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संचार क्रांति के जनक, राजीव

नई दिल्ली | एजेंसी: श्रीपेरम्बदूर में 21 मई, 1991 के उस मनहूस दिन ब्लिट्ज टेबलॉयड समाचार पत्र के प्रधान संपादक रूसी करंजिया कुछ मिनट तक राजीव गांधी के साथ थे. राजीव ने करंजिया को बताया था कि उन्होंने अपने अतीत की गलतियों से सबक ली है और आने वाले दिनों में वह एक प्रभावशाली नेता यानी या तो प्रधानमंत्री या फिर विपक्ष के नेता बनने जा रहे हैं.

राजीव ने करंजिया को बताया था कि वह अपने अगले कार्यकाल में जनता की अपेक्षाओं को पूरा करेंगे. राजीव का अगला कार्यकाल लगभग सुनिश्चित नजर आ रहा था. इसके कुछ समय बाद ही लिट्टे के आत्मघाती हमले में राजीव मारे गए थे. 20 अगस्त को उनका जन्म दिन है.

राजीव आलोचनाओं से हमेशा डरते थे. थोड़ी प्रशंसा उन्हें गर्व से भर देती थी.

आने वाली पीढ़ियों के लिए वैश्विक पर्यावरण की सुरक्षा हेतु एक नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था कायम करने का राजीव का कदम और इसी तरह के अन्य प्रस्ताव इतने अनोखे थे कि कोई इसकी कल्पना नहीं कर सकता था कि द्विध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था संक्षिप्त अवधि में ध्वस्त हो जाएगी और एक ऐसी विश्व व्यवस्था के जन्म का अवसर पैदा होगा जो हर किसी की चिंताएं दूर करेगी.

राजीव इस बात को बेहद अच्छी तरह समझते थे कि यदि विश्व को किसी संभावित परमाणु और पर्यावरणीय विध्वंस से बचाना है, तो पारंपरिक यूरोप-अमरीका केंद्रित अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का दृष्टिकोण त्यागना होगा और उसे खारिज करना होगा.

पूर्व विदेश सचिव महाराज कृष्ण रसगोत्रा के शब्दों में राजीव के मन को अच्छी तरह से पढ़ा जा सकता है. उनके अनुसार, “राजीव की सभी विदेश नीतियां शांति की नई विश्व व्यवस्था तैयार करने के लिए एकदम उपयुक्त थीं.”

13 जून, 1985 को राजीव ने अमरीकी कांग्रेस में कहा था कि वह भारत को विश्व की सेवा में आगे लाना चाहते हैं.

राजीव हम आम लोगों में से ही थे. घर-परिवार वाला एक आम इंसान, जिन्हें संगीत और फोटोग्राफी में रुचि थी.

राजीव का राजनीति में प्रवेश न सिर्फ इंदिरा गांधी के पुत्र के रूप में हुआ था, बल्कि महान प्रिंस चार्मिग के रूप में भी, जो हमारे समाज के उन्मादी दैत्यों को परास्त कर सकता था और ईमानदारी, समता और बदलाव के नए युग की शुरुआत कर सकता था.

जनता के प्रति राजीव की वचनबद्धता ने ही उनके मन में यह धारणा पैदा की थी कि पंचायती राज व्यवस्था ही जनता को सशक्त बना सकती है.

राजीव ने जब देखा कि गरीब और कमजोर आम जनता प्यार भरी भावना से उनकी ओर देख रही है, तो राजीव ने अपना समय, शक्ति, पद और अंतत: अपना जीवन उसे समर्पित कर दिया.

वह अनावश्यक समय और संसाधन की बर्बादी को बड़ा अपराध मानते थे.

इसी भावना के साथ राजीव ने समयबद्धता के साथ प्रौद्योगिकी को नया रूप देने वाले अभियान का सूत्रपात किया.

राजीव ने ही भारत में कंप्यूटर और उच्च-प्रौद्योगिकी का सूत्रपात किया और उसे विस्तार दिया, जिसे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने इंडिया शाइनिग प्रचार के जरिए हाइजैक करने की कोशिश की.

उनकी 1986 की शिक्षा नीति आज भी प्रासंगिक मानी जाती है.

एनआरआई संबोधन पहली बार उस समय अस्तित्व में आया, जब गांधी ने स्वदेश लौटने की इच्छा रखने वाले भारतीय विशेषज्ञों के लिए देश के दरवाजे खोले. उनकी वापसी सुनिश्चित कराने के लिए उन्होंने तत्काल प्रशासनिक सुधार लागू किया, जिसके चलते पहली बार प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ नीति निर्माण से जुड़े पदों पर नियुक्त हुए.

राजीव गांधी एक ऐसे व्यक्ति थे, जो अपने जूते खुद पॉलिश करते थे.

पॉयलट होते हुए भी वह कोई न कोई हाथ का काम करते रहते थे.

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