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मीडिया के हीरो बन गये रायपुर के शिर्के

रायपुर | संवाददाता: नाली के गैस से चूल्हा जलाने वाले श्याम राव शिर्के के दावे की कहानी पहली बार 17 दिसंबर 2014 को छत्तीसगढ़ खबर ने प्रकाशित की थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण बाद जब आलोचकों ने ट्रोल करना शुरु किया तो समर्थकों ने छत्तीसगढ़ खबर का हवाला दिया, जिसके बाद शिर्के फिर से चर्चा में हैं.

शिर्के की कहानी आज की तारीख में देश-दुनिया के मीडिया में छाई हुई है. हालांकि शिर्के न तो चाय बनाते हैं और ना ही कभी चाय बनाते थे, जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक भाषण में दावा किया था. जाहिर है, कम से कम उन्होंने शिर्के का उदाहरण दिया होगा, ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है.

रायपुर के चंगोराभाठा इलाके में रहने वाले श्याम राव शिर्के ने नालियों और नालों के गंदे पानी से निकलने वाली गैस को रसोई गैस की तरह उपयोग करने के इस प्रोजेक्ट अब ग्लोबल पेटेंट भी करा लिया है. शिर्के का दावा है कि उन्होंने अपने प्रयोग की सफलता के लिये पिछले चार सालों में कई चरणों पर परीक्षण किया. एक घर में कई-कई महीने शिर्के के इस प्रयोग से गैस चुल्हा जला और उस पर खाना भी पकता रहा. अब प्रधानमंत्री द्वारा एक भाषण में जिक्र करने के बाद से शिर्के के काम की पड़ताल हो रही है.

सरकारी मदद

छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद ने प्रोटोटाइप विकास और परीक्षण के लिए परिषद ने इनोवेशन फंड कार्यक्रम की अवधारणा विकसित की है जिसके अंतर्गत आवेदक को एक विशेषज्ञ समिति द्वारा अपने विचार की समीक्षा के उपरान्त वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है. यह वित्तीय सहायता निधि आवेदक को किसी गवर्नमेंट कॉलेज तथा आईटीआई के माध्यम से प्रदान की जाती है.

इसके तहत सरकारी कॉलेज या आईटीआई में आवेदक को कार्यशाला या प्रयोगशाला तक पहुंच की अनुमति भी प्रदाय की जाती है. यदि आवश्यक हो तो परीक्षण के लिए केंद्रीय प्रयोगशाला सुविधा की भी सहायता प्रदान की जाती है.

इस वर्ष कुल तीन आवेदकों को नवाचार निधि अनुदान के लिए चुना गया था, जिनमें से दो आवेदकों ने अपना काम पूरा कर लिया है तथा एक का कार्य प्रगति पर है. इस वर्ष श्री राजेन्द्र सिंह (डबल स्ट्रेंथ डिफ्रेंन्शियल) और श्री श्याम राव शिर्के (जल निकासी जल चलाने में मीथेन गैस उत्पादन) ने प्रोटोटाइप विकास कार्य पूरा कर लिया है.

कैसे काम करती है शिर्के की मशीन
शिर्के ने अपने ताज़ा बयान में दावा किया है कि उनके इस मशीन में प्लास्टिक के तीन ड्रमों अथवा कंटेनर को आपस में जोड़ कर उसमें एक वॉल्व लगा दिया जाता है. ये तीनों कंटेनर नदी- नाले या नालियों के ऊपर उस स्थान पर रखा जाता है, जहां से बदबूदार पानी बहता है. गंदगी रोकने कंटेनर के नीचे की ओर एक जाली लगाई जाती है.

इस मशीन को इस तर्ज पर फिट किया जाता है कि ड्रम अथवा कंटेनर में इकट्ठा होने वाली गैस का इतना दबाव बन सके, जिससे वो पाइप लाइन के जरिये उस स्थान पर पहुंच जाए, जहां रसोई गैस का चूल्हा रखा है. कंटेनर में इकठ्ठा होने वाली गैस की मात्रा नदी- नाले की लंबाई, चौड़ाई और गहराई पर निर्भर करती है.

नये प्रयोग
60 साल के शिर्के ह्रदयाघात के बाद से थोड़े सुस्त पड़े हैं लेकिन उनका दावा है कि वे इस उम्र में भी कई नये प्रयोग कर रहे हैं. उन्होंने दावा किया है कि पानी के बोर के लिये भी उन्होंने बिना आवाज और धुल-धुयें के काम करने वाली मशीन बनाई है. इसके अलावा टॉयलेट की गैस पाइप से बिजली बनाने को लेकर भी वे काम कर रहे हैं.

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