baatcheet

मैं बने-बनाये सांचे में नहीं लिखती

शोभा निहलानी का कहना है कि वह बने-बनाए सांचे में लिखने में यकीन नहीं करतीं हैं. शोभा निहलानी बतौर रहस्य, साजिश और रोमांच लेखिका के रूप में जानी जाती हैं. कानो, एंटवर्प, सिंगापुर, रोचेस्टर, मुंबई, बेंगलुरु और अब हांगकांग-इतनी जगहों पर रहने की वजह से शोभा निहलानी एक तरह से विश्व नागरिक बन चुकी हैं. भले ही किसी बने-बनाए सांचे में न लिखती हों, लेकिन इसके बावजूद वह पांच बेहद कामयाब उपन्यासों की लेखिका बन चुकी हैं और कई और लिखना चाहती हैं.

एक साक्षात्कार में शोभा निहलानी ने कहा, “कोई खास सांचा नहीं है. मैं या तो कहानी के बारे में सोचती रहती हूं या जब कभी भी मौका मिलता है, उसे लिख लेती हूं. यह एक अध्याय हो सकता है, एक पृष्ठ हो सकता है या किसी चरित्र का वर्णन भी हो सकता है.”

शोभा ने कहा, “मेरे पास ऐसी कोई 9 से 5 बजे की नौकरी नहीं है. मैं अपनी पारिवारिक कंपनी में बतौर बुक कीपर पार्टटाइम सेवा देती हूं. मैं एक गृहिणी हूं, जिस पर पारिवारिक और कई सामाजिक जिम्मेदारियां होती हैं.”

अपने वजूद के इतने विविध रूपों की वजह से ही शायद शोभा ‘कार्मिक ब्लूज’ (उनका पहला उपन्यास जो डेनिश भाषा में प्रकाशित हुआ था), ‘द साइलेंट मोमेंट’, तीन उपन्यासों की श्रृंखला नाइन के दो उपन्यास और अब ‘अनरिजाल्वड’ जैसी किताबें साहित्य जगत को दे सकी हैं.

शोभा ने कहा, “इन सभी में समानता यह है कि सभी कहानियां रहस्यों और साजिशों पर आधारित हैं. ‘अनरिजाल्वड’ में मैंने यह बताने की कोशिश की है कि कुछ ऐसे प्रभावशाली लोग हैं जो आरटीआई कानून के तहत पारदर्शिता लाने की कोशिश करने वालों की हत्या करा देते हैं.”

यह पूछने पर कि लेखिका बनने का विचार कब आया, शोभा ने कहा, “इसकी वजह लिखे शब्दों से प्यार था. 1980 के दशक में मैं मुंबई में उन अखबारों की कतरनें काट लिया करती थी, जिनमें कुछ मजेदार छपा होता था. मेरे पास एक नोटबुक थी, जिसमें मैं अच्छी बातों-मुहावरों को लिख लिया करती थी.”

उन्होंने बताया कि एंटवर्प में शिक्षा ग्रहण के दौरान उन्हें भारत में ब्रिटिश राज के दौरान आर्थिक स्थिति पर लिखना पड़ा. इस सिलसिले में उन्हें पुणे की फग्र्युसन कालेज के पुस्तकालय में जाने का मौका मिला.

वह कहती हैं कि पुस्तकालय में बिताए लम्हे उनकी जिंदगी के यादगार लम्हे हैं. भारतीय इतिहास के बारे में वहां बहुत कुछ पढ़ा और वहीं लेखक बनने का बीज उनमें पड़ गया.

यह पूछने पर कि दुनिया के इतने अलग-अलग जगहों की यात्रा कैसे मुमकिन हुई, शोभा ने कहा, “मेरे माता-पिता को यात्रा करना, जगहों पर जाना पसंद था. मेरा बचपन चार महाद्वीपों के छह शहरों में बीता.”

दुनिया की इस यात्रा से उन्हें क्या मिला? इस सवाल पर शोभा ने कहा, “स्मृतियों के कई चित्रों ने मेरे जीवन को समृद्ध किया.”

भविष्य के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, “निश्चित ही और अधिक अध्ययन और लेखन.”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!