राष्ट्र

काम से हो मेरा आकलन-स्मृति

नई दिल्ली| समाचार डेस्क: स्मृति ईरानी ने कहा है कि उनका आकलन उनके काम से किया जाए. मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि विपक्ष उन्हें काम से भटकाने की साजिश कर रहा है. हालांकि उन्होंने इस बात का जवाब नहीं दिया कि उनके दो हलफनामों में दो अलग-अलग जानकारियां क्यों हैं.

गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी सरकार में मानव संसाधन मंत्रालय संभालने और शिक्षा मंत्री का कामकाज देखने को लेकर हंगामा मचा हुआ है. स्मृति ईरानी केवल 12वीं पास हैं. अब उनके हलफनामे को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. क्योंकि एक हलफनामे में स्मृति ईरानी ने खुद को बीए बताया है तो एक और हलफनामे में उन्होंने अपने को बी कॉम बताया है.

स्मृति ईरानी जब 2004 में चांदनी चौक से कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के खिलाफ चुनाव लड़ रही थीं, उस दौरान उन्होंने एक हलफनामा दायर किया था. इस हलफनामे के अनुसार उन्होंने अपनी शैक्षणिक योग्यता बीए बताई है. उनके अनुसार उन्होंने उन्होंने बीए की डिग्री 1996 में ली थी. इसके उलट 2014 के लोकसभा चुनाव में जब वे अमेठी से राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतरीं तो उन्होंने अपनी शैक्षणिक योग्यता बी कॉम फर्स्ट ईयर बताई है. उन्होंने इसका वर्ष बताया है 1994. मतलब ये कि दोनों हलफनामे स्मृति ईरानी ने ही दिये हैं और दोनों में उन्होंने अलग-अलग जानकारी दी है. सवाल उठता है कि स्मृति ईरानी की असली शिक्षा क्या है और उनके किस हलफनामें को सच माना जाना चाहिये.

हालांकि बहुत बड़ी संख्या में लोग ऐसे हैं, जो स्मृति ईरानी के पक्ष में खड़े हैं. मसलन मोदी मंत्रिमंडल की तेज़ तर्रार नेता उमा भारती ने इस मसले पर कांग्रेस पर ही पलटवार किया है कि वह बताये कि सोनिया गांधी की शैक्षणिक योग्यता क्या है. यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि उमा भारती खुद पांचवीं तक पढ़ी-लिखी हैं. कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा है कि शिक्षा, विद्वत्ता और साक्षरता में अंतर होता है. ये अंतर दिमाग में रखना चाहिए. दूसरी तरफ दिग्विजय सिंह ने कहा है कि मुरली मनोहर जोशी की जगह नरेंद्र मोदी को स्मृति ईरानी ज्यादा बेहतर लगीं, ये उनका फैसला है.

अब पहली बार स्मृति ईरानी ने इस पर पहली प्रतिक्रिया देते हुये कहा है कि उनके काम काज से उनका आकलन किया जाये. इसके लिये कोई और तरीका अपनाना ठीक नहीं है. उन्होंने कहा कि विपक्ष कोशिश कर रहा है कि उनका ध्यान काम से भटकाया जा सके.

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