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यूपी में भाजपा राम भरोसे

नई दिल्ली | विशेष संवाददाता: यूपी चुनाव में भाजपा ने राम मंदिर के मुद्दे को छोड़ने की बजाये फिर से छेड़ दिया है. नरेन्द्र मोदी ने 26 मई 2014 को देश के प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी. उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में यूपी के मतदाताओं की अहम भूमिका रही है. अब करीब ढाई साल बाद भाजपा फिर से यूपी के मतदाताओं के सम्मुख खड़ी है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव के समान इस विधानसभा के नतीजे को दोहराने की उम्मीद के साथ.

इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में विकास के दावे किये गये, विदेशों में भारत की धाक बढ़ने का प्रचार किया गया, कालेधन पर निर्णयकारी आघात किया गया, परंपरागत प्रतिद्वंदी पर सर्जिकल स्ट्राइक किया गया. उसके बाद भी भाजपा के संकल्प पत्र में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की संभावना को तलाशने का संकल्प पेश किया गया है.

भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव 2017 लोक कल्याण संकल्प पत्र

क्या इसका यह मतलब निकाला जाये कि यूपी का विधानसभा चुनाव केवल मोदी सरकार के काम के आधार पर नहीं जीता जा सकता है. इसलिये राम मंदिर के मुद्दे को जोड़ा गया है? हां, कभी राम मंदिर के लिये रथ यात्रा निकालने वाले लालकृष्ण आडवाणी अब भाजपा के इतिहास पुरुष बनकर रह गये हैं, यह दिगर बात है.

शनिवार को भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा जारी पार्टी के संकल्प पत्र में कहा गया है, “भाजपा का उन मुद्दों पर स्पष्ट रुख है जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण से जुड़े हैं. राम मंदिर पर भाजपा अपना रुख दोहराती है – संविधान के दायरे में अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए सभी संभावनाओं को तलाशा जाये.”

संकल्प पत्र के माध्यम से यूपी की जनता को राज्य में भी केन्द्र सरकार के समान काम करने का आश्वासन दिया गया है. संकल्प पत्र में कहा गया है, “इस संकल्प पत्र के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश की जनता को आश्वस्त करना चाहती है कि जिस प्रकार से माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा सामजिक और आर्थिक न्याय की स्थापना, गरीबों के कल्याण, महिलाओं के सशक्तिकरण, युवाओं की आत्मनिर्भरता एवं अन्त्योदय के लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में कार्य किये जा रहे हैं, उन्हीं लक्ष्यों की दिशा में उत्तर प्रदेश में भी भाजपा की सरकार काम करेगी.”

यूपी में गुंडा राज तथा भ्रष्ट्रचार खत्म करके पारदर्शी एवं भयमुक्त बनाने का संकल्प लिया गया है. इसी के साथ यूपी के सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संपन्नता को सुशासन के माध्यम से पुनः प्रतिष्ठित करने की बात की गई है.

अगले पांच सालों में राज्य में 70 लाख रोजगार एवं स्व-रोजगार के अवसर देने का भी वादा किया गया है. हालांकि, किस तरह से 70 लाख रोजगार दिया जायेगा उसके बारें में विस्तार से कुछ नहीं कहा गया है. हां, राज्य की 90 फीसदी नौकरियों को राज्य के युवाओं के लिये आरक्षित करने का दावा किया गया है.

किसानों के लिये कहा गया है कि, “कृषि प्रदेश के विकास का आधार बने इसके लिए तमाम प्रयास किये गये हैं. सभी लघु एवं सीमान्त किसानों का फसली ऋण माफ़ किया जायेगा एवं उन्हें ब्याज मुक्त ऋण दिया जायेगा.”

राज्य में निवेश को बढ़ावा देने के लिये नई औद्योगिक नीति की बात की गई है. इसके अलावा प्रदेश के हर गरीब परिवार में बेटी के जन्म पर 50 हजार का विकास बॉण्ड दिया जाएगा. बेटी के कक्षा 6 में पहुँचने पर 3 हजार, कक्षा 8 में पहुँचने पर 5 हजार, कक्षा 10 में पहुँचने पर 7 हजार और कक्षा 12 में पहुँचने पर 8 हजार दिये जायेंगे. बेटी के 21 वर्ष की होने पर 2 लाख दिये जायेंगे.

इन तमाम चुनावी संकल्पों के बाद भाजपा ने राम मंदिर के निर्माण के अपने रुख को दोहराया है.

सभी जानते हैं और मानते हैं कि भाजपा के लिये यूपी विधानसभा का चुनाव काफी अहम है. खासकर, अगले लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा के लिये यूपी में सरकार बनाना उसके केन्द्र में फिर से सरकार बनाने की गारंटी मानी जा रही है. जब यूपी का चुनाव इतना महत्वपूर्ण हो तो भला उस राम मंदिर के मुद्दे को कैसे छोड़ा जा सकता है जिसने भाजपा को मात्र 2 लोकसभा सदस्यों की स्थिति से उबारा था.

उल्लेखनीय है कि साल 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को मात्र 2 सीटें मिली थी. उसके बाद लालकृष्ण आडवाणी की राम मंदिर के लिये की गई रथ यात्रा ने मंडल की आग में झुलस रहे देश को कमंडल की सियासत की ओर मोड़ दिया था. 1991 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 120 सीटों पर जीती तथा 1996 में 161 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी.

वैसे 2014 के लोकसभा चुनाव के समय भी राम मंदिर का उल्लेख किया गया था. 2014 के लोकसभा चुनाव के समय मोदी लहर थी जो फिलहाल महसूस नहीं हो रही है, इस कारण से यूपी चुनाव के संकल्प पत्र में भी राम मंदिर का दोहराया जाना स्वभाविक है.

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