ले बिजेंदर, मैं तुम दोनों को भूखे नहीं मरने दूंगा.” ग्यारह बज चुके थे और पंडाल के भीतर तकरीबन सारे मीडिया वाले और पुलिसकर्मी भाजपा के दिए नाश्ते के डिब्बों को साफ करने में जुटे थे.

मंच से कवि की आवाज़ आ रही थी, ”मोदी मोदी मोदी मोदी”. उसने 14 बार मोदी कहा. मंच के नीचे पेडेस्टवल पंखों और विशाल साउंड सिस्टम के दिल दहलाने वाले मिश्रित शोर का शर्मनाक सन्ना्टा पसरा था और हरी दरी के नीचे की दलदली ज़मीन कुछ और धसक चुकी थी.

कुछ देर बाद हम निराश होकर निकल लिए. मोदी सवा बारह के आसपास आए और दिल्ली में हो रही जोरदार बारिश के बीच एक बजे की लाइव घोषणा यह थी कि रैली में पांच लाख लोग जुट चुके हैं. मोदी ने कहा कि ऐसी रिकॉर्ड रैली आज तक दिल्ली में नहीं हुई. इस वक्तं मोबाइल पर उनका लाइव भाषण देखते हुए हम बिना फंसे रिंग रोड पार कर चुके थे. पंजाबी बाग से रोहिणी के बीच रास्ते में गाजि़याबाद से रैली में आती बैनर, पोस्टर और झंडा बांधे कुल 13 बसें दिखीं. अधिकतर एक ही टूर और ट्रैवल्स की सफेद बसें थीं. निजी वाहनों के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. हरेक बस में औसतन 20-25 लोग थे.

लाल बत्तियों पर लगी कतार को छोड़ दें तो पूरी रिंग रोड (जो हरियाणा को दिल्ली से जोड़ती है), रोहिणी से धौला कुआं वाली रोड (गुड़गांव वाली), कुतुब से बदरपुर की ओर जाती सड़क(जो फरीदाबाद को दिल्ली से जोड़ती है) और बाद में उत्तर प्रदेश से दिल्ली को जोड़ने वाली आउटर रिंग रोड खाली पड़ी हुई थी. और यह दिल्ली की बारिश में था जबकि जाम एक सामान्य दृश्य होता है.

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