Columnist

एमएसपी को समझे किसान

देविंदर शर्मा
चंडीगढ़ में संपन्न किसान नेताओं के पांचवे राष्ट्रीय सम्मेलन में मैंने किसानों से पूछा कि अगर लागत मूल्य पर 50 फीसदी मुनाफा दिए जाने की उनकी मांग के मुताबिक, गेहूं की कीमत प्रति क्विंटल 150 रुपये कर दी जाए तो क्या वे संतुष्ट हो जाएंगे? सभी ने एक स्वर में कहा, नहीं.

एक किसान ने खड़े होकर पूछा, साहब, जरा हमें समझाएं. आप कह रहे हैं कि अगर गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रति क्विंटल 150 रुपये बढ़ा दिया जाए तो उससे स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने की हमारी मांग पूरी हो जाएगी. लेकिन हमारी गणना के मुताबिक, गेहूं के एमएसपी को लागत का डेढ़ गुना बढ़ा देने पर गेहूं की प्रति क्विंटल कीमत 3500 रुपये से ज्यादा हो जाएगी. मैं इन नए आंकड़ों को देखकर हैरान था. इससे पता चला कि किस तरह अफवाहें फैलाई जा रही थीं. बाद में मुझे पता चला कि कुछ किसान नेता किसानों को बता रहे थे कि एमएसपी में लागत पर 50 फीसदी बढ़ोतरी जोड़ देने पर गेहूं की प्रति क्विंटल कीमत 3,625 रुपये हो जाएगी.

चूंकि न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना पूरी तरह से तकनीकी मामला है इसलिए अधिकांश किसानों के लिए यह समझ पाना मुश्किल है कि इसे किस तरह तय किया जाता है. इससे जुड़े तीन शब्द A2, A2+FL और C2 का अक्सर जिक्र किया जाता है जिन्हें समझना आसान नहीं है. इसलिए मैंने सोचा कि पहले इन्हें समझाया जाए ताकि न्यूनतम समर्थन मूल्य को आसानी से समझा जा सके. मैंने उन्हें बताया कि किसी फसल को उगाने के लिए आप जो कुछ भी खर्च करते हैं, जैसे खाद, कीटनाशक, बीज, ट्रैक्टर का किराया वगैरह, इन सबको जोड़कर जो लागत आती है उसे A2 कहते हैं. इसमें खेतों में काम करने वाले मजदूर की मजदूरी भी जोड़ी जाती है. सरल शब्दों में, यह किसान की वास्तविक लागत है. पर इसके अलावा किसान का परिवार भी खेती के काम में लगता है, इसे एक अलग मद फैमिली लेबर या FL के तहत रखा जाता है. जब किसान के परिवार की मेहनत और उसकी वास्तविक लागत जोड़ी जाती है तो इसे A2+FL कहते हैं.

कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) हर साल 23 फसलों के लिए एमएसपी का निर्धारण करता है. सीएसीपी के मुताबिक गेहूं की A2+FL प्रति क्विंटल लागत 1,735 रुपये आती है. सरकार का दावा है कि वह पहले ही किसान को A2+FL पर 112 फीसदी का मुनाफा दे रही है.

धान समर्थन मूल्य
धान समर्थन मूल्य

अब एक और चीज है C2 लागत. यह और व्यापक है, इसमें A2+FL के अलावा जमीन पर लगने वाला लीज रेंट और किसान की कृषि पूंजियों पर लगने वाला ब्याज भी शामिल होता है. सीएसीपी के मुताबिक, गेहूं के लिए यह प्रति क्विंटल 1,256 रुपये है. अब चूंकि इस साल के लिए सरकार ने गेहूं का एमएसपी 1,735 रुपये तय किया है, इसका मतलब है कि सरकार पहले से ही किसान को C2 लागत पर 38 फीसदी का लाभ दे रही है. वहीं दूसरी तरफ, किसान यूनियनें मांग कर रही हैं कि उन्हें लागत मूल्य पर 50 पर्सेंट बढ़ोतरी के साथ एमएसपी मिले. दूसरे शब्दों में, किसानों की मांग है कि उन्हें प्रति क्विंटल C2 लागत जो कि 1,265 रुपये है, पर 50 फीसदी अधिक मिले. ऐसा करने पर यह आंकड़ा हो जाएगा 1,884 रुपये प्रति क्विंटल. अगर आप 1,884 में से 1,735 रुपये घटा देते हैं तो आएगा 149 रुपये. इसे मोटे तौर पर 150 रुपये मान सकते हैं. इसीलिए मैंने पहले कहा था कि किसानों की मांगें पूरी करने के लिए सरकार को प्रति क्विंटल गेहूं की कीमत महज 150 रुपये और बढ़ानी होगी. पर क्या इससे किसान संतुष्ट होंगे, उत्तर है नहीं.

हालांकि, यह सही है कि यूपीए सरकार किसानों को इससे ज्यादा फायदा पहुंचा रही थी, पर मुझे लगता है कि अब समय आ गया है जब हमें मूल्य नीति से आय नीति की ओर बढ़ना चाहिए. 2009-10 और 2011-12 के बीच गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 125 फीसदी अधिक था, जौ का 110 पर्सेंट ज्यादा था और चने का 105 फीसदी ज्यादा था. इसलिए अब सवाल उठता है कि जब सरकार कहती है कि वह किसानों को अधिक लाभ पहुंचा रही है तो इसमें खास बात क्या है. यही काम तो इससे पहले की यूपीए सरकार भी कर रही थी और उसके बारे में उसने कभी बड़े-बड़े दावे भी नहीं किए. मुझे पूरा भरोसा है कि अगर मैं किसानों से पूछूं तो वे खरीद मूल्य में बढ़ोतरी के सरकार के दावे को भी खारिज कर देंगे क्योंकि वह कहीं भी फसल की वास्तविक लागत के आसपास तक नहीं बैठता.

यह सबको पता है कि विभिन्न फसलों के लिए और विभिन्न क्षेत्रों में न्यूनतम समर्थन मूल्य वास्तविक लागत से कम है. उदाहरण के लिए, पंजाब और मध्य प्रदेश में गेहूं की खेती की लागत बिहार और यूपी से कहीं ज्यादा है. इसका अंदाजा आपको प्रोफेसर आर. एस. घुम्मन की उस स्टडी से लग जाएगा जो उन्होंने पंजाब सरकार के लिए की थी. इसमें बताया गया था कि 1997 और 2007 के बीच पंजाब के किसानों को उनकी वह कीमत नहीं मिली जिसके वे हकदार थे, इस तरह उन्हें 62 हजार करोड़ रुपयों का घाटा हुआ. अब आप अनुमान लगाइए कि उस राज्य में जहां 90 फीसदी से अधिक गेहूं आधिकारिक एमएसपी पर खरीदा जाता है वहां के किसानों को जब इतना घाटा सहना पड़ा तो दूसरे राज्य के किसानों को कितना नुकसान उठाना पड़ता होगा.

पंजाब विश्वविद्यालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब का हर तीसरा किसान गरीबी रेखा के नीचे जी रहा है. दूसरे शब्दों में, एक प्रगतिशील राज्य में जहां 90 फीसदी गेहूं की सरकारी खरीद हो रही है, मतलब किसानों को एमएसपी का लाभ मिल रहा है, वहां किसान बिरादरी की एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा के नीचे जी रही है. पिछले 17 बरसों में (2000-2017) जिन 16000 किसानों और खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की थी वे इसी श्रेणी में आते हैं.

मेरे विचार में किसानों के लिए यह बहुत आवश्यक है कि वे एमएसपी का गणित समझें. जब तक वे यह नहीं जानेंगे कि आंकड़ों के साथ हेर-फेर करके उन्हें धोखा दिया जा रहा है तब तक वे यह नहीं समझ पाएंगे कि इतने बरसों तक उन्हें जानबूझकर दरिद्र बनाकर रखा गया है. जबतक उन्हें यह आर्थिक पहेली नहीं समझ आएगी तब तक वे इस काबिल नहीं बन पाएंगे कि खड़े होकर सही सवाल पूछ सकें.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!