प्रसंगवश

खामोश, यहां विकास जारी है!

रायपुर | टिप्पणीकार पूरे देश में विकास की बयार बह रही है. मनमोहन-मोटेंक सिंह की जोड़ी से जो विकास न हो सका था, वो सब अब परवान चढ़ रहे हैं. हालांकि, इस कोशिश में महंगाई को बढ़ाने में उत्प्रेरक का काम करने वाले रेल किरायों में 14 फीसदी की बढ़ोतरी कर दी गई है. रविवार की खबर है कि अब तो रसोई गैस के दाम हर माह 10-10 रुपये करके बढ़ते रहेंगे. इन सब के बीच सोमवार को ऐसी नीति लाई गई कि चीनी के मूल्य प्रतिकिलो 3 रुपये निकट भविष्य में बढ़ जाने वाले हैं.

जब सारे देश में विकास की बयार बह रही तो भला उससे छत्तीसगढ़ कैसे अछूता रह सकता है. सोमवार को ही एक उच्च स्तरीय बैठक में राजनांदगांव से राजधानी रायपुर तक मेट्रो चलाने की कवायद शुरु हो गई है. छत्तीसगढ़ में भी इसी के बीच रविवार को मुख्यमंत्री रमन सिंह का बजाप्ता खबरिया चैनलों में बयान आया कि महंगाई को देखते हुए छत्तीसगढ़ में देवभोग दूध के दाम 2-3 रुपये तक बढ़ाया जाना तर्क संगत है.

इस बीच, इराक में भारतीयों को बंधक बनाये जाने की खबर आई परन्तु पंथ प्रधान ने खबरिया चैनलों से परहेज किया. उनके बजाये विदेश मंत्री ने मोर्चा संभाला. वैसे भी हर छोटी-बड़ी घटना में पंथ प्रधान का कूद पड़ना उनके पद को शोभा नहीं देता है. जब वह पंथ प्रधान के पद के दावेदार थे तबकी बात और थी. इसके अलावा भी अपने एक मंत्री पर महिला से कथित तौर पर जबरदस्ती करने के आरोपों पर भी उन्होंने सीधे हस्तक्षेप से परहेज किया.

हम बात कर रहे थे देश के विकास की, जिसमें ऐसी बातों को लेकर उलझना, मक्खी मार कर हाथ गंदा करने के समान माना जायेगा. देश की जनता ने बड़े अरमानों से विकास के लिये नई सरकार को पूर्ण बहुमत से चुना है. इस कारण उनकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि विकास करके दिखाएं. अब इस विकास के दौर में यदि महंगाई परछाई की तरह चिपकी रहेगी तो दोष, विकास का नहीं है, दोष है महंगाई का.

वैसे भी महंगाई को बढ़ाने के लिये मनमोहन सिंह की सरकार ने पृष्ठभूमि तैयार करके ही रखी थी जो विकास के पिटारे को खोलते ही उसी के साथ बाहर आ गई है. यही वह पेंच है जो पंथ प्रधान को परेशान कर रहा है अन्यथा उनका पूरा जोर तो बुलेट ट्रेन चलाने में है. अभी तक जितने विकास के कागजी घोड़े नहीं दौड़े हैं,उससे कहीं अधिक महंगाई वास्तव में बढ़ गयी है तथा सरकार की नीतियों का हाल देखकर नहीं लगता कि इससे छुटकारा मिल सकेगा.

विकास को जनता तक ही नहीं, देश की सुरक्षा के लिये बनने वाले उत्पादों तक विस्तारित कर दिया गया है. वह दिन दूर नहीं जब देश के रक्षा उत्पादन की बागडोर विदेशी हाथों में होगी. जिनसे अप्रत्यक्ष तौर पर जूझना पड़ सकता है, हो सकता है कि उसी देश के धन्ना सेठ हमारे रक्षा उत्पादन के शीर्ष पर हो.

इन सब के बीच में वह कविता याद आ जाती है जिसमें कहा गया था कि खामोश, अदालत जारी है. कहने को मन करता है कि खामोश, विकास जारी है, इसमें महंगाई-वहंगाई की बात मत करें, वहीं देश, वही जनता, सिहांसन पर बैठे हुए लोगों के चेहरों पर भी गंभीरता की वहीं छटा, कल वहां, मनमोहन-मोटेंक की जोड़ी थी, आज कोई और संभाल रहा है मोर्चा. खामोश, विकास जारी है.

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