Social Mediaताज़ा खबर

पैराडाइस पेपर्स: जयन्‍त सिन्‍हा, ओमेदियार और मोदी

रवीश कुमार | फेसबुक
pando.com के बिना अधूरा है एक्सप्रेस में छपे पैराडाइस पेपर्स और द वायर की रिपोर्ट.हिन्दी के पाठकों को आज का अंग्रेज़ी वाला इंडियन एक्सप्रेस ख़रीद कर रख लेना चाहिए. एक पाठक के रूप में आप बेहतर होंगे. हिन्दी में तो यह सब मिलेगा नहीं क्योंकि ज्यादातर हिन्दी अख़बार के संपादक अपने दौर की सरकार के किरानी होते हैं.

कारपोरेट के दस्तावेज़ों को समझना और उसमें कमियां पकड़ना ये बहुत ही कौशल का काम है. इसके भीतर के राज़ को समझने की योग्यता हर किसी में नहीं होती है. मैं तो कई बार इस कारण से भी हाथ खड़े कर देता हूं. न्यूज़ रूम में ऐसी दक्षता के लोग भी नहीं होते हैं जिनसे आप पूछकर आगे बढ़ सकें वर्ना कोई आसानी से आपको मैनुपुलेट कर सकता है.

इसका हल निकाला है INTERNATIONAL CONSORTIUM OF INVESTIGATIVE JOURNALISTS ने. दुनिया भर के 96 समाचार संगठनों को मिलाकर एक समूह बना दिया है. इसमें कारपोरेट खातों को समझने वाले वकील चार्टर्ड अकाउंटेंट भी हैं. एक्सप्रेस इसका हिस्सा है. आपको कोई हिन्दी का अख़बार इसका हिस्सेदार नहीं मिलेगा. बिना पत्रकारों के ग्लोबल नेटवर्क के आप अब कोरपोरेट की रिपोर्टिंग ही नहीं कर सकते हैं.

1 करोड़ 30 लाख कारपोरेट दस्तावेज़ों को पढ़ने समझने के बाद दुनिया भर के अख़बारों में छपना शुरू हुआ है. इंडियन एक्सप्रेस में आज इसे कई पन्नों पर छापा है. आगे भी छापेगा. पनामा पेपर्स और पैराडाइस पेपर्स को मिलाकर देखेंगे तो पांच सौ हज़ार लोगों का पैसे के तंत्र पर कब्ज़ा है. आप खुद ही अपनी नैतिकता का कुर्ता फाड़ते रह जाएंगे मगर ये क्रूर कुलीन तंत्र सत्ता का दामन थामे रहेगा. उसे कोई फर्क नहीं पड़ता है. उसके यहां कोई नैतिकता नहीं है. वो नैतिकता का फ्रंट भर है.


राज्य सभा में सबसे अमीर और बीजेपी के सांसद आर के सिन्हा का भी नाम है. जयंत सिन्हा का भी नाम है. दोनों ने जवाब भी दिया है. नोटबंदी की बरसी पर काला धन मिटने का जश्न मनाया जाने वाला है. ऐसे मौके पर पैराडाइस पेपर्स का यह ख़ुलासा हमें भावुकता में बहने से रोकेगा. अमिताभ बच्चन, अशोक गहलोत, डॉ अशोक सेठ, कोचिंग कंपनी फिट्जी, नीरा राडिया का भी नाम है. आने वाले दिनों में पता नहीं किस किस का नाम आएगा, मीडिया कंपनी से लेकर दवा कंपनी तक मालूम नहीं.

एक्सप्रेस की रिपोर्ट में जयंत सिन्हा की सफाई पढ़ेंगे तो लगेगा कि कोई ख़ास मामला नहीं है. जब आप इसी ख़बर को PANDO.COM पर 26 मई 2014 को MARKS AMES के विश्लेषण को पढ़ेंगे तो लगेगा कि आपके साथ तो खेल हो चुका है. अब न ताली पीटने लायक बचे हैं न गाली देने लायक. जो आज छपा है उसे तो MARK AMES ने 26 मई 2014 को ही लिख दिया था कि ओमेदियार नेटवर्क मोदी की जीत के लिए काम कर रहा था. यही कि 2009 में ओमेदियार नेटवर्क ने भारत में सबसे अधिक निवेश किया, इस निवेश में इसके निदेशक जयंत सिन्हा की बड़ी भूमिका थी.

2013 में जयंत सिन्हा ने इस्तीफा देकर मोदी के विजय अभियान में शामिल होने का एलान कर दिया. उसी साल नरेंद्र मोदी ने व्यापारियों की एक सभा मे भाषण दिया कि ई-कामर्स को खोलने की ज़रूरत है. यह भाजपा की नीति से ठीक उलट था. उस वक्त भाजपा संसद में रिटेल सेक्टर में विदेश निवेश का ज़ोरदार विरोध कर रही थी. भाजपा समर्थक व्यापारी वर्ग पार्टी के साथ दमदार तरीके से खड़ा था कि उसके हितों की रक्षा भाजपा ही कर रही है मगर उसे भी नहीं पता था कि इस पार्टी में एक ऐसे नेटवर्क का प्रभाव हो चुका है जिसका मकसद सिर्फ एख ही है. ई कामर्स में विदेश निवेश के मौके को बढ़ाना.

मुझे PANDO.COM के बारे में आज ही पता चला. मैं नहीं जानता हूं क्या है लेकिन आप भी सोचिए कि 26 मई 2014 को ही पर्दे के पीछे हो रहे इस खेल को समझ रहा था. हम और आप इस तरह के खेल को कभी समझ ही नहीं पाएंगे और न समझने योग्य हैं. तभी नेता हमारे सामने हिन्दू मुस्लिम की बासी रोटी फेंकर हमारा तमाशा देखता है.

जब मोदी जीते थे तब ओमेदियार नेटवर्क ने ट्वीट कर बधाई दी थी. टेलिग्राफ में हज़ारीबाग में ही एक प्रेस कांफ्रेंस की रिपोर्ट का हवाला दिया गया है. जिसमें स्थानीय बीजेपी नेता शिव शंकर प्रसाद गुप्त कहते हैं कि जयंत सिन्हा 2012-13 में दो साल मोदी की टीम के साथ काम कर चुके हैं. इस दौरान जयंत सिन्हा ओमिदियार नेटवर्क में भी काम कर रहे थे. उन्होंने अपने जवाब में कहा है कि 2013 में इस्तीफा दिया.

इसमें मार्क ने लिखा है कि जयंत सिन्हा ओमेदियार नेटवर्क के अधिकारी होते हुए भी बीजेपी से जुड़े थिंक टैंक इंडिया फाउंडेशन में निदेशक हैं. इसी फाउंडेशन के बारे में इन दिनों वायर में ख़बर छपी है. शौर्य डोवल जो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल के बेटे हैं, वो इस फाउंडेशन के सर्वेसर्वा हैं. जयंत सिन्हा ई कामर्स में विदेशी निवेश की छूट की वकालत करते रहते थे जबकि उनकी पार्टी रिटेल सेक्टर में विदेशी निवेश को लेकर ज़ोरदार विरोध करने का नाटक करती थी. जनता इस खेल को कैसे देखे. क्या समझे. बहुत मुश्किल है. एक्सप्रेस की रिपोर्ट को the wire.in और PANDO.COM के साथ पढ़ा जाना चाहिए.

क्या सही में आप इस तरह के खेल को समझने योग्य हैं? मेरा तो दिल बैठ गया है. जब हम वायर की रिपोर्ट पढ़ रहे थे तब हमारे सामने PANDO.COM की तीन साल पुरानी रिपोर्ट नहीं थी. तब हमारे सामने पैराडाइस पेपर्स नहीं थे. क्या हम वाकई जानते हैं कि ये जो नेता दिन रात हमारे सामने दिखते हैं वे किसी कंपनी या नेटवर्क के फ्रंट नहीं हैं? क्या हम जानते हैं कि 2014 की जीत के पीछे लगे इस प्रकार के नेटवर्क के क्या हित रहे होंगे? वो इतिहास का सबसे महंगा चुनाव था. क्या कोई इन नेटवर्कों को एजेंट बनकर हमारे सामने दावे कर रहा था? जिसे हम अपना बना रहे थे क्या वो पहले ही किसी और का हो चुका था?

इसलिए जानते रहिए. किसी हिन्दी अख़बार में ये सब नहीं मिलने वाला है. इसलिए गाली देने से पहले पढ़िए. अब मैं इस पर नहीं लिखूंगा. यह बहुत डरावना है. हमें हमारी व्यक्तिगत नैतिकता से ही कुचल कर मार दिया जाएगा मगर इन कुलीनों और नेटवर्कों का कुछ नहीं होगा. इनका मुलुक एक ही है. पैसा. मौन रहकर तमाशा देखिए.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!