छत्तीसगढ़

बिना तैयारी तेंदूपत्ता तोड़ाई

सुरेश महापात्र | दंतेवाड़ा: छत्तीसगढ़ का हरा सोना कहे जाने वाला तेंदूपत्ता का व्यापार ठप होने के कगार पर है. बस्तर में मौसम ने साथ दिया पर अब प्राकृतिक संपदा के दोहन में सरकार और माओवादियों की नीतियां बड़ी बाधा बनती दिख रही है.

आज से नियमत: तेंदूपत्ता के तोड़ाई और संग्रहण का काम शुरू हो जाना था. दक्षिण बस्तर में कहीं से भी संग्रहण के प्रारंभ होने की सूचना नहीं मिली है. दूसरी ओर ग्लोबल टेंडर में तेंदूपत्ता ठेकेदारों के हाथ खींच लिए जाने के बाद वन विभाग ने लगातार बैठक कर समितियों के माध्यम से तेंदूपत्ता तोड़ाई और सरकारी खरीदी के लिए लघु वनोपज समितियों को निर्देशित कर दिया है. समितियों के प्रबंधकों की बैठक में वन विभाग तेंदूपत्ता को लेकर माओवादियों के असर को भी जानने की जुगत में लगा है.

जिन जगहों के लिए सरकारी तोड़ाई शुरू की जानी है वहां मैदानी तैयारियों का भी रोना अलग चल रहा है. ना तो दीमक से बचाने दवा का इंतजाम किया गया है और ना ही बाकि सामग्री. समितियां जिले की व्यवस्था की ओर मुंह ताक रही हैं. विभाग ग्रामीणों की ओर से सकारात्मक संदेश का इंतजार कर रहा है. मौसम का इशारा साफ है- आगामी दो-चार दिनों में अगर पत्ता नहीं तोड़ा गया तो वह किसी काम का नहीं रह जाएगा.

माओवादियों ने 2000 रुपए मानक बोरा की मांग रखी
इस साल तेंदूपत्ता के लिए माओवादियों द्वारा 2000 रुपए प्रति मानक बोरा कीमत संग्राहकों को देने की मांग रखी है. हालांकि इस संबंध में खुले तौर पर पर्चा जारी किया है. वहीं विभागीय सूत्र बता रहे हैं कि ग्रामीणों के माध्यम से पत्र भी आला अफसरों तक पहुंचा है, जिसमें प्रति मानक बोरा 2 हजार रुपए तक दिए जाने की मांग की गई है. जबकि सरकारी खरीद के लिए 12 सौ रुपए प्रति मानक बोरा का भाव निर्धारित है. अब समितियों की चिंता इस बात को लेकर है कि अगर माओवादी ग्रामीणों की मांगों को लेकर अड़ गए तो संग्रहण का काम बुरी तरह से प्रभावित हो सकता है.

संग्राहकों को सीधा नुकसान
अगर तेंदूपत्ता सीजन में तोड़ाई और संग्रहण का काम नहीं हो सका तो सरकार को भले ही कोई फर्क न पड़े पर इसका सीधा असर ग्रामीण संग्राहकों को निश्चित तौर पर होगा. पहले पत्ता संग्रहण की कीमत नहीं मिलेगी. इसके बाद बोनस का सीधा नुकसान. यानी दोहरी क्षति. विभागीय अधिकारी साफ कह रहे हैं कि अगर तेंदूपत्ता नहीं तोड़ा गया तो संग्राहकों को मिलने वाले सभी लाभ यानी बीमा, छात्रवृत्ति अन्य सुविधाएं जिसमें जूता, चप्पल और साडिय़ां दी जाती हैं, नहीं मिलेंगी.

बस्तर सर्किल में सर्वाधिक समितियां सुकमा वनमंडल में
बस्तर सर्किल में सुकमा वन मंडल में सबसे ज्यादा लॉट हैं. यहां की व्यथा यह है कि सुकमा में 48 में से केवल पांच लॉट एर्राबोर की दो, गोलापल्ली, किस्टारम और बोड़केल की एक-एक लॉट को खरीदा गया है. शेष 43 लॉट में तेंदूपत्ता तोड़ाई की संभावना क्षीण है.

डीएफओ नाविद शुजाउद्दीन कहते हैं कि दो-चार दिन के भीतर अगर तोड़ाई नहीं हो पाई तो पत्ता किसी लायक नहीं रह जाएगा. सुकमा संवाददाता के मुताबिक जिले की सभी समितियों में सरकारी रेट को लेकर जो विरोध हो रहा है उसके पीछे कई कारण हैं. पहला तो यह कि जिन जगहों पर पहले ठेकेदार तोड़ाई करवाते थे वे उनके अपने तरीके थे. अब समितियों को स्वयं निर्णय लेने का अधिकार नहीं होने के कारण तोड़ाई प्रभावित होना संभव है. उल्लेखनीय है कि बस्तर सर्किल के सुकमा वनमंडल में सर्वाधिक 79 हजार 500 मानक बोरा का लक्ष्य निर्धारित है.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ सुकमा में ही यही स्थिति है बल्कि सर्किल के दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर और बस्तर के लिए निर्धारित एक लाख 95 हजार मानक बोरा तेंदूपत्ता संग्रहण का लक्ष्य इस बार शायद ही पूरा हो सके.

दो साल से नहीं बिका माल
बाजार में उठाव नहीं होने के कारण तेंदूपत्ता का उठाव भी नहीं हो पाया है. जिसके कारण गोदामों में पुराना माल भरा हुआ है. इस साल के लिए गोदामों का इंतजाम तो विभाग ने कर लिया है. जिन जगहों पर ठेकेदार हैं वहां परिदान को लेकर कोई समस्या नहीं है पर सरकारी खरीदी में गोदामों में माल सुरक्षित रखना भी समितियों की जिम्मेदारी है.

सूत्रों ने बताया कि वर्ष 2011-12 में बस्तर सर्किल ने करीब 105 करोड़ का तेंदूपत्ता बेचा था. 12-13 में यह घटकर मात्र 35 करोड़ रुपए रह गया है. इस साल तो पूरे सर्किल में दर्जनभर लॉट ही ठेकेदारों ने लिए हैं. बाकि का भगवान ही मालिक है.

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