Columnist

मेरे मुहल्ले में मोदी

लाल्टू
मुहल्ले में मोदी! अब यह तो कोई शिकवा नहीं हो सकता! मोदी नहीं राहुल गाँधी भी आते तो कौन सा हमारी शटल मुझे पिक अप करने के लिए सुबह खड़ी होती! मुझे फिर भी घूम घाम के गलियों में से जाना होता! वह तो शुक्र है कि लौटते हुए शटल के ड्राइवर को इस तरफ से घर जाना था और वह उस भयंकर चौराहे तक छोड़ गया जहाँ सोलह दिशाओं से गाड़ियोँ आती हैं और हर गाड़ी आठ दिशाओं में जा सकती है. इसी के बारे में मैंने कहीं कविता लिखी है न कि ईश्वर के एक सौ आठ नाम हैं, बाकी बीस यम के धाम!

तो मुहल्ले में मोदी! लौटते हुए एक किलोमीटर चलते हुए सिर्फ एकबार किसी ने रोका और वी आई पी पास माँगा. मैं घबरा गया पर जब उसे कहा कि मैं तो यहीं पीछे रहता हूँ तो उसने जाने दिया. घर पहुँचकर जल्दी से फ्रेश होकर मैं स्टूल उठा कर बैलकनी में आ गया. यहाँ से रैली का मैदान भी दिखता था और गुड बैड नो गवर्नेंस पर कन्नड़ में चल रहा शोर भी सुनाई पड़ रहा था. आखिर देर से मोदी आए. दूसरे तमाम बड़े लोगों के बाद बंगलौर के भाई बहनों को उन्होंने नमस्कार कहा. फिर उन्होंने भाषण देना शुरू किया. बंगलौर शहर में राम का नाम चल सकता है, पर इतना नहीं. वैसे भी इलाका इलेक्ट्रॉनिक सिटी के बिल्कुल पास है, यहाँ राम कृष्ण अल्लाह रब सब तुरत फुरत की कमाई के लिए याद किए जाते हैं. इसलिए नहीं कि कोई मस्जिद तोड़नी है. तो थोड़ी देर में मोदी बोले कि देश को एक सेवक चाहिए. और उनसे बड़ा सेवक तो कोई है नहीं. इसलिए एक सेवक बनकर वे वोट माँगने आए हैं.

मुझे याद आया कि करीब सवा 12 साल पहले इस सेवक को ‘पता ही नहीं था’ कि अपनी जान बचाने सौ से ज्यादा लोग एक भूतपूर्व सांसद के घर पहुँच गए थे और वह मरने के पहले तक फोन पर फोन घुमाए जा रहा था कि उन्हें बचाया जाए! यह सेवक तब क्या कर रहा था? उस सांसद का नाम एहसान जाफरी था और सेवक जानता था कि ऐसे नाम मुसलमानों के होते हैं. मैं सोचने लगा कि कौन बेहतर है, सौ साल पहले का नात्सी जिसे यहूदियों के लिए अपनी नफ़रत प्रकट करने में कोई हिचक न थी, या यह सेवक जो यहाँ बातें बना रहा था. कम से कम नात्सी बंदों में इतनी ईमानदारी तो थी कि वे जो सोचते थे, वही कहते थे. यह 56इंच चौड़े सीने वाला तो मुख्य मंत्री बनने के बाद से चालाकी के साथ अपने असली रूप को छिपाए फिरता है.

वोट डालने वालों ने अपना मन तो बना ही लिया है. किसी के कुछ लिखने से क्या बनने बिगड़ने वाला है. फिर भी मैं एक बार कहना चाहता हूँ कि हर कोई उस इंसान एहसान जाफरी के बारे में एक बार सोचे. वह आदमी इस देश की संसद का सदस्य रह चुका था. वह देश के अग्रणी राज्य गुजरात के सबसे बड़े शहर अमदाबाद की खास कॉलोनी गुलबर्ग सोसायटी में रहता था. कई लोगों ने देखा कि उनके जान-माल को खतरा है तो वे जाफरी साहब के घर में सुरक्षा होगी सोचकर वहाँ पहुँच गए. कितने ज़िंदा जले थे? कोई कहता है उनहत्तर. यहीं पर हुआ था न कि एक दंपति अपने बच्चे को खो बैठे – सालों बाद इस घटना पर फिल्म भी बनी. एहसान जाफरी जब चीख रहा था, तब कहाँ था यह सेवक?

भारत के सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश वी एन खरे का कहना है कि बेस्ट बेकरी कांड पर एफ आई आर पढ़कर वे जान गए थे कि राज्य के संरक्षण में जन-संहार हुआ था. गुलबर्ग सोसाएटी के जन-संहार पर भी उनका यही मत है. पर सेवक और उनके संघियों को क्या फर्क पड़ता है कि यह कोई साधारण आदमी नहीं कह रहा, यह देश के सबसे सम्माननीय आदमी की रवानी है. और वह अकेले नहीं, उन्हीं जैसे कई और भले लोगों ने यही बातें दुहराई हैं. सेवक जी की सरकार और उनकी खुफिया एजेंसियाँ क्या कर रही हैं – तीस्ता सेतलवाड़ जैसे जो लोग पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, उन पर झूठे मामले दायर किए जा रहे हैं. बाकी कौन युवा लड़की किस के साथ घूम रही है, यह जानना भी उनकी खास जिम्मेदारी तो है ही.

इस सेवक को और इसके दल के प्रार्थियों का समर्थन करने वाले खुद से पूछें कि क्या वे इन बातों से अंजान हैं? कोई अंजान नहीं है. हर कोई सच्चाई जानता है. तो फिर क्यों इसे समर्थन कर रहे हैं? इसलिए कि मन में कोई आवाज आ रही है कि मुसलमानों मुसलमानों को सबक सिखाना है. जी हाँ, इस सेवक को वोट देने वाले अधिकतर वे ही हैं जो अपनी सांप्रदायिक अस्मिता के साथ समझौता कर रहे हैं. नहीं तो इतना कुछ जानकर कैसे कोई ऐसे आदमी को देश के नेतृत्व की जिम्मेदारी दे सकता है! हर कोई जानता है कि किस तरह गोधरा की घटना को नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के एजेंटों की कारवाई बतलाया, कैसे लाशों को अमदाबाद में घुमाया गया, दंगे भड़काए गए. यह वह सेवक है जिसने हमारे अंदर के उस हैवान को जगाया कि बदला लो.

सेवक जी राज्य के मुख्य-मंत्री थे. ऐसे सेवक को वोट देने वाले अभी भी उस हैवानियत की जकड़ में ही हैं. बस यही है कि नात्सी समर्थकों में जो ईमानदारी थी कि वे खुले आम नस्लवादी थे, ऐसा इनमें से कुछ ही लोग कर पाते हैं. हो सकता है कि जीत जाएँ तो संविधान को बदल कर ऐसा बना डालें कि बाकी सेवकों को भी ईमानदारी से जहर फैलाने में हिचक न हो. जहाँ तक विकास का सवाल है, उस पर पर्याप्त तथ्य उजागर हो चुके हैं और हर कोई जानता है कि लगातार झूठ का ताना-बाना बुना जा रहा है. गुजरात का स्तर राष्ट्रीय स्तर पर जहाँ 1999 में था, आज उससे कोई अलग नहीं है. बस शोर मचा-मचा कर झूठ को सच कहने की कोशिशें जारी हैं. युवाओं को झूठा सपना दिखलाया जा रहा है कि नवउदारवादी पूँजीवाद भारत को स्वर्ग बना देगा.

यह भारत की नियति है. हर समुदाय में सांप्रदायिकता बढ़ती चली है. हिंदू बहुसंख्यक हैं तो हिंदू सांप्रदायिकता से खतरा ज्यादा है, जैसे पाकिस्तान और बांग्लादेश में मुस्लिम बहुसंख्यकों की सांप्रदायिकता ने तबाही मचा रखी है. भारत में नवउदारवादी नीतियों को लागू करते हुए देशी और विश्व-स्तर के सरमाएदारों ने बहुसंख्यकों की सांप्रदायिकता के साथ समझौता कर लिया है. पढ़े लिखे लोग जब इस तरह जानबूझकर देश को अँधेरे की ओर धकेल रहे हैं तो क्या कहा जा सकता है! भले लोग तैयारी करें कि देश की हवा, पानी, मिट्टी, सब कुछ बिकने वाला है. जो ग़रीब और दलित हैं, आदिवासी हैं, उनकी पहले भी शामत थी, अब और तेज़ी से परलोक पहुँचेंगे. राम का नाम लें और भारत महान का मंत्र जपें. सेवक आ रहे हैं. इतिहास, भूगोल, साहित्य- सब कुछ बदलने वाला है. एहसान जाफरियो, मरने के लिए तैयार रहो.

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