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पानी का मतलब

राजेंद्र सिंह
जल संस्कृति से विमुक्त होते युवा के पीछे प्रमुख कारण आधुनिक शिक्षा में प्रकृति के प्रति प्रेम और परिश्रम का कम होना है. इस कारण प्रकृति के साथ पानी के लेने और देने के हमारे जो रिश्ते थे, वो भी टूट गए हैं. पहले गर्मी के दिनों में पूरा गांव पानी से पहले ताल बांधने का काम करता था. आजकल वह परंपरा छूट गई है. अब लोग पानी की बोतल खरीदकर पीना चाहते हैं. पानी का यह नया बाजार हमें निजीकरण के मोह में फंसा लिया है.

पहले बचपन में दादी-दादी, नाना- नानी सब अपने बच्चों को सिखाते थे कि तुम्हारे जीवन के लिए पानी निश्चित है. वे सिखाते थे कि अपने जीवन में पानी उतना ही इस्तेमाल करना जिससे बर्बाद न हो. इस चाल-चलन के कारण पानी के प्रति सम्मान था. लिहाजा पानी के स्नोत ताल तलैयों के प्रति भी लोगों का सम्मान था. इसीलिए जन्म से लेकर मरण तक विवाह आदि तक सभी संस्कार ताल-पोखर के पास हुआ करते थे. ये संस्कार पानी के प्रति युवाओं के मन में सम्मान पैदा करते थे और पानी के सदुपयोग का चलन आ जाता था. जिससे पानी के कम उपयोग की आदत इनके मन में होती थी. साथ ही साथ ताल-तलैयों को गंदा न करने का संस्कार भी विकसित होता था. उसी के साथ पानी के सदुपयोग और पुन: उपयोग करने की आदत विकसित होती थी. ये आदत ताल तलैयों को पुनर्जीवित करने का चलन बनाकर रखती थी.

युवाओं की बेरुखी के कारण आज हमारे ताल-तलैये मर गए हैं. 21वीं सदी के दूसरे दशक में यदि हमने अपनी जल स्नोतों की इस विरासत को पुनर्जीवित नहीं किया तो हम बेपानी हो जाएंगे. हमारी जिंदगी में लाचारी, बेकारी और बीमारी आ जाएगी. इसलिए हमें अपने ताल तलैयों को पुनर्जीवित करना अत्यंत आवश्यक है. हम अभी अपने संस्कार और व्यवहार में और अपनी शिक्षा में ताल तलैयों के उपयोग को बढ़ावा दें.

मेरे देश में जल संस्कृति को वापस लाने की जरूरत है. इस हेतु देश के सभी संतों, महंतों, मठों को जल साक्षरता के लिए ‘पानी में प्राण हैं’ के अध्यात्म दर्शन द्वारा एक नई चेतना जगाने के जरूरत है. हमारा आज का अध्यात्म पुराने ज्ञान और विज्ञान के साथ गहरा रिश्ता रखता है. हमने नीर नारी और नदी इन तीनों को पूर्ण सम्मान दिया था और इनका रक्षण संरक्षण संवद्र्धन सतत किया था. जब तक हमने यह किया तब तक हम दुनिया के गुरू बने रहे. हमें अब फिर वही करना होगा. हमें जनम देने वाली धरती माता उसमें जीवन की शुरुआत करने वाले जल और वायु पर अब बहुत बड़ा खतरा है.

इस खतरे से बचने की चेतना जगाने की दक्षता और क्षमता हमारी शिक्षा में नहीं है. इसीलिए भारतीय ज्ञानतंत्र और हमारी गुरू परंपरा दुबारा से पानी से प्राण डाल सकती है. इसलिए हमें एक बार फिर अपने नीर, नारी और प्रकृति और नदी (जीवन का प्रवाह) को सम्मान देने की शुरुआत करनी होगी.

राजस्थान के समाज ने अपनी सात नदियों को पुनर्जीवित करके यह करिश्मा कर दिखाया है. मैंने गणतंत्र दिवस पर पूरे देश में इसी काम को फैलाने के लिए श्री गेरे मठ चित्रदुर्ग जिला कर्नाटक से ऐसी ही शुरुआत की है. इसमें हम युवाओं को विद्यालयों में जाकर तथा ग्र्रामीणों को गांव-गांव जाकर तालाबों को नदियों के साथ जोड़ने के लिए पदयात्रा, वाहन यात्रा और जल साक्षरता यात्रा शुरू की है.

मैं समझता हूं कि इस तरह की चेतना देश भर में आज खड़ी करने की जरूरत है. इसलिए हमने इस गणतंत्र दिवस से अगले गणतंत्र दिवस के बीच पूरे भारत में जल सुरक्षा हेतु जल साक्षरता अभियान शुरू किया है. इसी प्रकार भारत सरकार और सभी राज्य सरकारें अपने शिक्षा के पाठ्यक्रम में नीर, नारी और नदी के शिक्षण पाठ्यक्रम शुरू कर दें तो पुन: तरुणों और युवा में ताल तलैयों के प्रति प्रेम बढ़ेगा और राष्ट्र में एक जल चेतना खड़ी होगी.

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