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नक्सलवाद के 50 सालः कहां पहुंचा यह कारवां?

रायपुर | संवाददाता: बंगाल के नक्सलबाड़ी आंदोलन के 50 साल आज पूरे हो गये हैं. 50 साल पहले आज ही दिन यह सशस्त्र विद्रोह हुआ था, जो आज देश की सबसे बड़ी आंतरिक चुनौती बनी हुई है.

हालांकि इस आंदोलन की शुरुआत करने वाले कानू सान्याल आज के नक्सलवाद को आतंकवाद का नाम देते थे. उनका कहना था कि यह हथियारबंद आंदोलन तालिबान के उन आतंकवादियों से अलग नहीं है, जहां कुछ लोगों के पास हथियार हैं और वे उस हथियार के आतंक के सहारे अपनी मनमानी कर रहे हैं. ये और बात है कि हरेक ऐसी आलोचना को नक्सलवादी-माओवादी यह कह कर खारिज करते रहे हैं कि यह संशोधनवादी विचार है.

नक्सलवादी आंदोलन में आंतरिक लोकतंत्र भी हमेशा से सवालों के घेरे में रहा है और इस विचारधारा पर तो सवाल उठते ही रहे हैं. कथित क्रांति के नाम पर एक हथियारबंद हिंसावादी आंदोलन समाज के एक बड़े वर्ग के लिये चिंता का विषय बना हुआ है. हालांकि अभी हाल ही में नक्सलियों की तरफ से यह हास्यास्पद बयान भी सामने आया है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि वे हिंसावादी नहीं हैं. जबकि यह तथ्य बहुत साफ है कि इस आंदोलन की नींव ही हिंसा के साथ रखी गई थी.

23 मई 1967 को ही ज़मीन बंटवारे के नाम पर जलपाईगुड़ी के छोटे से नक्सलबाड़ी कस्बे में सैकड़ों किसान एकत्र हुये थे और इन किसानों ने ज़मींदार की रक्षा के लिये तैनात थानेदार सोनम वांग्दी को तीरों से मार डाला था. दो दिन बाद पुलिस की गोलीबारी में सात महिलाओं और दो बच्चों समेत 11 लोग मारे गये.

नक्सलबाड़ी का यह नक्सलवाद आंदोलन बढ़ा और देश के अलग-अलग विश्वविद्यालयों में काम करने वाले डॉक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर इस आंदोलन से जुड़ते चले गये. किसान और मज़दूर तो उनके साथ थे ही.

बंगाल की वामपंथी सरकार ने इन नक्सलियों को देखते ही गोली मारने के आदेश जारी किये और इसके बाद बंगाल में कांग्रेस सरकार आई और उसने सख्ती के साथ इस आंदोलन को दबा दिया. हज़ारों की संख्या में लोग मारे गये. आंदोलन बिखर गया.

कानू सान्याल कहते थे-आंदोलन गलत हाथों में और गलत दिशा में चला गया. चारू मजुमदार की जेल में मौत हुई और जंगल सांथाल नामक दूसरे नेता अपनी नशे की हालत के कारण असमय मौत के मुंह में समा गये. वहीं 23 मार्च 2010 को कानू सान्याल का शव उनके कमरे में पाया गया. कहा गया कि उन्होंने आत्महत्या कर ली थी.

आज की तारीख में भारत सरकार के लिये यह आंदोलन सबसे बड़ा सरदर्द बना हुआ है. हर साल सैकड़ों गरीब आदिवासी, नौजवान पुलिस वाले और यहां तक कि छोटे-छोटे बच्चे इस कथित क्रांति की भेंट चढ़ रहे हैं.

भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश में 10 राज्यों के 106 ज़िले माओवाद प्रभावित हैं. इन माओवाद प्रभावित ज़िलों के नाम इस तरह हैं-

आन्ध्र प्रदेश
1.अनंतपुर, 2.पश्चिम गोदावरी, 3.गुंटूर 4.कुरनूल, 5.प्रकासम, 6.श्रीकाकुलम, 7.विशाखापत्तनम 8.विजियानगरम

तेलंगाना
9.अदिलाबाद 10.करीमनगर 11.खम्माम 12.मेदक 13.महबूबनगर 14.नलगोंडा 15.वारंगल 16.निजामाबाद

बिहार
17.अरवल 18.औरंगाबाद 19.भोजपुर 20.पश्चिम चंपारन 21.गया 22.जमुई 23.जहानाबाद 24.कैमूर 25.मुंगेर 26.नालंदा 27.नवादा 28.पटना 29.रोहतास 30.सीतामढ़ी 31.पश्चिम चंपारन 32.मुजफ्फरपुर 33.शिवहर 34.वैशाली 35.बांका 36.लखीसराय 37.बेगूसराय 38.खगड़िया

छत्तीसगढ़
39.बस्तर 40.बीजापुर 41.दंतेवाड़ा 42.जशपुर 43.कांकेर 44.कोरिया (बैकुंठपुर) 45.नारायणपुर 46.राजनंदगांव 47.सरगुजा 48.धमतरी 49.महासमुंद 50.गरियाबंद 51.बलोद 52.सुकमा 53.कोंडागांव 54.बलरामपुर

झारखंड
55.बोकारो 56.चतरा 57.धनबाद 58.पूर्वी सिंहभूम 59.गढ़वा 60.गिरिडीह 61.गुमला 62.हजारीबाग 63.कोडरमा
64.लातेहार 65.लोहरदगा 66.पलामू 67.रांची 68.सिमडेगा 69.सरायकेला-खरसवान 70.पश्चिम सिंहभूम 71.खूंटी
72.रामगढ़ 73.दुमका 74.देवघर 75.पाकुड़

मध्य प्रदेश
76.बालाघाट

महाराष्ट्र
77.चंद्रपुर 78.गढ़चिरोली 79.गोंदिया 80.अहेरी

ओडिशा
81.गजपति 82.गंजाम 83.क्योंझर 84.कोरापुट 85.मलकानगिरि 86.मयूरभंज 87.नवरंगपुर 88.रायगढ़ा
89.संबलपुर 90.सुंदरगढ़ 91.नयागढ़ 92.कंधमाल 93.देवगढ़ 94.जैपुर 95.धेनकनाल 96.कालाहांडी 97.नुआपाड़ा 98.बरगढ़ 99.बोलांगीर

उत्तर प्रदेश
100.चंदौली 101.मिर्जापुर 102.सोनभद्र

पश्चिम बंगाल
103.बांकुड़ा 104.पश्चिम मिदनापुर 105.पुरुलिया 106.बीरभूम

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