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छत्तीसगढ़ में भी एनआरसी की मांग

रायपुर | संवाददाता: असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी पर शुरु हुये विवाद की चिंगारी छत्तीसगढ़ में भी पहुंच गई है. छत्तीसगढ़ में आदिवासी नेताओं ने बस्तर में 70 के दशक में बसाये गये बांग्लादेशी शरणार्थियों को लेकर भी सवाल उठाये हैं.

वरिष्ठ आदिवासी नेता और कांकेर के पूर्व सांसद सोहन पोटाई ने परलकोट में कथित बंगलादेशी घुसपैठिये होने और उन्हें निकालने असम जैसा कानून पूरे देश में लागू करने की बात कही है.

पोटाई ने कहा कि जिस समय समझौते के तहत बंगलादेशियों को भारत में बसाया गया, तब कहा गया था कि जब बंगलादेश में स्थिति सामान्य हो जायेगी, उन्हें पुन: वापस भेजा जायेगा लेकिन ऐसा नहीं किया गया. जो नियम असम में घुसपैठियों के लिए बनाया गया है उसे पूरे देश में लागू किया जाना चाहिए

हालांकि नगर पंचायत पखांजूर के अध्यक्ष एवं निखिल बंग समाज के प्रदेश अध्यक्ष ने स्पष्ट किया है कि क्षेत्र में एक भी घुसपैठिया नहीं है.

शरणार्थी

आज से 48 साल पहले 1970 में बांग्लादेश से आए लोगों को आदिवासी बहुल बस्तर में बसाया गया था. आज इनकी आबादी क़रीब तीन लाख है और वो बस्तर के लगभग 150 गांवों में फैले हैं. शरणार्थी के तौर पर बसाये गये इन लोगों को सरकार ने ज़मीन दी थी और रोजगार के दूसरे साधन भी उपलब्ध कराये थे.

लेकिन आज कांकेर के कई गांव ऐसे हैं, जहां आदिवासी अल्पसंख्यक हो गये हैं. परलकोट इलाके में बांग्लादेश से आये शरणार्थियों के 135 गांव हैं और इसी इलाके में आदिवासियों के 132 गांव.

अब जब असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी का मसौदा आने के बाद कथित बाहरी लोगों को लेकर विवाद शुरु हुआ है, यहां छत्तीसगढ़ में भी आदिवासी संगठनों ने असम की तर्ज पर संदिग्ध लोगों की पहचान कर उन्हें बाहर करने की मांग शुरु कर दी है.

राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह एनआरसी के मुद्दे पर पहले ही दुहरा चुके हैं कि जिनके पास नागरिकता नहीं है, उनको हटाया जायेगा.

प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के हवाले से मुख्यमंत्री ने स्थिति स्पष्ट की है कि जो देश के नागरिक हैं, उन्हें नहीं हटाया जायेगा. उन्होंने कहा कि देश को धर्मशाला नहीं बनाया जा सकता.

माना जा रहा है कि इस बार होने वाले विधानसभा चुनाव में बांग्लादेशी शरणार्थियों का मुद्दा कम से कम कांकेर के इलाके में तो जरुर गरमायेगा.

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