Social Media

बारिश के करिश्में

स्वप्निल श्रीवास्तव | फेसबुक: उस छोटे से शहर में जैसे बारिश थमती थी. मैं शहर में एक चक्कर जरूर लगता था. उसने कहा- शहर के बाहर भी दुनिया होती है.

-तुम किस दुनिया की बात कर रही हो.

-पास में एक घना जंगल है वहां चलो.

मेरे पास स्कूटर था जो चलता कम था शोर ज्यादा मचाता था. हम उस पर इस तरह सवार हुए जैसे किसी हवाई जहाज पर उड़ रहे हो. जब शहर से निकले तो बादल नही जंगल पहुंचते पहुंचते बादलों के अंधरे में घिर गए. बादल बरसने लगे. हमने एक पेड़ के नीचे पनाह ली. उसने मेरी बाह पकड़ कर कहा – आओ बारिश का लुत्फ़ उठाते है. देखो की तरह परिन्दे अपना पंख खोल कर बारिश का मजा ले रहे है.

-लेकिन हमारे पास तो पंख नही है.

-यह तो और भी अच्छा है. इससे भीगना और आसान हो जाएगा. बारिश की बूंदे अपनी त्वचा पर महसूस करो और बारिश का संगीत सुनो.

यह मौसम की सबसे मादक और उत्तेजक बारिश थी. हम खुशी से नाच रहे थे. भीगते भीगते शाम हो गयी. हम भीगते हुए घर लौटे.

शहर में हमारे रास्ते अलग हो गए जंगल में तो एक थे. किराये के मकान में पहुंचा तो लोग मुझे अचरज से देख रहे थे, जैसे उन्होंने भीगा हुआ आदमी पहली बार देखा हो. मैं भीगा हुआ था इसलिए बारिश का कोई डर नही था.

बादलों ने तय कर लिया था कि वे रात भर बरसेंगे. बरसते हुये वे हमारे स्वप्न में चले जायेंगे. स्वप्न में चिड़ियाएं उड़ेगी वे हमारे लिए अपने पंख छोड़ जाएगी. सुबह मैं उसे पहन कर उस छोटे से शहर में निकलूंगा. लोग पंख पहने हुए आदमी को जिज्ञासा के साथ देखेगे.

ये सब बारिश के करिश्में हैं. इसके लिए बच्चों जैसी जिद्द और बारिश में भीगने का हुनर चाहिए.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!